ज्ञान भारतम मिशन (GYAN BHARATAM MISSION) | Current Affairs | Vision IAS
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ज्ञान भारतम मिशन (GYAN BHARATAM MISSION)

Posted 10 Apr 2025

Updated 13 Apr 2025

31 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

केंद्रीय बजट 2025-26 में भारत की पांडुलिपि विरासत के सर्वेक्षण, दस्तावेज़ीकरण और संरक्षण के लिए ज्ञान भारतम मिशन की घोषणा की गई।

पांडुलिपियां क्या होती हैं?

  • पांडुलिपियां कागज, वृक्ष की छाल, ताड़ के पत्ते आदि पर लिखी गई कम-से-कम 75 वर्ष पुरानी हस्तलिखित रचनाएं होती हैं। इनका वैज्ञानिक, ऐतिहासिक या सौंदर्यात्मक दृष्टि से काफी महत्त्व होता है।
    • उदाहरण के लिए- बक्षाली या बख्शाली पांडुलिपि को भोजपत्र (बर्च की छाल) पर लिखा गया है। यह एक प्राचीन गणितीय पांडुलिपि है जो संभवतः तीसरी या चौथी शताब्दी ईस्वी में लिखी गई थी। 
  • कुछ अध्ययनों ने इस बात का खुलासा किया है कि बख्शाली पांडुलिपि में गणितीय प्रतीक 'शून्य' का सबसे प्राचीन उल्लेख मिलता है।
  • लिथोग्राफ्स और प्रिंटेड वॉल्यूम (मुद्रित ग्रंथ) को पांडुलिपि नहीं माना जाता है।
    • प्रस्तर पर चित्र उकेर कर उसे कागज पर छापने की प्रक्रिया लिथोग्राफी कहलाती है।
  • पांडुलिपियों की विषय-वस्तु इतिहास, धर्म, साहित्य, ज्योतिष और कृषि पद्धतियां आदि हो सकती हैं।
  • भारत को "संसार की स्मृति" कहा जाता है, क्योंकि यहां लगभग 10 मिलियन पांडुलिपियां उपलब्ध हैं। ये 80 प्राचीन लिपियों जैसे कि ब्राह्मी, कुषाण, गौड़ी, लेपचा, आदि में लिखी गई हैं।
    • इनमें से 75% संस्कृत में और 25% क्षेत्रीय भाषाओं में हैं।

 

 

 

ज्ञान भारतम मिशन के बारे में

  • मुख्य घटक:
  • संरक्षण: शैक्षणिक संस्थानों, संग्रहालयों, पुस्तकालयों और निजी संग्रहकर्ताओं के पास मौजूद 1 करोड़ से अधिक पांडुलिपियों का सर्वेक्षण, दस्तावेजीकरण और संरक्षण करना।

भारत में पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए की गई अन्य पहलें

  • राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (NMM): इसकी शुरुआत 2003 में पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय ने की थी। इसका उद्देश्य पांडुलिपियों का पता लगाना और उन्हें संरक्षित करना है।
  • नेशनल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया, कोलकाता: यहां लगभग 3,600 दुर्लभ और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण पांडुलिपियां हैं।
  • एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल: इसे 15 जनवरी, 1784 को सर विलियम जोन्स ने स्थापित किया था। यह संस्था प्राचीन पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण करती है।
  • भारत का राष्ट्रीय अभिलेखागार (NAI): राष्ट्रीय अभिलेखागार में भारत सरकार के प्राचीन अभिलेखों का भंडार है। इसमें भारत की प्रमुख हस्तियों के निजी कागजात भी मौजूद हैं।
  • इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र: यह भारतीय कला और संस्कृति के लिए एक मुख्य संसाधन केंद्र के रूप में कार्य करता है।
  • डिजिटल रिपॉजिटरी का निर्माण: ज्ञान साझा करने के लिए भारतीय ज्ञान प्रणालियों के राष्ट्रीय डिजिटल रिपॉजिटरी का निर्माण किया जाएगा।
  • यह प्लेटफॉर्म विश्व भर के शोधकर्ताओं, छात्रों और संस्थानों के लिए सुलभ होगा।
  • नोडल मंत्रालय: केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय

इस मिशन का महत्त्व

  • मौलिक कर्तव्य: यह संविधान के अनुच्छेद 51A (f)- 'हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्त्व समझना और उसका संरक्षण करना' के उद्देश्य को पूरा करता है।
  • दस्तावेज़ीकरण: मिशन देश में अज्ञात पांडुलिपि भंडारों का पता लगाने, सूचना एकत्र करने के लिए जमीनी स्तर तक पहुंचने तथा पांडुलिपियों की डिजिटल सूची तैयार करने के संदर्भ महत्वपूर्ण है।
  • पांडुलिपि अध्ययन: इससे पांडुलिपि अध्ययन के विभिन्न पहलुओं में विशेषज्ञों और विद्वानों का एक रिसोर्स पुल बनाने में मदद मिल सकती है।
  • संरक्षण: यह मिशन मूर्त सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण करते हुए वर्तमान और भावी पीढ़ियों की इन तक पहुंच सुनिश्चित करेगा।
  • सुलभता: यह दुर्लभ और मूल्यवान ग्रंथों तक व्यापक पहुंच प्रदान करने और उन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रखने में मददगार साबित होगा।
  • सहयोग: ज्ञान प्रणालियों के लिए सहयोगात्मक अनुसंधान और संसाधनों के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करता है।

पांडुलिपि संरक्षण में चुनौतियां

  • पर्यावरण: भारत की विविध जलवायु, विशेषकर तटीय और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उच्च आर्द्रता, तथा प्राकृतिक आपदाओं के कारण पांडुलिपियां जल्दी खराब हो जाती हैं। 
  • जागरूकता की कमी और सांस्कृतिक उपेक्षा: पांडुलिपियों में संग्रहित महत्वपूर्ण पारंपरिक ज्ञान को वर्तमान में अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता है। इस वजह से उनका संरक्षण कार्य उचित रीति से नहीं किया जाता है। 
  • बुनियादी ढांचे की कमी: भारत में पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित पेशेवरों की कमी है। पांडुलिपियों को खराब रखरखाव वाले पुस्तकालयों या जलवायु नियंत्रण के बिना निजी संग्रह में रख दिया जाता है जिससे वे जल्दी नष्ट हो जाती है।
  • भाषाई और लिपि विविधता: पांडुलिपियां अनेक प्राचीन लिपियों (ब्राह्मी, खरोष्ठी आदि) में मौजूद हैं, जिससे उनका ट्रांसक्रिप्शन और संरक्षण करना कठिन हो जाता है।

आगे की राह

  • डिजिटल संरक्षण: इसका अर्थ उन प्रबंधित गतिविधियों की एक श्रृंखला से है, जो डिजिटल सामग्री को लंबे समय तक सुरक्षित और सुलभ बनाए रखने के लिए आवश्यक होती हैं।
  • इसमें उन्नत इमेजिंग तकनीकों और डिजिटल संरक्षण रणनीतियों की मदद से पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण किया जाता है, जिससे उनकी दीर्घकालिक सुरक्षा और वैश्विक पहुंच सुनिश्चित होती है। यह प्रक्रिया शैक्षणिक शोध और शिक्षा में वैश्विक सहयोग को भी बढ़ावा देती है।
  • 3D प्रिंटिंग तकनीक का उपयोग: तारा प्रकाशन वैदिक पुस्तकालय एवं अनुसंधान केंद्र ने पांडुलिपियों के रख-रखाव और उनके संरक्षण के लिए 3D प्रिंटिंग प्रयोगशाला शुरू की है।
  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग: कैम्ब्रिज में MACH प्रयोगशाला द्वारा इनपेंटिंग AI एल्गोरिदम नामक तकनीक का उपयोग पुरानी पांडुलिपियों में क्षति की पहचान करने और खोई हुई छवियों को फिर से बनाने के लिए किया जा रहा है।
  • इनपेंटिंग एक ऐसी तकनीक है, जो किसी छवि के खोए या क्षतिग्रस्त हिस्सों को भरने का काम करती है। इसे कई तरीकों से किया जा सकता है जिसमें डीप लर्निंग मॉडल्स, स्पेसियल प्रोजेक्शंस और पुनरावृत्ति संभाव्यता मॉडलिंग आदि शामिल हैं।

भारत की कुछ महत्वपूर्ण पांडुलिपियां 

पांडुलिपिलेखक
नाट्य शास्त्रभरत मुनि
महाभारतव्यास
महाभाष्यपतंजलि
प्रयोग-रत्नमाला व्याकरणपुरुषोत्तम विद्यावागीश
अर्थशास्त्रचाणक्य
आर्यभटीयआर्यभट्ट
ब्रह्मस्फुटसिद्धान्तब्रह्मगुप्त
सुश्रुत संहितासुश्रुत
अष्टाध्यायीपाणिनि
राजतरंगिणीकल्हण
गीत गोविंद

जयदेव

 

 

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