सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, भारत की राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के नए ध्वज और प्रतीक चिह्न का अनावरण किया। वहीं, भारत के मुख्य न्यायाधीश ने सुप्रीम कोर्ट में 'न्याय की देवी' (लेडी ऑफ जस्टिस) की नई प्रतिमा का अनावरण किया।
'न्याय की देवी' की प्रतिमा के बारे में
- उत्पत्ति: ग्रीक और रोमन माइथोलॉजी
- प्रथम रोमन सम्राट ऑगस्टस ने देवी जस्टिटिया (Justitia) के रूप में न्याय की पूजा शुरू की थी।
- चित्रण: एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में तलवार।
- पुनर्जागरण काल (14वीं शताब्दी) के दौरान आंखों पर पट्टी बांधने का प्रचलन शुरू हुआ: इसे तब न्यायिक प्रक्रिया के भ्रष्ट होने और कानून के अंधे होने पर व्यंग्य के रूप में समझा जाता था।
- प्रबोधन काल (17वीं-18वीं शताब्दी): आधुनिक काल में माना जाने लगा कि आंख पर पट्टी दर्शाती है कि कानून की नजर में सब बराबर हैं और यह कानून के अंधे होने का संकेत देती है।
- अंग्रेजों ने भारत में लेडी जस्टिस की प्रतिमा स्थापित करने की शुरुआत की। इस पारंपरिक मूर्ति को पहली बार 1872 में कलकत्ता हाई कोर्ट में स्थापित किया गया था।

'न्याय की देवी' की नई प्रतिमा का महत्त्व
- उपनिवेशवाद से मुक्ति: नई प्रतिमा ब्रिटिश काल की विरासत को पीछे छोड़ने की कोशिश है।
- भारतीय परिधान: न्याय की देवी की मूर्ति पश्चिमी परिधानों की बजाय साड़ी पहने हुए दिखाई गई है।
- नई मूर्ति की आंखों से पट्टी हटा दी गई: पुरानी मूर्ति की आंखों पर पट्टी यह दर्शाती थी कि कानून की नजर में सब बराबर हैं। हालांकि, यह कानून के अंधे होने का संकेत भी देती थी। नई मूर्ति दर्शाती है कि कानून अंधा नहीं है और उसकी नजर में सभी बराबर हैं।
- खुली आंखें समाज के भीतर जटिलता और भेदभाव के बारे में ज्ञान का भी प्रतीक है।
- नई प्रतिमा में तलवार की जगह भारतीय संविधान:
- संविधान की सर्वोच्चता और हमारे न्यायशास्त्र में इसके महत्त्व का प्रतीक है।
- भारत में न्याय हिंसा या बल की बजाय संवैधानिक सिद्धांतों पर आधारित है।
- मूर्ति के दाएं हाथ में तराजू बरकरार रखा गया: यह दर्शाता है कि न्यायालय किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले दोनों पक्षों के तथ्यों और तर्कों को देखता तथा सुनता है।
सुप्रीम कोर्ट का नया ध्वज | सुप्रीम कोर्ट का नया प्रतीक चिन्ह |
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सुप्रीम कोर्ट के नए ध्वज और प्रतीक चिन्ह के बारे में
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