सुर्ख़ियों में क्यों?
केंद्रीय बजट 2025-26 में भारत की पांडुलिपि विरासत के सर्वेक्षण, दस्तावेज़ीकरण और संरक्षण के लिए ज्ञान भारतम मिशन की घोषणा की गई।
पांडुलिपियां क्या होती हैं?
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ज्ञान भारतम मिशन के बारे में
- मुख्य घटक:
- संरक्षण: शैक्षणिक संस्थानों, संग्रहालयों, पुस्तकालयों और निजी संग्रहकर्ताओं के पास मौजूद 1 करोड़ से अधिक पांडुलिपियों का सर्वेक्षण, दस्तावेजीकरण और संरक्षण करना।
भारत में पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए की गई अन्य पहलें
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- डिजिटल रिपॉजिटरी का निर्माण: ज्ञान साझा करने के लिए भारतीय ज्ञान प्रणालियों के राष्ट्रीय डिजिटल रिपॉजिटरी का निर्माण किया जाएगा।
- यह प्लेटफॉर्म विश्व भर के शोधकर्ताओं, छात्रों और संस्थानों के लिए सुलभ होगा।
- नोडल मंत्रालय: केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय
इस मिशन का महत्त्व
- मौलिक कर्तव्य: यह संविधान के अनुच्छेद 51A (f)- 'हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्त्व समझना और उसका संरक्षण करना' के उद्देश्य को पूरा करता है।
- दस्तावेज़ीकरण: मिशन देश में अज्ञात पांडुलिपि भंडारों का पता लगाने, सूचना एकत्र करने के लिए जमीनी स्तर तक पहुंचने तथा पांडुलिपियों की डिजिटल सूची तैयार करने के संदर्भ महत्वपूर्ण है।
- पांडुलिपि अध्ययन: इससे पांडुलिपि अध्ययन के विभिन्न पहलुओं में विशेषज्ञों और विद्वानों का एक रिसोर्स पुल बनाने में मदद मिल सकती है।
- संरक्षण: यह मिशन मूर्त सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण करते हुए वर्तमान और भावी पीढ़ियों की इन तक पहुंच सुनिश्चित करेगा।
- सुलभता: यह दुर्लभ और मूल्यवान ग्रंथों तक व्यापक पहुंच प्रदान करने और उन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रखने में मददगार साबित होगा।
- सहयोग: ज्ञान प्रणालियों के लिए सहयोगात्मक अनुसंधान और संसाधनों के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करता है।
पांडुलिपि संरक्षण में चुनौतियां
- पर्यावरण: भारत की विविध जलवायु, विशेषकर तटीय और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उच्च आर्द्रता, तथा प्राकृतिक आपदाओं के कारण पांडुलिपियां जल्दी खराब हो जाती हैं।
- जागरूकता की कमी और सांस्कृतिक उपेक्षा: पांडुलिपियों में संग्रहित महत्वपूर्ण पारंपरिक ज्ञान को वर्तमान में अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता है। इस वजह से उनका संरक्षण कार्य उचित रीति से नहीं किया जाता है।
- बुनियादी ढांचे की कमी: भारत में पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित पेशेवरों की कमी है। पांडुलिपियों को खराब रखरखाव वाले पुस्तकालयों या जलवायु नियंत्रण के बिना निजी संग्रह में रख दिया जाता है जिससे वे जल्दी नष्ट हो जाती है।
- भाषाई और लिपि विविधता: पांडुलिपियां अनेक प्राचीन लिपियों (ब्राह्मी, खरोष्ठी आदि) में मौजूद हैं, जिससे उनका ट्रांसक्रिप्शन और संरक्षण करना कठिन हो जाता है।
आगे की राह
- डिजिटल संरक्षण: इसका अर्थ उन प्रबंधित गतिविधियों की एक श्रृंखला से है, जो डिजिटल सामग्री को लंबे समय तक सुरक्षित और सुलभ बनाए रखने के लिए आवश्यक होती हैं।
- इसमें उन्नत इमेजिंग तकनीकों और डिजिटल संरक्षण रणनीतियों की मदद से पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण किया जाता है, जिससे उनकी दीर्घकालिक सुरक्षा और वैश्विक पहुंच सुनिश्चित होती है। यह प्रक्रिया शैक्षणिक शोध और शिक्षा में वैश्विक सहयोग को भी बढ़ावा देती है।
- 3D प्रिंटिंग तकनीक का उपयोग: तारा प्रकाशन वैदिक पुस्तकालय एवं अनुसंधान केंद्र ने पांडुलिपियों के रख-रखाव और उनके संरक्षण के लिए 3D प्रिंटिंग प्रयोगशाला शुरू की है।
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग: कैम्ब्रिज में MACH प्रयोगशाला द्वारा इनपेंटिंग AI एल्गोरिदम नामक तकनीक का उपयोग पुरानी पांडुलिपियों में क्षति की पहचान करने और खोई हुई छवियों को फिर से बनाने के लिए किया जा रहा है।
- इनपेंटिंग एक ऐसी तकनीक है, जो किसी छवि के खोए या क्षतिग्रस्त हिस्सों को भरने का काम करती है। इसे कई तरीकों से किया जा सकता है जिसमें डीप लर्निंग मॉडल्स, स्पेसियल प्रोजेक्शंस और पुनरावृत्ति संभाव्यता मॉडलिंग आदि शामिल हैं।
भारत की कुछ महत्वपूर्ण पांडुलिपियां
पांडुलिपि | लेखक |
नाट्य शास्त्र | भरत मुनि |
महाभारत | व्यास |
महाभाष्य | पतंजलि |
प्रयोग-रत्नमाला व्याकरण | पुरुषोत्तम विद्यावागीश |
अर्थशास्त्र | चाणक्य |
आर्यभटीय | आर्यभट्ट |
ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त | ब्रह्मगुप्त |
सुश्रुत संहिता | सुश्रुत |
अष्टाध्यायी | पाणिनि |
राजतरंगिणी | कल्हण |
गीत गोविंद | जयदेव
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