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स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण

Posted 10 Apr 2025

Updated 14 Apr 2025

32 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

जल संसाधन संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने 'स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण (SBM-G)' के कार्यान्वयन का विश्लेषण करते हुए एक रिपोर्ट प्रकाशित की है।

स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण (SBM-G) के बारे में

  • इसे 2014 में शुरू किया गया था। यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक स्वच्छता कवरेज प्राप्त करने पर केंद्रित है। 
  • SBM-G के उद्देश्य:
    • चरण-I (2014-2019): महात्मा गांधी की 150वीं जयंती यानी 2 अक्टूबर, 2019 तक देश को खुले में शौच से मुक्त (ODF) बनाना। इसके लिए सभी ग्रामीण परिवारों को शौचालय की सुविधा प्रदान करने का कार्य किया जा रहा था। 
    • चरण-II (2019-2025): इसकी शुरुआत 2020 में ग्रामीण क्षेत्रों में 'संपूर्ण स्वच्छता' सुनिश्चित करने के लिए की गई थी। इसके तहत गांवों को ODF प्लस मॉडल के रूप में विकसित करने हेतु घरेलू शौचालयों और उचित अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली का निर्माण किया जा रहा है। इसमें कोई भी गांव/ परिवार पीछे न छूटे इस सिद्धांत पर ध्यान दिया गया है। 
      • ODF प्लस मॉडल में निम्नलिखित शामिल हैं: -
        • ODF में स्थायित्व (ODF Sustainability);
        • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (Solid Waste Management);
        • तरल अपशिष्ट प्रबंधन (Liquid Waste Management); तथा 
        • ऐसी स्वच्छता, जो दिखे (Visual Cleanliness)। 
  • योजना की मुख्य विशेषताएं:
    • वित्त-पोषण पैटर्न:
      • 60:40- केंद्र और राज्यों के बीच सभी घटकों के लिए।
  • 90:10- पूर्वोत्तर राज्यों और हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड एवं केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के मामले में। 
  • अन्य केंद्र शासित प्रदेश: 100% हिस्सा केंद्र द्वारा वहन किया जाता है।
  • 12,000/- रुपये का प्रोत्साहन: इस मिशन के तहत व्यक्तिगत घरेलू शौचालय निर्माण के लिए सभी BPL परिवारों और कुछ चिन्हित APL परिवारों (SC/ ST, दिव्यांगजन वाले परिवार, गृहस्थल वाले भूमिहीन श्रमिक, लघु व सीमांत किसान, और महिला मुखिया वाले परिवारों) को यह राशि सहायता के रूप में देने का प्रावधान है।
    • BPL: गरीबी रेखा से नीचे। 
    • APL: गरीबी रेखा से ऊपर। 
  • गृहस्थल (Homestead): ऐसे मजदूर जिनके पास खेती के लिए जमीन नहीं है, लेकिन उनके पास रहने के लिए थोड़ी सी जमीन (गृहस्थल) है, जिस पर उनका घर बना हुआ है।
  • जन आंदोलन मॉडल: इसे दुनिया का सबसे बड़ा जन आंदोलन और व्यवहार परिवर्तन कार्यक्रम माना जाता है।
  • स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण (SSG): यह एक वार्षिक सर्वेक्षण है, जिसका आयोजन एक थर्ड पार्टी सर्वेक्षण एजेंसी द्वारा किया जाता है।
  • स्वच्छता ही सेवा (SHS) 2024 अभियान: इसका उद्देश्य देश भर में स्वच्छता प्रयासों में सामूहिक कार्रवाई और नागरिक भागीदारी की भावना को फिर से जगाना है।

योजना की प्रगति और उपलब्धियां

  • चरण-I के प्रभाव:
    • अक्टूबर 2019 तक, देश भर के सभी 36 राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों के सभी गांवों ने स्वयं को ODF घोषित कर दिया था।
    • ग्रामीण स्वच्छता कवरेज: 2014 के 39% से बढ़कर 2019 में 100% हो गया था।
    • स्वास्थ्य: WHO की एक रिपोर्ट के अनुसार, SBM के कारण 2014 की तुलना में 2019 में डायरिया से होने वाली मौतों की संख्या में 3 लाख तक की गिरावट देखने को मिली थी। 
    • पोषण और उत्पादकता: बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के अनुसार, ODF क्षेत्रों की तुलना में गैर-ODF क्षेत्रों के बच्चों में दुबलेपन (Wasting) के मामले 58% अधिक दर्ज किए गए हैं।
    • महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान: यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, 93% महिलाओं ने घर में शौचालय बनने के बाद स्वयं को अधिक सुरक्षित महसूस किया है।
    • स्वास्थ्य व्यय में बचत: यूनिसेफ के अनुसार, ODF गांवों में रहने वाले परिवारों ने हर साल औसतन 50,000 रुपये की बचत की है, क्योंकि उन्हें बीमारियों पर कम खर्च करना पड़ा। 
  • चरण-II की उपलब्धियां:
    • इस चरण में 5,87,529 गांवों में से 5,57,468 गांवों (लगभग 95%) को ODF प्लस घोषित किया गया है।
    • SBM-G डैशबोर्ड (मार्च, 2025) के अनुसार:
      • ODF-प्लस मॉडल राज्य/ केंद्र शासित प्रदेश: सिक्किम और लक्षद्वीप 
      • ODF-प्लस राज्य/ केंद्र शासित प्रदेश: लद्दाख
      • 5 लाख से अधिक गांवों में ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन, दोनों की व्यवस्था है।

कार्यान्वयन में चुनौतियां (जल संसाधन पर संसदीय स्थायी समिति के अनुसार)

  • कमजोर प्रदर्शन: पिछले 5 वर्षों में धीमी प्रगति के कारण लक्ष्यों को हासिल करना मुश्किल हो रहा है-
    • SWM (ठोस अपशिष्ट प्रबंधन) और LWM (तरल अपशिष्ट प्रबंधन) में क्रमशः मात्र 35% एवं 57% लक्ष्य हासिल किए गए हैं।
    • ODF प्लस (मॉडल) गांवों के संबंध में केवल 56% लक्ष्य हासिल किए गए हैं।
    • व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों (IHHLs) तथा सामुदायिक स्वच्छता परिसरों (CSCs) के मामले में क्रमशः मात्र 31% और 8% लक्ष्य हासिल किए गए हैं।
  • आवंटित धनराशि का कम उपयोग: चालू वित्त वर्ष 2024-25 में अब तक केवल 19.61% बजट का उपयोग किया गया है।
  • अतिरिक्त बजटीय संसाधनों (EBR) पर निर्भरता: पिछले 5 वर्षों के दौरान बजटीय आवंटन का 9-17% हिस्सा EBR पर ब्याज भुगतान में खर्च किया गया था। इसके कारण प्रभावी उपयोग के लिए उपलब्ध धनराशि कम हो गई थी।
  • अपर्याप्त प्रोत्साहन: वर्तमान में, BPL परिवारों को व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों (IHHL) के निर्माण के लिए 12,000 रुपये की वित्तीय सहायता दी जाती है, लेकिन यह 2014 के आकलन पर आधारित होने के कारण अब अपर्याप्त है।
  • उचित मूल्यांकन संबंधी चुनौतियां: SSG-2023 मूल्यांकन में कई खामियां हैं, जैसे- छोटे स्तर पर सर्वेक्षण, थर्ड पार्टी सर्वेक्षण एजेंसी की विश्वसनीयता पर संदेह, अपनाई गई कार्य-प्रणाली में दोष, आदि।  
  • क्षेत्रीय असमानता: मणिपुर, मेघालय, झारखंड, पंजाब और नागालैंड जैसे राज्य ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (SWM) लक्ष्यों को प्राप्त करने में पिछड़ रहे हैं।
  • अन्य: 
    • कई राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों में स्वच्छता सेवाओं के लिए पर्याप्त वाहन नहीं हैं; 
    • बहुत कम ब्लॉक्स में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन इकाइयां (PWMUs) स्थापित की गई हैं; 
    • छूटे हुए परिवारों की पहचान के लिए नया सर्वेक्षण नहीं किया गया है, आदि।

सिफारिशें (जल संसाधन पर संसदीय स्थायी समिति)

  • त्वरित कार्यान्वयन: मिशन के तहत निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में आ रही समस्याओं की पहचान और समाधान के लिए राज्य/ केंद्र शासित प्रदेशों के साथ मिलकर त्वरित प्रयास करने की आवश्यकता है। 
  • आवंटित बजट का पूर्ण उपयोग: निर्धारित समय-सीमा में आवंटित बजट का पूर्ण उपयोग सुनिश्चित करने तथा निधियों के विवेकपूर्ण उपयोग एवं उन्हें जारी करने के लिए रोडमैप तैयार करने की जरूरत है। 
    • EBR के माध्यम से धन जुटाने से बचने की कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि इसके कारण ब्याज के रूप में बड़ी राशि का भुगतान करना पड़ता है।
  • व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों के निर्माण के लिए दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि की वर्तमान मुद्रास्फीति दर के आधार पर समीक्षा करने और उसमें संशोधन करने की आवश्यकता है।
  • मुख्य ODF प्लस मापदंडों की कार्यक्षमता का सटीक मूल्यांकन करने के लिए एक व्यापक निगरानी तंत्र विकसित किया जाना चाहिए।
  • ठोस और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करने के लिए स्वच्छता वाहनों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। साथ ही, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिए फॉरवर्ड लिंकेज के विकास एवं कार्यात्मक PWMUs की संख्या बढ़ाने पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
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