हाल ही में, 10,000 नवगठित बहुउद्देशीय प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (M-PACS) के साथ-साथ डेयरी और मत्स्य सहकारी समितियों का भी उद्घाटन किया गया।
- केंद्र सरकार ने अगले 5 वर्षों में 2 लाख नये पैक्स (PACS) के गठन का लक्ष्य रखा है।

पैक्स (PACS) के बारे में
- परिचय: पैक्स ग्रामीण भारत में सहकारिता आंदोलन की आधारशिला हैं। ये समितियां ग्रामीण किसानों को सहकारी ऋण संरचना के तहत अल्पकालिक ऋण, बीज, उर्वरक और अन्य सेवाएं प्रदान करती हैं।
- प्रमुख कार्य: पैक्स के महत्वपूर्ण कार्यों में शामिल हैं- किसानों को ऋण प्रदान करना, ऋणों का संग्रह करना और पुनर्भुगतान करना; किसानों को बीज, उर्वरक, कीटनाशक आदि का वितरण करना; किसानों के उत्पादों को खरीदना; आदि।
- ये ग्रामीण ऋणी और उच्चतर वित्त-पोषण एजेंसियों (जैसे कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक एवं RBI/ नाबार्ड) के बीच अंतिम कड़ी के रूप में भी कार्य करती हैं।
- सदस्यता: ग्रामीण किसान, कारीगर और समाज के कमजोर वर्गों के लोग पैक्स में शेयरधारक के रूप में शामिल हो सकते हैं।
- विनियमन: पैक्स सहकारी सोसायटी अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत सहकारी संस्थाएं हैं। संबंधित राज्य के रजिस्ट्रार सहकारी सोसायटी (RCS) द्वारा इनका प्रशासनिक नियंत्रण किया जाता है।
- ये समितियां बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के दायरे में नहीं आती हैं और RBI द्वारा भी प्रत्यक्ष तौर पर इनका विनियमन नहीं किया जाता है।
- महत्त्व:
- ये समितियां वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देती हैं।
- ये समितियां सहकारी बैंकिंग प्रणाली की आधारशिला हैं।
- ये समितियां कृषक समुदायों को ऋण प्रदान करने वाले संस्थागत स्रोतों, कृषि इनपुट, बाजार, मूल्य संवर्धन आदि से जोड़ती है।
पैक्स (PACS) के समक्ष विद्यमान चुनौतियां
- संगठनात्मक कमियां: अपर्याप्त भौगोलिक कवरेज और कमजोर क्रेडिट यूनिट्स, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारिता आंदोलन के समक्ष एक बड़ी चुनौती हैं।
- अपर्याप्त वित्तीय संसाधन: ग्रामीण अर्थव्यवस्था के संबंध में आवश्यक अल्पकालिक और मध्यम अवधि के ऋण के मामले में इनके वित्त पर्याप्त नहीं हैं।
- बहुत अधिक मात्रा में ऋण बकाया: पैक्स के कुल ऋण का 40% से अधिक हिस्सा गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) के रूप में वर्गीकृत है।
- अन्य: कुशल एवं प्रशिक्षित मानव संसाधन की कमी, डिजिटल अवसंरचना की कमी, आदि।