सुर्ख़ियों में क्यों?
केंद्रीय बजट 2025-26 में 'कपास उत्पादकता मिशन' की घोषणा की गई।
कपास उत्पादकता मिशन के बारे में
- यह पांच-वर्षीय मिशन है। इसके उद्देश्य हैं- कपास की उत्पादकता और उत्पादन सततता में सुधार करना तथा एक्स्ट्रा-लॉन्ग स्टेपल (ELS) वाली कपास की किस्मों के उत्पादन को बढ़ावा देना।
स्टेपल कॉटन फाइबर के बारे मेंस्टेपल एकल कॉटन फाइबर होता है। स्टेपल की लंबाई के आधार पर, कॉटन को निम्नलिखित प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है:
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- क्रियान्वयन मंत्रालय: केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय
- यह मंत्रालय कपास उगाने वाले किसानों को वैज्ञानिक और तकनीकी सहायता प्रदान करेगा।
- यह सरकार के समग्र 5F विजन के अनुरूप है। इसके तहत किसानों की आय बढ़ाने तथा भारत के पारंपरिक वस्त्र क्षेत्रक को कायाकल्प करने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले कपास की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित की जाएगी।
- यह आयात पर निर्भरता को कम करने तथा भारत के वस्त्र क्षेत्रक को विश्व में और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने में मदद करेगा। इस क्षेत्र में 80% भागीदारी MSME क्षेत्रक की है।
कपास मिशन की आवश्यकता क्यों है?
- उत्पादकता में वृद्धि नहीं होना: कपास की उत्पादकता 2023-24 में 435 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी, और 2024-25 में भी लगभग समान (447 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) स्तर पर बनी रही। इस तरह उत्पादकता बढ़ नहीं रही है।
- वर्षा-सिंचित फसल: भारत में विशेष रूप से मध्य और दक्षिणी राज्यों में अधिकांश कपास उत्पादक क्षेत्र सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भर है।
- लगभग 67% कपास उत्पादन वर्षा सिंचित क्षेत्रों में और 33% उत्पादन सिंचित भूमि पर होता है।
- कीटों का हमला: कपास की फसल पर कीटों के हमले और बीमारियों के संक्रमण का खतरा बना रहता है। उदाहरण के लिए, गुलाबी सुंडी (पिंक बॉलवर्म), व्हाइटफ्लाई आदि कीट कपास की फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाते हैं।
- कीमतों में उतार-चढ़ाव: कपास की कीमतों में अधिक उतार-चढ़ाव देखा जाता है। इसके बाजार की अवसंरचना भी विकसित नहीं है। साथ ही, कपास निर्यात नीति में भी स्पष्टता का अभाव है।

भारत में कपास का उत्पादन, उत्पादकता और खपत
भारत में कपास उत्पादन का महत्त्व
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कपास (वैज्ञानिक नाम: Gossypium spp)
- कपास मुलायम और रेशेदार फाइबर होता है। यह बीजों के चारों ओर एक सुरक्षात्मक खोल (बॉल) के भीतर विकसित होता है।
- यह एक झाड़ीदार (अर्ध-शुष्कप्रिय) पौधा है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका, अफ्रीका, मिस्र और भारत सहित दुनिया के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की देशज (नेटिव) फसल है।
- कपास की चार प्रमुख प्रजातियां निम्नलिखित हैं:
- गॉसीपियम आर्बोरियम और गॉसीपियम हर्बेशियम – एशियाई कपास
- गॉसीपियम बारबाडेंस –इजिप्शियन कपास
- गॉसीपियम हिर्सुटम – अमेरिकन अपलैंड कपास
- भारत दुनिया का एकमात्र देश है, जहां कपास की उपर्युक्त चारों प्रजातियां उगाई जाती हैं।
- गॉसीपियम हिर्सुटम (G. Hirsutum) भारत में 90% हाइब्रिड कॉटन उत्पादन में उपयोग में लाई जाती है। वर्तमान में सभी Bt कपास हाइब्रिड इसी प्रजाति से संबंधित हैं।
बीटी कपास (Bt Cotton) के बारे में
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कपास की खेती के लिए अनुकूल जलवायु और मृदा:
- तापमान:
- अंकुरण के चरण में न्यूनतम 15°C तापमान की आवश्यकता होती है। इसके हिस्सों के विकास के दौरान आदर्श तापमान 21-27°C होना चाहिए।
- यह अधिकतम 43°C तक का तापमान सहन कर सकता है, हालांकि 21°C से कम तापमान इसके लिए हानिकारक होता है।
- फसल की वृद्धि के लिए कम-से-कम 210 पाले-रहित दिन और 50 से 100 सेंटीमीटर वर्षा की आवश्यकता होती है।
- फल लगने के दौरान गर्म दिन और ठंडी रातों के बीच तापमान में अधिक अंतर होने से फाइबर और बोल का अच्छा विकास होता है।
- मृदा: कपास अलग-अलग प्रकार की मृदाओं में उगाई जाती है: जैसे कि, उत्तर भारत में अच्छी जल-निकासी वाली गहरी जलोढ़ मृदा; मध्य भारत में विभिन्न गहराइयों वाली काली चिकनी मृदा; तथा दक्षिण भारत में काली एवं मिश्रित काली-लाल मृदा।
- कपास अर्ध-लवण सहिष्णु पौधा है, हालांकि जलभराव वाली मृदा में फसल खराब होने का खतरा रहता है। इसलिए, सिंचित लेकिन बेहतर जल निकासी वाली और नमी बनाए रखने वाली मृदा उपयुक्त होती है।
- कपास उगाने के मौसम:
- उत्तर भारत में: अप्रैल-मई
- दक्षिण भारत में: मानसून पर निर्भर, दक्षिण की ओर बढ़ने पर देरी से बुवाई।
कपास उत्पादन क्षेत्र के विकास के लिए किए गए अन्य उपाय
- कपास के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) योजना: केंद्र सरकार कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (CCI) के जरिए किसानों से MSP पर कपास की खरीद करती है।
- किसानों से खरीदी जाने वाली कपास की अधिकतम मात्रा निर्धारित नहीं है।
- कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिश पर फेयर एवरेज क्वालिटी (FAQ) की दो मूलभूत किस्मों; मीडियम स्टेपल और लॉन्ग स्टेपल लंबाई वाली कपास के लिए MSP घोषित की जाती है।
- भारतीय कपास की ब्रांडिंग: "कस्तूरी इंडियन कॉटन" ब्रांड लॉन्च किया गया, जिससे भारत आत्मनिर्भर बने और स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा मिले।
- स्व-विनियमन: उद्योगों को भारतीय कस्तूरी कॉटन ब्रांड की ट्रेसेब्लिटी, सर्टिफिकेशन और ब्रांडिंग की पूरी जिम्मेदारी उठाने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
- मोबाइल ऐप "Cott-Ally": किसानों को MSP, सर्वोत्तम कृषि पद्धतियों और नज़दीकी CCI खरीद केंद्रों की जानकारी देने के लिए "Cott-Ally" नाम से किसान अनुकूल मोबाइल ऐप लॉन्च किया गया है।
- तकनीकी पहले: इनमें हाई-डेंसिटी प्लांटिंग सिस्टम (HDPS), गुणवत्ता का वैज्ञानिक मूल्यांकन, आधुनिक जिनिंग और प्रेसिंग फैक्ट्रियों में कॉटन प्रोसेसिंग, एक्सटेंशन सर्विसेज, आदि शामिल हैं।
निष्कर्ष:
कॉटन प्रोसेसिंग में सुधार को सिर्फ धागा और बुनाई तक सीमित न रखकर, इसमें तैयार उत्पादों के निर्माण को शामिल करने की आवश्यकता है। कपास आधारित वस्त्र उद्योग में MSMEs की भूमिका महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे भारत के कपास वस्त्र उद्योग को बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभाते हैं। कपास मिशन गुणवत्ता युक्त कपास उत्पादन को बढ़ावा देगा, जिससे किसानों की आय में वृद्धि होगी, निर्यात को बढ़ावा मिलेगा, और ब्रांड इंडिया को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी, जिससे भारत आत्मनिर्भर बनेगा।