स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की सुरक्षा (Safety of Healthcare Professional) | Current Affairs | Vision IAS
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    स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की सुरक्षा (Safety of Healthcare Professional)

    Posted 30 Oct 2024

    1 min read

    सुर्ख़ियों में क्यों?

    हाल ही में, चिकित्सा पेशेवरों की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित राष्ट्रीय कार्य बल (NTF) की पहली बैठक आयोजित की गई।

    अन्य संबंधित तथ्य 

    • NTF का गठन कोलकाता के आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में स्नातकोत्तर डॉक्टर की हत्या की घटना के बाद किया गया है।
    • NTF को चिकित्सा पेशेवरों की सुरक्षा, कामकाजी परिस्थितियों, कल्याण तथा अन्य संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए प्रभावी सिफारिशें तैयार करने का कार्य सौंपा गया है। 
    • NTF के तहत चार विषयगत उप-समूहों का गठन किया गया है, जो निम्नलिखित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करेंगे:
      • चिकित्सा संस्थानों में अवसंरचना को मजबूत करना;
      • सुरक्षा प्रणालियों को बेहतर बनाना;
      • कार्य दशाओं को बेहतर बनाना; और
      • राज्यों में कानूनी फ्रेमवर्क को पुनर्व्यवस्थित करना।

    स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के बारे में

    • राष्ट्रीय संबद्ध और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर आयोग (NCAHP) अधिनियम 2021 के अनुसार, स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों में कोई भी वैज्ञानिक, चिकित्सक या अन्य पेशेवर सम्मिलित है, जो निवारक, आरोग्यकारी, पुनर्वासीय, चिकित्सीय या संवर्धन संबंधी स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करता है या अध्ययन, सलाहकारी, शोध व पर्यवेक्षण कार्य करता है।  ·       
    • स्वास्थ्य और कानून-व्यवस्था राज्य सूची के विषय हैं
      • इसलिए, यह राज्य सरकार या केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन की प्राथमिक जिम्मेदारी है कि वह स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के खिलाफ होने वाली हिंसा की घटनाओं और संभावित परिस्थितियों पर अंकुश लगाकर उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करे।
      • भारत में निजी क्षेत्रक भी द्वितीयक, तृतीयक और चतुर्थक श्रेणी की स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं का अधिकांश हिस्सा प्रदान करता है। ज्यादातर निजी अस्पताल मुख्य रूप से मेट्रो, टियर-I और टियर-II शहरों में केंद्रित हैं।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार:
      • स्वास्थ्य कर्मियों पर पूरी दुनिया में हिंसा का उच्च जोखिम बना रहता है।
        • 8% से 38% स्वास्थ्य कर्मियों को शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ता है, जबकि अन्य मौखिक आक्रामकता का सामना करते हैं।
      • अधिकांश मामलों में देखा गया है कि स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के खिलाफ हिंसा का प्रयोग रोगी या उसके परिजन करते हैं।
        • इसके अलावा, आपदा और संघर्ष की स्थितियों में भी स्वास्थ्य कर्मी सामूहिक या राजनीतिक हिंसा का शिकार हो सकते हैं।

    स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए अन्य कदम: 

    भारत में किए गए प्रयास:

    • केंद्र सरकार के स्तर पर
      • महामारी रोग (संशोधन) अधिनियम, 2020: इसके तहत महामारी के दौरान स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों के खिलाफ हिंसा की कार्रवाइयों को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध माना गया है।
      • स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों और नैदानिक ​​प्रतिष्ठानों के खिलाफ हिंसा की रोकथाम विधेयक, 2022 प्रस्तुत किया गया है।  
      • कार्यस्थल पर महिलाओं का लैंगिक उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013: यह अधिनियम अस्पतालों और नर्सिंग होम्स (निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं सहित) पर भी लागू होता है।
    • राज्य सरकार के स्तर पर
      • कर्नाटक चिकित्सा पंजीकरण और कुछ अन्य कानून (संशोधन) अधिनियम, 2024 पारित किया गया है। 
      • केरल स्वास्थ्य देखभाल सेवा व्यक्ति और स्वास्थ्य देखभाल सेवा संस्थान (हिंसा एवं संपत्ति को नुकसान की रोकथाम) संशोधन अधिनियम, 2023 लागू किया गया है।

    वैश्विक प्रयास:

    • ILO और WHO: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने संयुक्त रूप से 'स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्रक में कार्यस्थल पर हिंसा से निपटने के लिए फ्रेमवर्क दिशा-निर्देश' जारी किए हैं।
    • हिंसा पर शून्य-सहनशीलता की नीति: यह नीति यूनाइटेड किंगडम की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (NHS) ने लागू की है। इस नीति में समर्पित सुरक्षा टीमों और रिपोर्टिंग प्रणालियों की व्यवस्था की गई है। 
    • ऑस्ट्रेलिया के अस्पतालों में भी स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कई सुरक्षा उपाय लागू किए गए हैं, जैसे: 
      • अस्पतालों में सुरक्षा कर्मियों की नियुक्ति;
      • संकट के समय अलर्ट करने के लिए पैनिक बटन की व्यवस्था;
      • सभी स्वास्थ्य कर्मियों के लिए डी-एस्केलेशन प्रशिक्षण अनिवार्य किया गया है आदि। 

    स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की सुरक्षा में आने वाली चुनौतियां

    • सुरक्षा के लिए अपर्याप्त प्रावधान: सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा देखभाल इकाइयों में सुरक्षा कर्मियों की कमी है। 
      • भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) के एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में एक-तिहाई डॉक्टर रात की शिफ्ट के दौरान असुरक्षित महसूस करते हैं।
    • अपर्याप्त अवसंरचना:
      • अस्पताल में प्रवेश और निकास द्वार की निगरानी करने तथा संवेदनशील क्षेत्रों तक लोगों की पहुंच को नियंत्रित करने के लिए ठीक से काम करने वाले CCTV कैमरों की कमी है। 
      • रात्रि में ड्यूटी करने के लिए तैनात चिकित्सा पेशेवरों के लिए विश्राम स्थल अपर्याप्त हैं। उदाहरण के लिए- IMA के सर्वेक्षण के अनुसार, ड्यूटी के दौरान उपलब्ध कराए गए कमरों में से एक-तिहाई कमरों में अटैच्ड बाथरूम नहीं हैं। 
      • चिकित्सा पेशेवरों के लिए होस्टल्स या ठहरने के स्थानों तक सुरक्षित आवागमन हेतु परिवहन सुविधाएं अपर्याप्त या अनुपलब्ध हैं। 
      • अस्पतालों के प्रवेश द्वार पर हथियारों और उपकरणों की स्क्रीनिंग की व्यवस्था नहीं होती है।
    • कार्य की लंबी अवधि: अक्सर इंटर्न, रेजिडेंट और सीनियर रेजिडेंट को 36 घंटे की शिफ्ट करने के लिए मजबूर किया जाता है, वह भी ऐसी जगह जहां सफाई, स्वच्छता, सुरक्षा जैसी बुनियादी आवश्यकताओं का अभाव होता है।
    • बाहरी लोगों की आसान पहुंच: अस्पताल के अंदर रोगी व उनके परिजन सभी स्थानों (ICU और डॉक्टरों के विश्राम कक्ष सहित) तक जा सकते हैं, जिससे असुरक्षा उत्पन्न हो सकती है। 
    • स्वास्थ्य संबंधी खतरे: स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों को खतरनाक पदार्थों, वायरस आदि के संपर्क में आने का जोखिम बना रहता है। उदाहरण के लिए, भारत में कोविड-19 के चलते लगभग 1,600 डॉक्टर्स की मृत्यु हुई थी।
      • केवल 14 राज्यों ने राज्य स्वास्थ्य परिषदों का गठन किया है और इन परिषदों में भी केवल कुछ ही सही तरीके से कार्य कर रही हैं।

    आगे की राह 

    • राज्य सरकार की जिम्मेदारी: राज्य सरकारों को चिकित्सा पेशेवरों के खिलाफ हिंसा को रोकने के लिए तंत्र स्थापित करना चाहिए। इसमें जुर्माना लगाना और तत्काल सहायता के लिए हेल्पलाइन सुविधाएं शामिल हैं। राज्यों पर यह जिम्मेदारी इसलिए होनी चाहिए, क्योंकि स्वास्थ्य और कानून एवं व्यवस्था राज्य सूची के विषय हैं।
    • अनिवार्य संस्थागत रिपोर्टिंग: स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, यदि ड्यूटी के दौरान किसी स्वास्थ्यकर्मी के खिलाफ हिंसा होती है, तो ऐसी स्थिति में घटना के अधिकतम छह घंटे के भीतर संस्थागत प्राथमिकी दर्ज कराने की जिम्मेदारी संस्थान के प्रमुख की होगी।
    • अवसंरचनात्मक विकास: इसमें अस्पतालों के सभी प्रवेश और निकास द्वार पर CCTV कैमरे लगाना; संवेदनशील क्षेत्रों तक पहुंच के लिए बायोमेट्रिक और फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक का उपयोग करना; रात्रि 10 बजे से सुबह 6 बजे तक परिवहन की सुविधा उपलब्ध कराना आदि शामिल हैं।
    • कर्मचारी सुरक्षा से संबंधित समितियां: प्रत्येक चिकित्सा प्रतिष्ठान में डॉक्टर्स, इंटर्न्स, रेजिडेंट्स और नर्सों की समितियां बनाई जानी चाहिए। ये समितियां संस्थागत सुरक्षा उपायों की तिमाही आधार पर ऑडिट का काम करेगी।
    • सुरक्षा कर्मियों का प्रशिक्षण: अस्पतालों में तैनात सुरक्षा कर्मियों के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए। इससे अस्पतालों में भीड़ को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने में आसानी होगी।

    विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की सिफारिशें

    • राष्ट्रीय व्यावसायिक/ पेशेवर स्वास्थ्य और सुरक्षा नीतियों के अनुरूप स्वास्थ्य कर्मियों के लिए राष्ट्रीय व्यावसायिक/ पेशेवर स्वास्थ्य कार्यक्रम विकसित एवं लागू करने की आवश्यकता है। 
    • राष्ट्रीय स्तर और अन्य स्तर के केंद्रों पर स्वास्थ्य पेशेवरों के व्यावसायिक/ पेशेवर स्वास्थ्य व सुरक्षा के लिए प्राधिकार प्राप्त अधिकारियों की नियुक्ति करनी चाहिए।
    • स्वास्थ्य कर्मियों के खिलाफ हिंसा के प्रति शून्य सहनशीलता की संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए।
    • स्वास्थ्य पेशेवरों की सुरक्षा में हुई किसी भी तरह की चूक की घटना की रिपोर्टिंग पर दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान होना चाहिए।  इसके अलावा, डॉक्टर्स की कानूनी और प्रशासनिक सुरक्षा पर खुली संवाद व्यवस्था स्थापित की जानी चाहिए। इन उपायों को अपनाकर स्वास्थ्य पेशेवरों के लिए एक 'दोष-मुक्त' और न्यायपूर्ण कार्य संस्कृति विकसित की जा सकती है। 
    • स्वास्थ्य कर्मियों की तैनाती की उचित व न्यायसंगत कार्य अवधि, विश्राम, अवकाश और प्रशासनिक बोझ को कम करने के लिए नीतियां बनाई जानी चाहिए।
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