हाल ही में, नीति आयोग ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि भारत में कॉर्पोरेट ऋण बाजार की तुलना में सरकारी ऋण बाजार काफी विकसित है।
- ऋण बाजार (Debt Market) प्रतिभूति बाजार का हिस्सा है। ऋण बाजार में ऋण प्रतिभूतियां जारी की जाती हैं और उनकी खरीद-बिक्री की जाती है।
- ऋण प्रतिभूतियों को ‘फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज’ भी कहा जाता है।
- ऋण प्रतिभूतियां मुख्य रूप से केंद्र और राज्य सरकारें, निजी कंपनियां आदि जारी करती हैं।
कॉर्पोरेट ऋण बाज़ार की स्थिति
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार, 2023 में भारत के कॉर्पोरेट ऋण बाज़ार में फिक्स्ड इनकम स्रोत की 20% से अधिक हिस्सेदारी थी।
- IMF के अनुसार, 2023 में भारत में कॉर्पोरेट ऋण बाजार, इंडियन फिक्स्ड इनकम मार्केट का दूसरा सबसे बड़ा सेगमेंट है। सरकारी प्रतिभूतियां 68% की हिस्सेदारी के साथ प्रथम स्थान पर हैं।
- सरकारी प्रतिभूतियां, सरकारी ऋण बाजार का एक प्रमुख हिस्सा हैं।
- प्रमुख डेब्ट इंस्ट्रूमेंट्स हैं: बॉण्ड और कमर्शियल पेपर।
- कमर्शियल पेपर यानी वाणिज्यिक पत्र अन-सिक्योर्ड (कोलेटरल-फ्री) और अल्पकालिक डेब्ट-इंस्ट्रूमेंट है। इसे कंपनियों द्वारा तात्कालिक वित्तीय आवश्यकताओं के लिए फंड जुटाने हेतु जारी किया जाता है।
- प्राथमिक विनियामक: भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI)।
- अवसर: यह ऋण की इच्छुक संस्थाओं को बैंक से ऋण लेने के अलावा एक अन्य विकल्प प्रदान करता है। साथ ही, लंबे समय के लिए कम ब्याज दर पर फंड भी जुटाया जा सकता है।
कॉर्पोरेट ऋण बाजारों के कम विकास के लिए जिम्मेदार मुख्य कारण
- निवेशकों की कम संख्या: ऐसे ऋण बाजारों में मुख्य रूप से बीमा कंपनियां, म्यूचुअल फंड्स जैसी घरेलू संस्थाओं का वर्चस्व है।
- प्राइवेट प्लेसमेंट का प्रभुत्व: इसके तहत ऋण प्रतिभूतियां चुनिंदा लोगों के समूह को ही जारी की जाती हैं।
- अन्य कारण:
- कॉर्पोरेट या कंपनियां बैंक से ऋण लेने को प्राथमिकता देती हैं।
- सरकारी प्रतिभूतियों की तुलना में कॉर्पोरेट प्रतिभूतियों के डिफॉल्ट का जोखिम अधिक होता है, आदि।
कॉरपोरेट ऋण बाजार को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए कदम
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