सुप्रीम कोर्ट ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 53(2) को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करते हुए उपर्युक्त सुझाव दिया, ताकि लोकतंत्र में जन-प्रतिनिधित्व की भावना बनी रहे।
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 53(2) में निर्विरोध निर्वाचन यानी एक ही प्रत्याशी के उम्मीदवार होने की स्थिति में उस उम्मीदवार के प्रत्यक्ष चुनाव का प्रावधान किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियां:
- लोकतंत्र और बहुमत का सिद्धांत: शीर्ष न्यायालय ने कहा कि लोकतंत्र बहुमत के सिद्धांत पर आधारित है, अतः निर्विरोध चुनाव में भी यह आवश्यक होना चाहिए कि उम्मीदवार को न्यूनतम मत प्रतिशत प्राप्त हो।
- जन-प्रतिनिधित्व: न्यायालय का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बिना किसी प्रतिस्पर्धा के निर्वाचित उम्मीदवार को भी जनता का पर्याप्त समर्थन प्राप्त होना चाहिए।
चुनाव सुधारों पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के ऐतिहासिक निर्णय:
- एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) बनाम भारत संघ (2002) वाद: इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने उम्मीदवारों के लिए अपनी आपराधिक, वित्तीय व शैक्षणिक जानकारी को सार्वजनिक करना अनिवार्य किया।
- पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) बनाम भारत संघ (2013) वाद: इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) पर नोटा (NOTA) विकल्प की शुरुआत की गई। मतदाताओं को चुनाव में उम्मीदवारों को अस्वीकार या ख़ारिज करने का अधिकार दिया गया। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत मतदाताओं के 'राइट टू चॉइस” का मूल अधिकार है।
- लिली थॉमस बनाम भारत संघ (2013) वाद: लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8(4) को रद्द कर दिया गया। इससे दोषी ठहराए गए सांसदों या विधायकों को तत्काल अयोग्य ठहराने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
- लोक प्रहरी बनाम भारत संघ (2013) वाद: चुनाव संबंधी विवादों के त्वरित समाधान की वकालत की गई। इसमें समय पर न्याय सुनिश्चित करने और पारदर्शिता पर जोर दिया गया।
- एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) बनाम भारत संघ (2024) वाद: चुनावी बॉण्ड योजना को असंवैधानिक घोषित किया गया। इसके माध्यम से राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता बहाल की गई।
भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा चुनाव सुधार के लिए गए उठाए गए कदम:
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