सुर्ख़ियों में क्यों?
केंद्रीय खान मंत्रालय ने बैराइट्स, फेल्सपार, अभ्रक और क्वार्ट्ज को लघु खनिजों की सूची से निकालकर "प्रमुख खनिजों" की श्रेणी में शामिल किया है।
अन्य संबंधित तथ्य
- हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन को मंजूरी दी थी। इसके बाद खान मंत्रालय ने खनिजों का पुनर्वर्गीकरण किया है।
- खनिजों का पुनर्वर्गीकरण डॉ. वी.के. सारस्वत की अध्यक्षता वाली एक अंतर-मंत्रालयी समिति की सिफारिशों पर आधारित है।
खनिजों के पुनर्वर्गीकरण का कारण
- लघु खनिजों को प्रमुख खनिजों की श्रेणी में शामिल करने का निर्णय इसलिए लिया गया है क्योंकि जिन चट्टानों में ये खनिज प्राप्त होते हैं उनमें कुछ क्रिटिकल मिनरल्स भी प्राप्त होते हैं। साथ ही, ये खनिज कई हाई-टेक इंडस्ट्रीज में भी प्रयुक्त होते हैं।
- खान मंत्रालय के अनुसार, क्रिटिकल मिनरल्स ऐसे खनिज हैं जो आर्थिक विकास एवं राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अति आवश्यक हैं।
- पैगमाटाइट चट्टानों में क्वार्ट्ज, फेल्सपार और अभ्रक की प्राप्ति:
- ये खनिज पैगमाटाइट चट्टानों में पाए जाते हैं, जिनमें बेरिल, लिथियम, नियोबियम, टैंटलम, मोलिब्डेनम, टिन, टाइटेनियम और टंगस्टन जैसे कई क्रिटिकल मिनरल्स भी मौजूद होते हैं।
- पहले जब क्वार्ट्ज, फेल्सपार और अभ्रक को लघु खनिज के रूप में पट्टे पर दिया जाता था, तो पट्टाधारक क्रिटिकल मिनरल्स की मौजूदगी के बारे में या तो जानकारी नहीं देते थे या इनकी प्राप्ति के लिए प्रयास नहीं करते थे।
- बैराइट और इसका औद्योगिक महत्त्व:
- बैराइट अक्सर चूना पत्थर (लाइमस्टोन) और डोलोस्टोन में कंक्रीट एवं वेन फीलिंग्स के रूप में पाया जाता है। साथ ही, यह एंटीमनी, कोबाल्ट, तांबा, सीसा, मैंगनीज और चांदी के अयस्कों में भी पाया जाता है।
- बैराइट का इस्तेमाल अलग-अलग प्रकार के औद्योगिक कार्यों में होता है। इसका उपयोग ऑयल और गैस ड्रिलिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स, टी.वी. स्क्रीन, रबर, कांच, सिरेमिक, पेंट, एक्स-रे उत्सर्जन को रोकने, चिकित्सा उपकरणों के निर्माण आदि में होता है।

प्रमुख एवं लघु खनिजों के बारे में
- खनिज प्राकृतिक पदार्थ हैं, जो कार्बनिक (ऑर्गेनिक) या अकार्बनिक (इनऑर्गेनिक) रूप से उत्पन्न होते हैं। इन खनिजों में कुछ निश्चित रासायनिक व भौतिक गुण मौजूद होते हैं। ये खनिज वास्तव में चट्टानों एवं अयस्कों के रूप में मौजूद होते हैं।
- खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) (MMDR) अधिनियम, 1957 के तहत खनिजों को मोटे तौर पर दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है- प्रमुख खनिज (Major minerals) और लघु खनिज (Minor minerals)।
- "लघु खनिज" उन खनिजों को संदर्भित करता है जो भवन निर्माण में उपयोग किए जाते हैं, जैसे- पत्थर, बजरी, साधारण मृदा, और विशेष उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाने वाली रेत। इसके अलावा, इसमें साधारण रेत और वे अन्य खनिज शामिल हैं, जिन्हें केंद्र सरकार लघु खनिज के रूप में अधिसूचित करती है।
- "प्रमुख खनिज" में वे सभी खनिज शामिल होते हैं जो लघु खनिजों के रूप में वर्गीकृत नहीं हैं। प्रमुख खनिज के उदाहरण हैं- कोयला, लोहा, जस्ता, चूना-पत्थर आदि।
- खनिजों के लिए गवर्नेंस फ्रेमवर्क:
- खनिजों के विनियमन के लिए कानूनी व्यवस्था: MMDR अधिनियम, 1957 खनन क्षेत्रक को प्रशासित करने वाला प्राथमिक कानून है। हालांकि इस अधिनियम में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस को शामिल नहीं किया गया है।
- खनिजों के प्रबंधन के लिए भारत सरकार ने कुछ अतिरिक्त नियम बनाए हैं। इनमें कुछ नियम निम्नलिखित हैं:
- खनिज रियायत नियम, 1960: इसमें परमाणु और लघु खनिजों को छोड़कर अन्य सभी खनिजों के लिए परमिट, लाइसेंस और पट्टा (लीज) से संबंधित प्रावधान किए गए हैं।
- खनिज संरक्षण एवं विकास नियम, 1988: यह कानून खनिजों का संरक्षण एवं व्यवस्थित विकास सुनिश्चित करता है।
- खनिजों के विनियमन में राज्य सरकारों की भूमिका:
- MMDR अधिनियम, 1957 की धारा 15: यह धारा राज्य सरकारों को लघु खनिजों के लिए नियम बनाने का अधिकार प्रदान करती है।
- MMDR अधिनियम, 1957 की धारा 23C: यह धारा राज्य सरकारों को खनिजों के अवैध खनन, परिवहन और भंडारण को रोकने का अधिकार देती है।
- 2015 में संशोधित MMDR अधिनियम की धारा 9(b): यह धारा राज्य सरकारों को खनन कार्य से प्रभावित प्रत्येक जिले में जिला खनिज फाउंडेशन ट्रस्ट स्थापित करने का अधिकार देती है।