सुर्ख़ियों में क्यों?
महाराष्ट्र सरकार ने वैनगंगा-नलगंगा नदी जोड़ो परियोजना को मंजूरी दी है।
अन्य संबंधित तथ्य
- इस परियोजना के तहत, गोदावरी बेसिन में वैनगंगा (गोसीखुर्द) नदी के जल को बुलढाना जिले के नलगंगा (पूर्णा तापी) परियोजना की ओर मोड़ा जाएगा। इसके लिए 426.52 किलोमीटर लंबी लिंक नहर का निर्माण किया जाएगा।
- इसके लिए राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA) ने 2018 में विस्तृत परियोजना रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।
- यह परियोजना राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना (NRLP) को आगे बढ़ाने में मदद करेगी।
- महाराष्ट्र के राज्यपाल ने नार-पार-गिरणा घाटी अंतर-राज्यीय लिंक परियोजना को भी मंजूरी दी है।
- नार-पार-गिरणा घाटी लिंक परियोजना महाराष्ट्र द्वारा प्रस्तावित एक अंतर-राज्यीय लिंक परियोजना है।
- इसके तहत, पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों के बेसिन यानी अंबिका बेसिन, औरंगा बेसिन और नार-पार बेसिन से महाराष्ट्र के हिस्से के अधिशेष जल को पूर्व की ओर बहने वाली यानी तापी बेसिन की गिरणा नदी की ओर मोड़ने की योजना है।
वैनगंगा और नलगंगा (पूर्णा तापी) नदियों के बारे में
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नदी जोड़ो परियोजना के बारे में
- राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना (NRLP) का उद्देश्य देश में जल की अधिशेष मात्रा वाली विभिन्न नदियों को जल की कमी वाली नदियों से जोड़ना है, ताकि अधिशेष जल क्षेत्र से अतिरिक्त जल को जल की कमी वाले क्षेत्रों तक पहुंचाया जा सके।
- पृष्ठभूमि: देश की नदियों को जोड़ने के लिए, राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (NPP) अगस्त 1980 में तत्कालीन सिंचाई मंत्रालय (अब जल शक्ति मंत्रालय) द्वारा तैयार की गई थी।
- NPP के तहत, राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA) ने व्यवहार्यता (Feasibility) रिपोर्ट तैयार करते हुए, 30 नदी जोड़ो परियोजनाओं की पहचान की है। इसमें प्रायद्वीपीय भारत के लिए 16 और हिमालय क्षेत्र के लिए 14 परियोजनाएं हैं।
- 2021 में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने केन-बेतवा नदी लिंक परियोजना के कार्यान्वयन को मंजूरी दी थी। यह देश की पहली नदी जोड़ो परियोजना (River Linking Project) है।
नदियों को आपस में जोड़ने के लाभ
- सिंचाई सुविधा: राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के अनुसार, नदियों को आपस में जोड़ने से 35 मिलियन हेक्टेयर भूमि को सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध हो सकेगी। इसमें 25 मिलियन हेक्टेयर भूमि को नहरों से और 10 मिलियन हेक्टेयर भूमि को भू-जल स्तर में होने वाली वृद्धि से लाभ मिलेगा।
- जल विद्युत उत्पादन: राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के अनुसार, इस परियोजना से लगभग 34000 मेगावाट जल विद्युत उत्पादन करने में सहायता मिलेगी।
- जल सुरक्षा: इससे पेयजल और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए जल की उपलब्धता में वृद्धि होगी।
- नीति आयोग के समग्र जल प्रबंधन सूचकांक के अनुसार, भारत इतिहास में सबसे गंभीर जल संकट से गुजर रहा है और लगभग 600 मिलियन लोग उच्च से लेकर गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं।
- अंतर्देशीय जलमार्ग: एक बार नदियों को आपस में जोड़ने वाली नहरों का निर्माण हो जाने के बाद, उनका उपयोग परिवहन हेतु जलमार्ग के रूप में भी किया जा सकेगा। इससे सड़क/ रेल परिवहन पर बोझ कम होगा।
- सूखे और बाढ़ से निपटना: विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार, 2022 में भारत में बाढ़ से संबंधित आपदाओं के कारण 4.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का आर्थिक नुकसान हुआ।
- अन्य लाभ: इसमें रोजगार सृजन, सेवा क्षेत्रक का विकास, सुरक्षित पेयजल की उपलब्धता आदि शामिल हैं।
नदी जोड़ो परियोजना से जुड़ी चुनौतियां
- राज्यों के मध्य जल विवाद: नदियों को आपस में जोड़ने के लिए राज्यों के बीच आम सहमति की आवश्यकता होती है, जो एक मुश्किल कार्य है।
- उदाहरण के लिए- तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच का कावेरी जल विवाद।
- पर्यावरणीय प्रभाव: कई विशेषज्ञों का मानना है कि नदियों को आपस में जोड़ने से बहुत जटिल प्राकृतिक चक्रों में व्यवधान पैदा हो सकता है। इसका मानसून चक्र और जैव विविधता पर दूरगामी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
- उदाहरण के लिए- केन नदी में औषधीय प्रयोजन वाली एक विशेष मछली पाई जाती है जो बेतवा नदी में नहीं पाई जाती है। केन के जल को बेतवा की ओर मोड़ने से स्थानीय जैव विविधता को क्षति पहुंच सकती है और इसका स्थानीय मछलियों की आबादी पर दुष्प्रभाव भी पड़ सकता है।
- वनों का नुकसान: केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना के लिए प्रस्तावित दौधन बांध से पन्ना टाइगर रिजर्व के बाघों के पर्यावास स्थल का 10 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र जलमग्न होने की आशंका है।
- सामाजिक लागत: पोलावरम लिंक परियोजना ने लगभग 1 लाख परिवारों को प्रभावित किया है, जिनमें से 80 प्रतिशत परिवार जनजातीय समुदायों से संबंधित हैं। यह परियोजना महानदी-गोदावरी- कृष्णा-पेन्नार-कावेरी-वैगाई नदियों को आपस जोड़ने वाली परियोजना का एक हिस्सा है।
- द्विपक्षीय संबंध से जुड़ी चुनौतियां: गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी हिमालयी नदियां भारत की सीमाओं के पार भी बहती हैं।
- आर्थिक लागत: वैनगंगा-नलगंगा नदी जोड़ो परियोजना की लागत लगभग 87,342.86 करोड़ रुपये होगी।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम
- नदियों को आपस में जोड़ने के लिए टास्क फोर्स का गठन: नदियों को आपस में जोड़ने से संबंधित मुद्दों पर विचार करने के लिए तत्कालीन जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने 2015 में एक टास्क फोर्स का गठन किया था।
- नदियों को आपस में जोड़ने के लिए विशेष समिति का गठन: इस समिति का गठन वर्ष 2014 में किया गया था। इस समिति ने 3 उप-समितियां बनाई थी:
- उप-समिति-I: यह नदियों को आपस में जोड़ने के मुद्दों से संबंधित अलग-अलग अध्ययनों/ रिपोर्टों के समग्र मूल्यांकन के लिए गठित उप-समिति थी।
- उप-समिति-II: यह सबसे उपयुक्त वैकल्पिक योजना की पहचान करने के लिए "प्रणाली अध्ययन पर गठित उप-समिति" थी।
- उप-समिति-III: यह राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA) के पुनर्गठन के लिए गठित उप-समिति थी।
- अंतर्राज्यीय नदी लिंक पर समूह: 2015 में, अंतर्राज्यीय नदी लिंक पर एक समूह का गठन किया गया था। इसका उद्देश्य नदियों को आपस में जोड़ने से संबंधित प्रमुख मुद्दों की समीक्षा करना, अंतर्राज्यीय लिंक को परिभाषित करना तथा संबंधित परियोजनाओं के लिए वित्त-पोषण संबंधी रणनीतियों का प्रस्ताव तैयार करना था।
- राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड/ NABARD) वित्त-पोषण: नाबार्ड दीर्घकालिक सिंचाई निधि के माध्यम से प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) के त्वरित सिंचाई लाभान्वित कार्यक्रम घटक के लिए वित्त-पोषण प्रदान करता है।
निष्कर्ष
नदी जोड़ो परियोजना जल वितरण में क्रांतिकारी बदलाव लाने, कृषि, रोजगार और समग्र विकास को बढ़ावा देने की क्षमता रखती है। यह जल संकट को दूर करके और संसाधनों के न्यायसंगत आवंटन को बढ़ावा देकर, नए भारत के लिए एक समृद्ध, संधारणीय भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।
