इसे अरुणाचल प्रदेश के दिरांग में सेंटर फॉर अर्थ साइंसेज एंड हिमालयन स्टडीज (CESHS) ने खोदा है।
- यह परियोजना एक अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक सहयोग का परिणाम है। इसमें CESHS, नॉर्वेजियन जियोटेक्निकल इंस्टीट्यूट (NGI) ओस्लो (नॉर्वे), आइसलैंडिक जियोथर्मल फर्म जियोट्रॉपी ईएचएफ और गुवाहाटी बोरिंग सर्विस (GBS) की ड्रिलिंग टीम शामिल है।

भूतापीय (Geothermal) ऊर्जा के बारे में
- भूतापीय ऊर्जा पृथ्वी से प्राप्त ऊष्मा ऊर्जा है- जियो (भू) + थर्मल (ताप)।
- भूतापीय तकनीक की मदद से इस ऊर्जा/ ऊष्मा को हीटिंग और कूलिंग के लिए उपयोग किया जाता है, या इसे बिजली में बदल दिया जाता है।
- यह आंतरिक ऊष्मा/ तापीय ऊर्जा रेडियोधर्मी क्षय और पृथ्वी के निर्माण से हुई निरंतर ऊष्मा हानि से पैदा होती है।
- लाभ: स्वच्छ व किफायती नवीकरणीय ऊर्जा, साल भर उपलब्धता आदि।
- नुकसान: जमीन धंसने की आशंका, ऊर्जा के परिवहन में उच्च लागत, विषाक्त रसायनों का संभावित उत्सर्जन, आदि।
भूतापीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए कदम
- भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) ने ‘जियोथर्मल एटलस ऑफ इंडिया, 2022’ प्रकाशित किया है। इसमें संभावित भूतापीय स्थलों की पहचान की गई है।
- नवीकरणीय ऊर्जा अनुसंधान एवं प्रौद्योगिकी विकास कार्यक्रम (RE-RTD): यह नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) द्वारा चलाया जा रहा कार्यक्रम है। इसका उद्देश्य भूतापीय सहित सस्ती और स्वदेशी नवीकरणीय ऊर्जा का विकास करना है।
- सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (SCCL) ने तेलंगाना के भद्राद्री कोठागुडेम जिले के मनुगुरु क्षेत्र में 20 किलोवाट का पायलट भूतापीय विद्युत संयंत्र शुरू किया है।