Select Your Preferred Language

Please choose your language to continue.

जलवायु संबंधी चरम घटनाएं भारतीय हिमालयी क्षेत्र की आपदा के प्रति सुभेद्यता में वृद्धि को उजागर कर रही हैं | Current Affairs | Vision IAS
News Today Logo

जलवायु संबंधी चरम घटनाएं भारतीय हिमालयी क्षेत्र की आपदा के प्रति सुभेद्यता में वृद्धि को उजागर कर रही हैं

Posted 18 Sep 2025

1 min read

Article Summary

Article Summary

भारतीय हिमालयी क्षेत्र में विवर्तनिकी, जलवायु परिवर्तन जलवायु, मानवीय आपदा और कम अनुकूलन क्षमता के कारण आपदा जोखिम बढ़ गया है, जिसके लिए उन्नत पर्यवेक्षण, प्रौद्योगिकी और व्यावसायिक कौशल की आवश्यकता है।

2025 के मानसून ने जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड को काफी प्रभावित किया है। इसने भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR) में आपदा प्रबंधन के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।

आपदाओं के प्रति भारतीय हिमालयी क्षेत्र की अधिक सुभेद्यता के कारण

  • भूविज्ञान और टेक्टोनिक्स: हिमालय एक युवा एवं वलित पर्वत है, जिसमें निरंतर विवर्तनिकी या  टेक्टोनिक गतिविधियां होती रहती हैं। इसलिए, यह क्षेत्र भूकंप (भूकंपीय जोन IV और V) एवं भूस्खलन के प्रति अत्यधिक सुभेद्य बन जाता है।
  • जलवायु परिवर्तन संबंधी प्रभाव: इसके कारण तापमान एवं वर्षा के पैटर्न में बदलाव और परिवर्तनशीलता के चलते तीव्र वर्षा, बादल फटना और हिमस्खलन जैसी घटनाएं घटित होती हैं। उदाहरण के लिए- उत्तराखंड में 2013 व 2025 में बाढ़ की घटनाएं। 
  • मानव-जनित कारक: इसमें सड़क निर्माण, सुरंग निर्माण, जलविद्युत परियोजनाएं, नदी तटों और बाढ़ के मैदानों पर अतिक्रमण आदि शामिल है।
  • भूमि के उपयोग में परिवर्तन: इसमें मानवीय गतिविधियों के प्रभाव के कारण मृदा अपरदन में तेजी आना और विभिन्न परियोजनाओं (जैसे टिहरी बांध) के कारण पर्वतीय ढलान का अस्थिर हो जाना शामिल है।
  • अन्य: इसके तहत कम अनुकूलन क्षमता, हिमनदों व पर्माफ्रॉस्ट का तेजी से पिघलना, हिमनदीय झील के तटबंध टूटने से उत्पन्न बाढ़ (GLOFs) आदि शामिल हैं। 

आपदा संबंधी कार्रवाई की मौजूदा संस्थागत क्षमता 

  • बहु-एजेंसी समन्वय और क्षेत्रीय कार्यान्वयन: NDMA, NDRF, राज्य आपदा प्राधिकरण, केंद्रीय जल आयोग और IMD के बीच सहयोग, जैसा कि हाल ही में पंजाब में आई बाढ़ के दौरान देखा गया।
    • थल सेना, वायु सेना और ITBP ने कठिन भौगोलिक क्षेत्रों में भी राहत एवं बचाव कार्य किए हैं।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग: ड्रोन्स, सैटेलाइट संचार, OneWeb लिंक, डॉपलर रडार आदि का रोकथाम, पता लगाने और कार्रवाई के लिए उपयोग किया जाता है।
  • समुदाय आधारित तैयारी: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) का 'आपदा मित्र' कार्यक्रम। 
  • रिस्क इंडेक्सिंग: केंद्रीय जल आयोग (CWC) ने हिमनदीय झीलों के जोखिम सूचीकरण के लिए मानदंड (Criteria for Risk Indexing of Glacial Lakes) को भी अंतिम रूप दे दिया है।

आपदा का सामना करने के लिए बेहतर तैयारी हेतु आगे की राह 

  • निगरानी: राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (National Remote Sensing Centre: NRSC) द्वारा 24×7 आधार पर हिमनदीय  झीलों और मलबे के प्रवाह की निगरानी करनी चाहिए।
  • मानचित्रण: भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) द्वारा मृदा की जल सोखने की क्षमता और ढाल प्रवणता के आधार पर भूस्खलन के मानचित्रण का विस्तार करना चाहिए।
  • प्रौद्योगिकी: AI स्थानीयकृत हाइड्रो-मेट डेटा के साथ आकस्मिक बाढ़ का पूर्वानुमान लगा सकती है (शहरी बाढ़ नियंत्रण का गोरखपुर मॉडल)।
  • अन्य: सड़कों और नदी तटबंधों के लिए ढलान स्थिरीकरण एवं अग्रिम चेतावनी के लिए सचेत ऐप का उपयोग करना चाहिए।
  • Tags :
  • Himalayas
  • Indian Himalayan Region (IHR)
  • Glacial Lake Outburst Floods (GLOFs)
  • Aapda Mitra
Watch News Today
Subscribe for Premium Features

Quick Start

Use our Quick Start guide to learn about everything this platform can do for you.
Get Started