इस वर्ष की रिपोर्ट की थीम है- "वैश्विक कौशल गतिशीलता-भारत का दशक"। यह थीम इस तथ्य पर प्रकाश डालती है कि भारत विश्व की कार्यबल की जरूरतों को पूरा करने के लिए कैसे विशिष्ट स्थिति में है। गौरतलब है कि प्रतिभाशाली लोगों की वैश्विक मांग लगातार बढ़ रही है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर:
- 50% से अधिक भारतीय स्नातक अब रोजगार के योग्य हैं। यह आंकड़ा एक दशक पहले के 33% से अधिक है।
- नियोजनीयता (employability) के मामले में महाराष्ट्र सबसे आगे है, उसके बाद दिल्ली, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश का स्थान है।
- सीमा-पार प्रतिभा गतिशीलता 2030 तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान दे सकती है। इसमें भारत केंद्रीय भूमिका निभाएगा।
वैश्विक प्रतिभा इकोसिस्टम: उभरते अवसर और कार्यबल परिवर्तन
- यूरोप: यूरोप फिलहाल बढ़ती आबादी और महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कौशल की कमी का सामना कर रहा है। इसके कारण यूरोप में अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभा की मांग बढ़ रही है।
- खाड़ी देश: खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) देशों में निर्माण व स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रकों और आई.टी. में मांग में तेजी देखी जा रही है।
- नौकरियों की बदलती प्रकृति: सभी नौकरियों में से 25% में अगले पांच वर्षों के भीतर महत्वपूर्ण बदलाव होंगे। इसके लिए अनुकूलनीय और भविष्य के लिए तैयार कौशल से युक्त कार्यबल की आवश्यकता होगी।
मांग को पूरा करने में भारत की क्षमता
- भारत के कार्यबल में 65% लोग 35 वर्ष से कम आयु के हैं। भारत में लगभग 10-12 मिलियन लोग नौकरी बाजार में प्रवेश करते हैं। यह स्थिति भारत को जनसांख्यिकीय लाभांश प्रदान करती है।
- भारत का आई.टी. उद्योग: भारत का आई.टी. उद्योग, जिसकी 2023 में 245 बिलियन अमेरिकी डॉलर कीमत आंकी गई है, दुनिया भर में डिजिटल परिवर्तन के लिए प्रतिभा प्रदान करने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
- डिजिटल नोमेडिज़म और हाइब्रिड कार्य मॉडल्स के उदय ने भारतीय प्रतिभा के लिए भौगोलिक सीमाओं के बिना वैश्विक स्तर पर योगदान देने के अवसर खोल दिए हैं।