अर्बन चैलेंज फंड (Urban Challenge Fund: UCF) | Current Affairs | Vision IAS
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अर्बन चैलेंज फंड (Urban Challenge Fund: UCF)

Posted 10 Apr 2025

Updated 11 Apr 2025

42 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

केंद्रीय बजट 2025-26 में अर्बन चैलेंज फंड (UCF) शुरू करने का प्रस्ताव किया गया।

अर्बन चैलेंज फंड (UCF) क्या है?

  • 1 लाख करोड़ रुपये का यह फंड राज्यों को मौजूदा शहरों में संधारणीय शहरीकरण तथा शहरी पुनर्विकास को बढ़ावा देने के लिए इनोवेटिव तरीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करेगा। निम्नलिखित से जुड़े प्रस्तावों हेतु इस फंड का उपयोग किया जाएगा:
    • ग्रोथ हब के रूप शहर,
    • शहरों का क्रिएटिव पुनर्विकास, और 
    • जल एवं स्वच्छता (वाटर एंड सैनिटेशन)
  • वित्तपोषण का तरीका: यह उपयोगी परियोजनाओं की लागत का 25% तक वित्त-पोषण करेगा, बशर्ते कि कम-से-कम 50% राशि बॉण्ड्स, बैंक ऋण और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) के जरिए जुटाई गई हो।
    • वित्त वर्ष 2025-26 के लिए 10,000 करोड़ रुपये के आवंटन का प्रस्ताव किया गया है।

'अर्बन चैलेंज फंड' की आवश्यकता क्यों है?

  • बढ़ती शहरी आबादी की जरूरतों को पूरा करना: भारत की कुल आबादी में शहरी आबादी 2001 में  27.7% थी, जो बढ़कर 2011 में 31.1% (377.1 मिलियन) हो गई। 2011 की जनगणना के अनुसार, यह प्रति वर्ष 2.76% की दर से बढ़ी है।
  • सतत विकास सुनिश्चित करना: भारतीय शहरों को बढ़ते जल संकट, भूकंप, प्रदूषण और शहरी ऊष्मा द्वीप (अर्बन हीट लैंड) प्रभाव जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
    • उदाहरण के लिए, दिल्ली भूकंपीय जोन IV में स्थित है। साथ ही यह दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है।
  • विकास परियोजनाओं को बढ़ावा देना: यह परिवहन, लॉजिस्टिक्स, ऊर्जा, जल और स्वच्छता जैसी महत्वपूर्ण अवसंरचना परियोजनाओं के एकीकृत विकास पर केंद्रित रहेगा।
  • उपलब्ध धनराशि का प्रभावी तरीके से उपयोग: यह फंड सुनिश्चित करेगा कि धनराशि को उपयोगी और आवश्यकताओं पर आधारित परियोजनाओं में प्रभावी तरीके से उपयोग किया जाए।
  • शहरी नियोजन संबंधी समस्याओं का समाधान: उच्च शहरी घनत्व वाले भू-क्षेत्रों का समुचित उपयोग नहीं हो पाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इन जमीनों के स्वामित्व का रिकॉर्ड सही से नहीं रखा गया है और इनका स्वामित्व कई लोगों के पास है। 
    • संविधान की 12वीं अनुसूची के अनुसार, शहरी नियोजन (अर्बन प्लानिंग) राज्य सूची का विषय है।
  • मानव संसाधन की कमी को दूर करना: राज्य मशीनरी में योग्य शहरी योजनाकारों की कमी एक बड़ी समस्या है, जिससे प्रभावी शहरी नियोजन एवं डिजाइन तैयार नहीं हो पाता है।

भारत में शहरीकरण

  • शहरीकरण: यह पारंपरिक ग्रामीण अर्थव्यवस्था से आधुनिक औद्योगिक अर्थव्यवस्था में रूपांतरण का एक संकेतक है।
    • यह एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है। इसके जरिए कोई भी राष्ट्र कृषि प्रधान से औद्योगिक समाज में परिवर्तित होता है।
  • 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में शहरी इकाई (अर्बन यूनिट) में निम्नलिखित शामिल हैं: 
  • वे सभी प्रशासनिक इकाइयां जो नगर निगम, नगर पालिका, कैंटोनमेंट बोर्ड, अधिसूचित नगर क्षेत्र समिति, टाउन पंचायत, नगर पालिका आदि के रूप में वैधानिक रूप से परिभाषित की गई हैं। जिन वैधानिक नगरों (टाउन) की जनसंख्या 1,00,000 से अधिक है, उन्हें शहर (सिटी) की श्रेणी में रखा जाता है।
  • वे नगरीय क्षेत्र जो निम्नलिखित तीन मानदंडों को पूरा करते हैं:
    • न्यूनतम 5,000 की जनसंख्या
    • कम-से-कम 75% पुरुष कामकाजी आबादी गैर-कृषि क्षेत्रकों में कार्यरत हों।
    • जनसंख्या घनत्व 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी (1,000 प्रति वर्ग मील) या इससे अधिक हो।
  • भारत में शहरीकरण की प्रमुख विशेषताएं
    • गरीबी की वजह से शहरीकरण: भारत में आर्थिक संकट के कारण भी शहरीकरण को बढ़ावा मिलता है। आर्थिक संकट के कारण ग्रामीण-से-शहरी और शहरी-से-शहरी प्रवासन होता है।
      • यह पश्चिमी देशों की विपरीत स्थिति है जहां औद्योगीकरण पहले हुआ, जिससे रोजगार के अवसर बढ़े और ग्रामीण लोग शहरों की ओर आकर्षित हुए।
  • धीमी प्रगति: भारत में शहरीकरण की गति धीमी रही है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों को शहरी क्षेत्र में पुनर्वर्गीकृत करने की प्रक्रिया धीमी है।
    • "शहर" का दर्जा न मिलने से इन बस्तियों की योजना बनाने और प्रबंधन में संस्थागत चुनौतियां आती हैं।
  • शहरीकरण का स्तर समान नहीं: भारत में शहरीकरण के स्तर के मामले में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अंतर देखने को मिलता है।
    • गोवा, केरल, महाराष्ट्र जैसे आर्थिक रूप से समृद्ध राज्यों में शहरीकरण की दर उच्च रही है।
  • पुरानी परिभाषा: शहरी क्षेत्र की परिभाषा 1961 में निर्धारित मानदंडों पर आधारित है।
    • वर्तमान में, भारत की सामाजिक-आर्थिक संरचना बदल गई है, और शहर आर्थिक विकास के केंद्र (Loci of Economic Growth) बन चुके हैं।
  • शहरी क्षेत्रों में उपेक्षित बस्तियां: भारत की शहरी अवसंरचना को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे: प्रवासियों की बढ़ती संख्या, मलिन बस्तियों का विस्तार, जन सेवाओं पर बढ़ता दबाव, सामाजिक अलगाव, आदि।

भारत में शहरी क्षेत्रों की स्थिति सुधारने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?

  • शहरी गवर्नेंस व्यवस्था को फिर से व्यवस्थित करना और मजबूत बनाना: द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिशों के आधार पर शहरी प्राधिकरणों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को स्पष्ट तरीके से निर्धारित किया जाना चाहिए।
  • शहरी मास्टर प्लान: वैधानिक दर्जा प्राप्त मास्टर प्लान सामाजिक-आर्थिक विकास, जीवन की गुणवत्ता में सुधार, समावेशन, नागरिक भागीदारी, पर्यावरणीय संधारणीयता आदि के लिए अनिवार्य है।
    • नीति आयोग की 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 52% वैधानिक नगरों के पास मास्टर प्लान नहीं है
  • शहरी नियोजन विशेषज्ञों की नियुक्ति: भारतीय सूचना सेवा (IIS) जैसी सिविल सेवाओं की तर्ज पर "अखिल भारतीय शहरी नियोजन सेवा" की स्थापना की जानी चाहिए ताकि योग्य योजना-विशेषज्ञ उपलब्ध हो सकें।
    • नीति आयोग ने "नेशनल काउंसिल ऑफ टाउन एंड कंट्री प्लानर्स" को वैधानिक संस्था के रूप में गठित करने की सिफारिश की है।
  • समन्वित क्षमता निर्माण कार्यक्रम: केंद्रीय आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय (MoHUA) द्वारा नगर नियोजकों और शहरी अधिकारियों के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रमों का वित्त-पोषण किया जा रहा है।
    • इस कार्यक्रम को और मजबूत किया जाना चाहिए तथा मंत्रालय द्वारा स्थापित उत्कृष्टता केंद्रों को अधिक सशक्त बनाना चाहिए।
  • मौजूदा कानूनों की समीक्षा करना: राज्यों को शहरी नियोजन से जुड़े कानूनों की नियमित समीक्षा करनी चाहिए। इनमें नगर और राष्ट्रीय नियोजन या शहरी और क्षेत्रीय विकास अधिनियम आदि शामिल हैं।
  • नागरिकों की भागीदारी: नागरिकों की अधिक भागीदारी के बिना तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा बनाई गई योजना को जमीनी स्तर पर लोग स्वीकार नहीं करते हैं।
  • निजी क्षेत्र की भूमिका को बढ़ाना: लाभकारी रोजगार के अवसर पैदा करके तथा तकनीकी परामर्श सेवाओं की प्राप्ति के लिए निष्पक्ष प्रक्रियाओं को अपनाकर निजी क्षेत्र की भूमिका बढ़ाई जा सकती है।

शहरी क्षेत्रों के सुधार के लिए उठाए गए कदम

भारत में शुरू की गई पहलें

  • स्वच्छ भारत मिशन: इस मिशन में सेफ सैनिटेशन, अपशिष्ट प्रबंधन, आदि पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। इसमें घर-घर जाकर कचरा जमा करना, अलग-अलग तरह के अपशिष्टों को अलग-अलग जमा करना, अपशिष्ट प्रोसेसिंग आदि शामिल हैं।
  • स्मार्ट सिटी मिशन: इसके तहत, ऐसे शहरों को बढ़ावा दिया जाता है जो 'स्मार्ट समाधानों' के माध्यम से प्रमुख अवसंरचनाओं, स्वच्छ और संधारणीय पर्यावरण और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करते हैं।
  • राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (NULM):  इसका उद्देश्य शहरी गरीब परिवारों की गरीबी और अभावों को कम करना है, जिससे उन्हें लाभदायक स्वरोजगार और कौशल आधारित पारिश्रमिक वाले रोजगार प्राप्त करने में सहायता मिल सके।
  • पीएम स्वनिधि योजना: यह केंद्रीय आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय की माइक्रो-क्रेडिट योजना है। योजना के तहत स्ट्रीट वेंडर्स को अपना व्यवसाय फिर से शुरू करने के लिए कम ब्याज दर पर कार्यशील ऋण प्रदान किया जाता है।
  • प्रधान मंत्री आवास योजना-शहरी (PMAY-U): इसका उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों/ निम्न-आय वर्गों और मध्यम-आय वर्गों को शहरी क्षेत्रों में आवास उपलब्ध कराना है।
  • कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन (AMRUT): इसके तहत चुनिंदा शहरों और कस्बों में जलापूर्ति, सीवरेज जैसी अवसंरचनाओं के विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
  • पूंजीगत निवेश के लिए राज्यों को विशेष सहायता योजना 2022-23 – भाग VI (शहरी योजना सुधार) जैसी योजनाओं के तहत राज्यों को प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है।

वैश्विक पहलें

  • सतत विकास लक्ष्य-11: इसका उद्देश्य शहरों और मानव बस्तियों को समावेशी, सुरक्षित, मजबूत (रेजिलिएंट) और संधारणीय बनाना है।
  • यूएन हैबिटेट: यह संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर सभी प्रकार के शहरीकरण और मानव बस्तियों से जुड़े मामलों के लिए केन्द्रीय संगठन है।
  • शुरू की गई कुछ अन्य पहलें हैं- ग्लोबल एलायंस फॉर बिल्डिंग्स एंड कंस्ट्रक्शन (ग्लोबल ABC), अर्बनशिफ्ट इनिशिएटिव, या शहरी वातावरण में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा शुरू किया गया कूल कोएलिशन। 
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