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भारत में गुणवत्तापूर्ण उच्चतर शिक्षा

Posted 10 Apr 2025

Updated 14 Apr 2025

50 min read

सुर्ख़ियों में क्यों? 

नीति आयोग ने 'राज्यों और राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण उच्चतर शिक्षा का विस्तार शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है।

राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालय

प्रांतीय अधिनियम या राज्य अधिनियम द्वारा स्थापित या निगमित तथा राज्य सरकार द्वारा ही वित्त-पोषित विश्वविद्यालयों को राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालय (SPUs) कहा जाता है।

भारत में उच्चतर शिक्षा की स्थिति 

AISHE रिपोर्ट 2021-2022 के अनुसार-

  • प्रवेश और नामांकन:
    • संस्थान: देश में 1,168 विश्वविद्यालय, 45,473 कॉलेज और 12,002 स्टैंड अलोन संस्थान हैं। 
  • छात्र नामांकन: 4 करोड़ से अधिक छात्र उच्चतर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इस मामले में भारत चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया है।
  • सकल नामांकन अनुपात (GER): यह 1950-51 के 0.4 से बढ़कर 2021-22 में 28.4 हो गया, जो 71 गुना वृद्धि को दर्शाता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 का लक्ष्य 2035 तक GER को बढ़ाकर 50% करना है।
  • लैंगिक समानता सूचकांक (GPI): यह 2011-12 के 0.87 से बढ़कर 2021-22 में 1.01 हो गया, जिसमें 16% का सुधार देखा गया है।
  • गुणवत्ता और शोध: 
    • छात्र-शिक्षक अनुपात (PTR): पिछले 5 वर्षों से 23:1 पर स्थिर बना हुआ है।
    • शोध: भारत का वैश्विक शोध में योगदान 2017 के 3.5% से बढ़कर 2024 में 5.2% हो गया, लेकिन उच्चतर शिक्षा कुल शोध आउटपुट में केवल 10% का योगदान देती है।
  • वित्त-पोषण: केंद्र और राज्यों द्वारा संयुक्त व्यय (GDP के प्रतिशत के रूप में)-
    • विश्वविद्यालय और उच्चतर शिक्षा: 0.62%
    • तकनीकी शिक्षा: 0.95%
    • समग्र तृतीयक (Tertiary) शिक्षा: 1.57% (यह खर्च अधिकांश यूरोपीय देशों से बेहतर है, लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम से अभी भी थोड़ा पीछे है)।

भारत में गुणवत्तापूर्ण उच्चतर शिक्षा को प्राप्त करने में आने वाली मुख्य चुनौतियां

  • अकुशल प्रत्यायन (Accreditation) प्रणाली: NAAC प्रत्यायन प्रणाली को लागू हुए लगभग 35 वर्ष हो चुके हैं, फिर भी देश भर में 39% से भी कम विश्वविद्यालयों को प्रत्यायन प्राप्त है। इसका आंशिक कारण प्रत्यायन की उच्च लागत है।
  • वित्तीय अंतराल: भारत समग्र तृतीयक शिक्षा बजट के मामले में वैश्विक स्तर पर चौथे स्थान पर है। हालांकि, तृतीयक शिक्षा पर इसका प्रति व्यक्ति सरकारी व्यय केवल लगभग 30 अमेरिकी डॉलर है।
    • यह ब्राज़ील (2.6 गुना अधिक) जैसे कई उभरते देशों और संयुक्त राज्य अमेरिका (35 गुना अधिक) जैसे अधिकांश विकसित देशों से कम है।
  • कम प्रभावी शोध: 
    • सरकार और उच्चतर शिक्षा संस्थान (HEIs) अनुसंधान एवं विकास पर बहुत कम खर्च करते हैं। सरकार GDP के लगभग 0.7% के बराबर ही खर्च करती है। इसके परिणामस्वरूप, नवाचार के अच्छे परिणाम सामने नहीं आते हैं।
    • शोधकर्ताओं को वित्त-पोषण, मान्यता, प्रोटोटाइप के व्यवसायीकरण और करियर में उन्नति के अवसरों जैसे प्रोत्साहनों की कमी है। इस कारण गुणवत्तापूर्ण PhD छात्रों की कमी रहती है। इससे उच्चतर शिक्षा संस्थानों (HEIs) में फैकल्टी की कमी हो जाती है।
  • नीतिगत और गवर्नेंस संबंधी मुद्दे:
    • बहु-विषयक शिक्षा में अंतराल: MERUs के लिए कोई ठोस संरचना नहीं है। साथ ही, प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल, AI, डेटा गोपनीयता जैसे क्षेत्रकों में स्पष्ट नीतियों का अभाव है।
    • विश्वविद्यालय पर कर का बोझ: जो पैसे विश्वविद्यालय को दान (जैसे- CSR) के रूप में मिलते हैं, उन पर भी टैक्स लगता है। साथ ही, विश्वविद्यालय के पास कई तरह की इमारतें और सुविधाएं होती हैं। इन सुविधाओं के लिए बिजली और पानी जैसी चीजों के लिए उच्च टैक्स लगाया जाता है। इससे विश्वविद्यालय का खर्च बहुत बढ़ जाता है।
    • सीमित स्वायत्तता: उच्चतर शिक्षा संस्थानों को शुल्क या पाठ्यक्रम तय करने की स्वतंत्रता के साथ-साथ प्रशासनिक स्वायत्तता की कमी का भी सामना करना पड़ता है। इससे निर्णय लेने की प्रक्रिया प्रभावित होती है, और नवाचार बाधित होता है।
  • क्षेत्रीय असमानताएं: AISHE रिपोर्ट 2021-2022 के अनुसार-
    • विश्वविद्यालय घनत्व (प्रति 1 लाख पात्र छात्र पर): 
      • सर्वाधिक सिक्किम (10.3), अरुणाचल प्रदेश (5.6), लद्दाख (5.2), आदि में है।
      • जबकि बिहार (0.2), उत्तर प्रदेश (0.3), पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र (0.6) में यह घनत्व राष्ट्रीय औसत से भी कम है।
    • सकल नामांकन अनुपात (GER): 
      • दक्षिणी राज्यों जैसे कि तमिलनाडु (47- सबसे अधिक), केरल, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में GER का स्तर उच्च है। वहीं उत्तरी राज्यों जैसे कि बिहार, झारखंड, ओडिशा और उत्तर प्रदेश में GER का स्तर काफी निम्न है।
    • लैंगिक समानता सूचकांक (GPI): यह केरल में सबसे अधिक (GPI 1.44) है। उसके बाद हिमाचल प्रदेश और मेघालय का स्थान आता है। जबकि ओडिशा (0.88) और त्रिपुरा (0.89) में सबसे कम GPI है।
    • छात्र-शिक्षक अनुपात (PTR): 
      • तमिलनाडु (14), गोवा, कर्नाटक और केरल में छात्र-शिक्षक अनुपात राष्ट्रीय औसत से बेहतर है।
      • जबकि बिहार (64), झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में छात्र-शिक्षक अनुपात राष्ट्रीय औसत से भी नीचे है।

गुणवत्तापूर्ण उच्चतर शिक्षा के लिए प्रमुख पहलें

  • 2025-26 के बजट में मुख्य घोषणाएं:
    • 10,000 प्रधान मंत्री अनुसंधान फेलोशिप (PMRF) का चयन करना। 
      • PMRF योजना का उद्देश्य भारत के सबसे प्रतिभाशाली छात्रों का डॉक्टरेट अनुसंधान में समर्थन करना है।
    • दूसरी जनरेशन के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (IITs) में 6,500 सीटों की वृद्धि करना।
    • क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए भारतीय भाषा टेक्स्टबुक योजना शुरू की गई है। 
  • मूल्यांकन और रैंकिंग:
    • राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (NAAC): NAAC की स्थापना 1994 में UGC के तहत एक स्वायत्त संस्थान के रूप में की गई थी। इसने उच्चतर शिक्षा संस्थानों के मूल्यांकन और उन्हें प्रत्यायन देने के लिए सात मानदंड स्थापित किए हैं।
    • राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF): NIRF को 2015 में शुरू किया गया था। यह पूरे भारत के उच्चतर शिक्षा संस्थानों को एक मानकीकृत पद्धति से रैंकिंग प्रदान करता है।
  • अवसंरचना संबंधी विकास:
    • उच्चतर शिक्षा वित्त-पोषण एजेंसी (HEFA): इसका उद्देश्य प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में पूंजीगत परिसंपत्तियों तथा अनुसंधान प्रयोगशालाओं, खेल सुविधाओं जैसी अत्याधुनिक अवसंरचना के निर्माण के लिए वित्त-पोषण प्रदान करना है।
    • नॅशनल डिजिटल एजुकेशन आर्किटेक्चर (NDEAR): इसे 2021 में शुरू किया गया था। NDEAR ने शैक्षिक नवाचार को बढ़ावा देने के लिए एक व्यापक डिजिटल अवसंरचना स्थापित की है।
    • प्रधान मंत्री उच्चतर शिक्षा अभियान (PM-USHA): इसका उद्देश्य राज्य सरकार द्वारा संचालित विशिष्ट विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को वित्त-पोषित करना है, ताकि उनकी गुणवत्ता में सुधार हो सके।
  • अनुसंधान एवं विकास:
    • अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (ANRF): इसे देश के विश्वविद्यालयों, कॉलेजों, शोध संस्थानों और प्रयोगशालाओं में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने, विकसित करने तथा उसका विस्तार करने की लिए स्थापित किया गया है।
    • शैक्षणिक और अनुसंधान सहयोग संवर्धन योजना (SPARC): इसका उद्देश्य उच्च गुणवत्ता वाले अनुसंधान को बढ़ावा देना है। इसके लिए यह योजना शीर्ष रैंक वाले भारतीय उच्चतर शिक्षा संस्थानों और वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त विदेशी संस्थानों के बीच साझेदारी की सुविधा प्रदान करती है।
    • वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन (ONOS) योजना: इसके तहत केंद्र सरकार और राज्य सरकारों तथा केंद्र सरकार के अनुसंधान एवं विकास संस्थानों द्वारा प्रबंधित सभी उच्चतर शिक्षा संस्थानों के छात्रों, शिक्षकों व शोधकर्ताओं को अंतर्राष्ट्रीय विद्वानों के उच्च प्रभाव वाले शोध लेखों और जर्नल तक देशव्यापी पहुंच की सुविधा दी जाती है।
    • त्वरित नवाचार और अनुसंधान साझेदारी (PAIR) कार्यक्रम: इसे अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन ने शुरू किया है। इसके तहत उच्च NIRF रैंकिंग वाले संस्थान (हब्स) उभरते संस्थानों (स्पोक्स) को अनुसंधान गतिविधियों में मार्गदर्शन प्रदान करेंगे। इसके अलावा, अपने संसाधनों और विशेषज्ञता का उपयोग करने के लिए पहुंच भी प्रदान करेंगे।
  • रोजगार क्षमता को बढ़ावा: 
    • नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क (NCrF): यह एक व्यापक प्रणाली है, जिसे नई शिक्षा नीति (NEP), 2020 के तहत शुरू किया गया है। इसका उद्देश्य अकादमिक शिक्षा को व्यावसायिक और अनुभवात्मक शिक्षा के साथ एकीकृत करना है।
    • पीएम इंटर्नशिप योजना: इस योजना में रोजगार क्षमता और कौशल विकास को बढ़ावा देने के लिए पांच वर्षों में 1 करोड़ इंटर्नशिप प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया है।

 

गुणवत्तापूर्ण उच्चतर शिक्षा के लिए आगे की राह

  • वित्त-पोषण और फंडिंग: नई शिक्षा नीति (NEP) द्वारा अनुशंसित बजट आवंटन सुनिश्चित किया जाना चाहिए। साथ ही, सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) का अवसंरचना, अनुसंधान और कौशल विकास के लिए उपयोग किया जाना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए- तेलंगाना एकेडमी फॉर स्किल एंड नॉलेज (TASK) को गैर-लाभकारी संगठन के रूप में शुरू किया गया है। इसका उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण मानव संसाधन और सेवाएं प्रदान करके उद्योग-अकादमिक शिक्षा के बीच के अंतर को समाप्त करना है।
  • गवर्नेंस में सुधार: सार्वजनिक विश्वविद्यालयों के लिए 'विनियामक-सुविधाकर्ता' मॉडल (Regulatory-facilitator' model) को अपनाना चाहिए। इसके अलावा, उन्हें पाठ्यक्रम विकास, फैकल्टी की नियुक्ति जैसे मामलों में अधिक स्वायत्तता प्रदान करनी चाहिए। 
  • अवसंरचना में सुधार: उदाहरण के लिए- उत्कृष्टता और समानता के लिए ओडिशा उच्चतर शिक्षा कार्यक्रम (OHEPEE) के तहत 850 कॉलेजों को कवर किया गया है। इसका उद्देश्य शैक्षिक मानकों और मूलभूत अवसंरचना को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित करना है।
  • शिक्षा पद्धति में सुधार: शिक्षण प्रभावशीलता के मूल्यांकन के लिए एक फ्रेमवर्क तैयार करना चाहिए। साथ ही, प्रत्येक विश्वविद्यालय में पाठ्यक्रम समीक्षा समितियों की स्थापना करनी चाहिए।
  • उच्चतर शिक्षा का डिजिटलीकरण: समर्पित डिजिटल लर्निंग सेंटर्स स्थापित करने चाहिए, छात्रों के जीवन की सभी अवस्थाओं में प्रबंधन के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म्स अपनाने चाहिए, आदि।
    • केरल की 'लेट्स गो डिजिटल' पहल के तहत ICT-आधारित शिक्षण विधियों और डिजिटल पाठ्यक्रम सामग्री के माध्यम से डिजिटल शिक्षण पहल की शुरुआत की गई है।
  • शोध की गुणवत्ता में सुधार:
    • नीतिगत फ्रेमवर्क: ANRF के अनुरूप एक राष्ट्रीय अनुसंधान नीति फ्रेमवर्क को विकसित और लागू किया जाना चाहिए। 
    • क्षमता निर्माण: शिक्षकों और प्रशासकों के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम विकसित किए जाने चाहिए।
      • उदाहरण के लिए- महाराष्ट्र स्टेट फैकल्टी डेवलपमेंट एकेडमी की स्थापना शिक्षकों की क्षमता को बढ़ाने के लिए की गई है। 
    • उच्चतर शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीयकरण: उदाहरण के लिए- गुजरात में GIFT सिटी ने विश्व स्तरीय विदेशी विश्वविद्यालयों को अपनी शर्तों के तहत परिसर स्थापित करने की अनुमति दी है। 
    • उद्योग-अकादमिक सहयोग: विश्वविद्यालयों में इंडस्ट्री रिलेशन सेल (IRC) स्थापित करने चाहिए। इसके अलावा CII, फिक्की (FICCI), एसोचैम (ASSOCHAM), नैसकॉम (NASSCOM) जैसे मौजूदा उद्योग संघ मंचों का भी उपयोग करना चाहिए।
      • छात्र-नेतृत्व वाले स्टार्ट-अप्स का समर्थन करने के लिए इनक्यूबेशन सेंटर या को-वर्किंग स्पेस स्थापित किए जाने चाहिए।
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  • गुणवत्तापूर्ण उच्चतर शिक्षा
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  • गुणवत्ता और शोध
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