प्रधान मंत्री धन धान्य कृषि योजना (PRIME MINISTER DHAN DHAANYA KRISHI YOJANA) | Current Affairs | Vision IAS
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प्रधान मंत्री धन धान्य कृषि योजना (PRIME MINISTER DHAN DHAANYA KRISHI YOJANA)

Posted 10 Apr 2025

Updated 11 Apr 2025

32 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

आकांक्षी जिला कार्यक्रम (ADP) के बारे में

  • इसे नीति आयोग ने राज्य सरकारों के सहयोग से शुरू किया है।
  • उद्देश्य: देश भर के 112 सबसे कम विकसित जिलों का तेजी से और प्रभावी तरीके से विकास करना। यह कार्यक्रम 3C मॉडल पर आधारित है। 3C से आशय है:
    • कन्वर्जेन्स (केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का),
    • कोलैबोरेशन (केंद्र और राज्य स्तर के नोडल अधिकारियों और जिला कलेक्टर्स के बीच), और
    • कम्पटीशन (मासिक डेल्टा रैंकिंग के माध्यम से जिलों के बीच)।
  • इस कार्यक्रम में प्रत्येक जिले की क्षमता पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। साथ ही, तत्काल सुधार के लिए आसान लक्ष्यों की पहचान की जाती है और जिलों को मासिक आधार पर रैंकिंग देकर उनके द्वारा की गई प्रगति का मापन किया जाता है।
  • रैंकिंग का आधार: जिलों द्वारा की गई प्रगति को 49 प्रमुख प्रदर्शन संकेतकों के आधार पर आंका जाता है, जो निम्नलिखित 5 व्यापक सामाजिक-आर्थिक क्षेत्रकों से संबंधित हैं-
    • स्वास्थ्य और पोषण, 
    • शिक्षा, 
    • कृषि और जल संसाधन, 
    • वित्तीय समावेशन और कौशल विकास, तथा 
    • अवसंरचना।

वित्त मंत्री ने केंद्रीय बजट 2025-26 में प्रधान मंत्री धन-धान्य कृषि योजना (PMDKY) शुरू करने की घोषणा की।

प्रधान मंत्री धन-धान्य कृषि योजना (PMDKY) के बारे में

  • कवरेज: इस योजना के तहत 100 जिलों को कवर किया जाएगा। जिलों का चयन तीन मुख्य मानकों के आधार पर किया जाएगा। इन मानकों में शामिल है- निम्न फसल उत्पादकता, सामान्य फसल या शस्य गहनता और औसत से कम कृषि ऋण वितरण।
    • फसल या शस्य गहनता (Cropping intensity): यह बताती है कि किसी खेत का कितना प्रभावी तरीके से उपयोग हो रहा है। इसे इस आधार पर मापा जाता है कि एक कृषि वर्ष में एक ही खेत में कितनी बार फसलें उगाई जाती हैं।
  • केंद्रीय कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, अखिल भारतीय स्तर पर, 2021-22 में फसल गहनता 155% दर्ज की गई।
  • आकांक्षी जिला कार्यक्रम से प्रेरित: PMDKY आकांक्षी जिला कार्यक्रम (ADP) की तर्ज पर बनाई गई है। गौरतलब है कि आकांक्षी जिला कार्यक्रम की शुरुआत 2018 में की गई थी।
  • परिव्यय: केंद्रीय बजट में इस योजना के लिए अलग से धनराशि का उल्लेख नहीं किया गया है।
  • कार्यान्वयन रणनीति: यह योजना राज्य सरकारों के सहयोग से लागू की जाएगी। इसके क्रियान्वयन में पहले से चल रही योजनाओं का भी लाभ (कन्वर्जेन्स) उठाया जाएगा।

भारत में कृषि क्षेत्रक

  • भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार: कृषि भारत की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, रोजगार देने और समग्र आर्थिक विकास में इसकी अहम भूमिका है।
  • कृषि उत्पादन और उपज: वित्त वर्ष 2023 में भारत में कुल कृषि उत्पादन 329.7 मिलियन टन रहा। हालांकि इसके बावजूद, चीन, ब्राजील और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों की तुलना में अधिकतर फसलों में कृषि उपज काफी कम बनी हुई है।
    • उदाहरण: भारत में चावल की औसत उपज 2,191 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, जबकि वैश्विक उपज औसत 3,026 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। भारत में गेहूं की औसत उपज 2,750 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, जो वैश्विक औसत 3,289 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से कम है।

भारत में निम्न कृषि उपज के मुख्य कारण

  • लघु और खंडित भूमि जोत: नाबार्ड के मुताबिक, 2021-22 में भारत में औसत भूमि जोतों का आकार केवल 0.74 हेक्टेयर था। खेत (जोत) का आकार छोटा होने से कई तरह की समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
    • जोतों के विखंडन से मशीनों का उपयोग करना और सिंचाई कार्य मुश्किल हो जाता है। इससे कुल उत्पादकता में गिरावट आती है।
  • मानसून पर निर्भरता: भारत की लगभग 51% कृषि भूमि सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भर है। इससे सूखे व अनियमित वर्षा के दौरान कृषि उत्पादकता पर नकारात्मक असर पड़ने का खतरा रहता है।   
  • सिंचाई की अपर्याप्त व्यवस्था: देश में कुल बुवाई योग्य भूमि का लगभग 48.65% हिस्सा अभी भी असिंचित है।
    • यह अनुमान है कि देश की पूरी सिंचाई क्षमता हासिल करने के बाद भी 40% कृषि भूमि सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भर रहेगी।
  • आधुनिक तकनीक का सीमित उपयोग: उच्च उपज देने वाले बीज, उर्वरक और उन्नत मशीनरी सभी को उपलब्ध नहीं होने से कृषि उत्पादकता पर नकारात्मक असर पड़ता है।
  • मृदा क्षरण और रसायनों का अत्यधिक उपयोग: मृदा अपरदन, लवणता; और ऑर्गेनिक पदार्थों की कमी के कारण कृषि उत्पादन में गिरावट आती है। 
  • ऋण और निवेश की कमी: देश में लगभग 12.56 करोड़ लघु और सीमांत किसान है। इनमें से मुश्किल से 20% किसानों को ही बैंकों से ऋण प्राप्त हो पाता है।

कृषि उत्पादकता बढ़ाने हेतु की गई पहलें

  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM): इसकी शुरुआत 2007-08 में की गई थी। इसका उद्देश्य चावल, गेहूं, दाल, मोटे अनाज और पोषक-अनाजों (न्यूट्री-सीरियल्स) के उत्पादन को संधारणीय तरीके से बढ़ाना है।
  • प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना (2015): इस योजना में सिंचाई के कवरेज को बढ़ाने के लिए 'हर खेत को पानी' और जल उपयोग दक्षता में सुधार के लिए 'प्रति बूंद अधिक फसल' पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
  • पीएम-किसान (प्रधान मंत्री किसान सम्मान निधि): इसकी शुरुआत 2019 में की गई थी। यह केंद्रीय क्षेत्रक की एक योजना है। इस योजना के तहत किसानों को आय सहायता के रूप में हर साल 6,000 रुपये तीन समान किस्तों में दिए जाते है।
  • कृषि अवसंरचना निधि (2020-21): इसके जरिए किसानों को फसल कटाई के बाद के प्रबंधन और सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियों में निवेश के लिए मध्यम से दीर्घकालिक ऋण के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। 
  • न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में वृद्धि: सरकार ने 2018-19 से सभी खरीफ, रबी और अन्य वाणिज्यिक फसलों के लिए MSP में वृद्धि की है। इसमें किसानों को उत्पादन की अखिल भारतीय भारित औसत लागत पर कम-से-कम 50% रिटर्न दिया गया है।
  • किसान क्रेडिट कार्ड योजना: इस योजना के तहत किसानों को कम ब्याज दर पर आसानी से ऋण प्राप्त हो जाता है।
    • 2019 में, KCC योजना का विस्तार करते हुए इसमें पशुपालन, डेयरी और मात्स्यिकी क्षेत्रकों को भी शामिल किया गया।
  • प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना (2016): इसका उद्देश्य फसल नुकसान होने की स्थिति में किसानों को बीमा कवरेज प्रदान करना, किसानों  के आय-अर्जन को जारी रखना और किसानों को आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना है।
  • पोषक तत्व आधारित सब्सिडी नीति (2010): यह नीति नाइट्रोजन (N), फास्फोरस (P) और पोटाश (K) उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई है।

निष्कर्ष

भारत में खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण विकास और आर्थिक संवृद्धि सुनिश्चित करने के लिए कृषि उत्पादकता को बढ़ाना महत्वपूर्ण है। आधुनिक सिंचाई पद्धतियां, मशीनीकरण, उच्च उपज वाले बीज और संधारणीय खेती के तरीकों को बढ़ावा देकर, भारत वैश्विक मानकों के अनुरूप अपनी कृषि उत्पादकता को बढ़ा सकता है। इसके अलावा, बाजार तक आसान पहुंच, वित्तीय सहायता और किसानों को सही प्रशिक्षण देने से भी फसलों की पैदावार में बढ़ोतरी हो सकती है। भारत में उच्च पैदावार और अधिक मजबूत कृषि इकोसिस्टम विकसित करने के लिए एक बहुआयामी अप्रोच अपनाने की आवश्यकता है। इसके लिए सरकार की ओर से नीतिगत समर्थन, इनोवेशन और ग्रामीण अवसंरचना के विकास का एकीकरण जरूरी है।

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