सुर्ख़ियों में क्यों?
केंद्रीय बजट 2025-26 में भारत की विकास यात्रा के लिए 'कृषि को पहला इंजन' बनाने के तहत बिहार में मखाना बोर्ड के गठन की घोषणा की गई।
अन्य संबंधित तथ्य
- मखाना बोर्ड का गठन मखाना के उत्पादन, प्रोसेसिंग, वैल्यू-एडिशन और विपणन में सुधार के लिए किया जाएगा।
- यह बोर्ड मखाना किसानों को वित्तीय सहायता और प्रशिक्षण दिलाने में मदद करेगा। इसके अतिरिक्त, यह बोर्ड मखाना किसानों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने में भी मदद करेगा।
- बजट आवंटन: 100 करोड़ रुपये
- यह बोर्ड मखाना की खेती से जुड़े किसानों को किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) से जोड़ने में मदद करेगा। इससे मखाना से जुड़ी आर्थिक गतिविधियों को औपचारिक बनाने और किसानों की सामूहिक सौदेबाजी की शक्ति बढ़ाने में मदद मिलेगी।
मखाना के बारे में
- फॉक्सनट को आमतौर पर मखाना कहा जाता है। यह जलीय पुष्पी-फसल है। इसका वानस्पतिक नाम यूरीले फेरोक्स/Euryale ferox (कांटेदार वाटर लिली) है।

- इसकी खेती उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय, दोनों प्रकार की जलवायु में की जाती है।
- मखाना को 'ब्लैक डायमंड' भी कहा जाता है, क्योंकि इसका बाहरी हिस्सा काले रंग का होता है।
- मखाने की खेती शांत बारहमासी जल स्रोतों; तालाबों, गड्ढों, गोखुर झील (oxbow lakes), दलदली और 4-6 फीट की गहराई वाले क्षेत्रों में की जाती है।
- मखाना की पहचान अब सुपर फूड के रूप में की जाने लगी है।
- खेती के लिए आदर्श जलवायु दशाएं
- तापमान: 20 से 35 डिग्री सेल्सियस
- सापेक्ष आर्द्रता: 50% से 90%
- वार्षिक वर्षा: 100 से.मी. से 250 से.मी. के बीच
- मृदा: चिकनी दोमट मृदा
- मखाना का पौधा दक्षिण-पूर्व एशिया और चीन का स्थानिक (एंडेमिक) माना जाता है।
- प्रमुख उत्पादक क्षेत्र:
- भारत:
- भारत में सबसे अधिक मखाना उत्पादन बिहार में होता है। बिहार में देश का 90% मखाना उत्पादित होता है।
- अन्य उत्पादक राज्य: पश्चिम बंगाल, मणिपुर, त्रिपुरा, असम, जम्मू और कश्मीर, ओडिशा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, इत्यादि। हालांकि, इसका वाणिज्यिक उत्पादन केवल कुछ राज्यों द्वारा ही किया जाता है।
- अन्य देश: मखाना नेपाल, बांग्लादेश, चीन, जापान, रूस और कोरिया में भी उगाया जाता है।
- भारत:

मखाना की खेती में चुनौतियां
मखाना की खेती को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए अन्य कदम
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- निम्न उत्पादकता: किसान मखाना की खेती पारंपरिक तरीकों से कर रहे हैं जिसके कारण वे प्रति हेक्टेयर 1.7-1.9 टन मखाना उत्पादित कर रहे हैं। वहीं आधुनिक तकनीकों से मखाना का 3–3.5 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन संभव है।
- मखाना की प्रोसेसिंग के लिए अवसंरचना की कमी: बिहार में फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट्स की संख्या कम है। इसके चलते किसानों को कच्चा मखाना अक्सर बिहार के बाहर की कंपनियों को कम कीमतों पर बेचना पड़ता है। इससे स्थानीय किसानों को मखाना का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है।
- निर्यात से जुड़ी समस्याएं: फ़ूड सेफ्टी और स्वच्छता प्रमाणन की आवश्यकता जैसे सख्त वैश्विक गुणवत्ता मानकों की वजह से मखाना का अधिक निर्यात नहीं हो पाता है। वर्तमान में, बिहार का केवल 2 प्रतिशत मखाना ही अंतर्राष्ट्रीय आवश्यकताओं को पूरा करता है।
- बाजार से जुड़ी समस्याएं: बाजार में मखाना बेचने के लिए संगठित मार्केटिंग चेन का अभाव है। ज्यादातर किसान बिचौलियों को कम कीमत पर मखाना बेचने को मजबूर हैं, जिससे उन्हें कम मुनाफा मिलता है।
- किसानों के पास जानकारी की कमी: मखाना उगाने वाले अधिकतर किसान सरकारी योजनाओं, वित्तीय सहायता और आधुनिक कृषि पद्धतियों के बारे में नहीं जानते हैं।
- अन्य समस्याएं: मखाना उगाने वाले जल स्रोतों में खरपतवार प्रबंधन की कमी, बेहतर गुणवत्ता वाले टूल्स और संबंधित सहायक टूल्स का अभाव, बेहतर कोल्ड स्टोरेज सुविधाएं नहीं होना आदि अन्य महत्वपूर्ण समस्याएं हैं।
निष्कर्ष
मखाना बोर्ड की स्थापना भारत में मखाना की खेती को संगठित तरीके से बढ़ावा देने, अनुसंधान करने और वाणिज्यिक बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह बोर्ड पारंपरिक खेती की कमजोरियों, कटाई के बाद होने वाले नुकसान और विश्व के बाजारों तक नहीं पहुंचने जैसी चुनौतियों का समाधान करके, मखाना को वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी सुपर फूड बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। सरकारी पहलों के साथ-साथ संधारणीय कृषि पद्धतियां न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के अवसर बढ़ाएगी बल्कि मखाना को भारत के कृषि-निर्यात में एक प्रमुख उत्पाद के रूप में भी स्थापित करने में मदद करेंगी।