अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize in Economics) | Current Affairs | Vision IAS
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अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize in Economics)

Posted 30 Nov 2024

44 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

वर्ष 2024 का अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार डारोन ऐसमोग्लू, साइमन जॉनसन और जेम्स ए. रॉबिन्सन को दिया गया है। इन्हें यह पुरस्कार "संस्थाओं का निर्माण कैसे किया जाता है और समृद्धि पर उनका क्या प्रभाव पड़ता है" विषय पर उनके शोध कार्य के लिए दिया गया है

अन्य संबंधित तथ्य

  • पुरस्कार विजेताओं के शोध में देश की समृद्धि में सामाजिक संस्थाओं के महत्त्व को दर्शाया गया है। 
  • इस शोध में यह भी उजागर किया गया है कि विभिन्न उपनिवेशों में लोकतंत्र का उदय जनता के विद्रोह के भय के कारण हुआ था, क्योंकि जनता के विद्रोह के खतरे को सिर्फ विभिन्न प्रकार के वादों से नहीं टाला जा सकता था।

पुरस्कार विजेताओं के शोध के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र

  • समृद्धि पर औपनिवेशिक शासन का प्रभाव: औपनिवेशिक सरकारों ने 16वीं शताब्दी से ऐसी संस्थाएं स्थापित कीं, जिससे उपनिवेशों का "भाग्य पलट गया (Reversal of Fortunes)", और कभी सबसे गरीब रहे देश सबसे अमीर बन गए।
  • औपनिवेशिक संस्थाओं के प्रकार को प्रभावित करने वाले कारक: नए बसने वालों की मृत्यु दर और जनसंख्या घनत्व ने औपनिवेशिक काल के दौरान स्थापित संस्थाओं के प्रकार और प्रकृति को गहराई से प्रभावित किया।
    • गौरतलब है कि भूमध्यरेखा के नजदीक रोगों के खतरे वाले क्षेत्रों में मृत्यु दर अधिक थी।  
  • संस्थाओं के प्रकार:
    • दोहनकारी संस्थाएं (Extractive Institutions): कुछ उपनिवेशों में दोहनकरी संस्थाओं की स्थापना की गई ताकि उपनिवेशक देश के लाभ के लिए देशज आबादी का शोषण किया जा सके और उनके प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जा सके।
      • ऐसी स्थिति में, निवेशकों में यह डर बना रहता है कि उनका निवेश किया हुआ पैसा फंस सकता है। इसलिए, वहां दीर्घकालिक निवेश के लिए प्रोत्साहन नहीं मिला।
    • समावेशी संस्थाएं: औपनिवेशिक सरकारों ने कुछ उपनिवेशों में बसने वाले यूरोपीय लोगों के दीर्घकालिक लाभ के लिए समावेशी राजनीतिक और आर्थिक संस्थाओं की स्थापना की। ये ऐसे उपनिवेश थे जहां की आबादी कम घनी थी और जहां अधिक यूरोपीयों के बसने की संभावना थी।
      • ऐसी संस्थाओं ने उपनिवेश में लंबे समय तक काम करने, बचत करने और निवेश करने के लिए लोगों को अधिक प्रोत्साहित किया।
  • उदाहरण के लिए- नोगेल्स का विभाजित शहर (अमेरिका और मैक्सिको के बीच) वास्तव में औपनिवेशिक संस्थाओं के प्रकार से उत्पन्न अंतरों (असमानता) को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। दूसरे शब्दों में, नोगेल्स में अमेरिकी और मैक्सिकन हिस्सों के बीच की खाई, औपनिवेशिक काल में स्थापित संस्थागत असमानताओं का एक जीवंत उदाहरण है।
    • इस शहर के उत्तरी भाग (USA) के निवासियों की आर्थिक स्थिति बेहतर है, संपत्ति के अधिकार सुरक्षित हैं और उन्हें राजनीतिक स्वतंत्रताएं प्राप्त हैं।
    • इसके विपरीत, शहर का दक्षिणी भाग (मैक्सिको) संगठित अपराध और भ्रष्टाचार की समस्याएं झेल रहा है।
    • इस शहर के दो हिस्सों में मुख्य अंतर संस्थागत ढांचे में निहित है। यह शहर इस तथ्य का गवाह है कि औपनिवेशिक शासन की विरासत वर्तमान जीवन स्तर को कैसे प्रभावित करती है।
  • संस्थाओं के जाल में फंसना: नोबेल विजेता शोधकर्ताओं के अनुसार, कुछ समाज शोषणकारी संस्थाओं के जाल में फंसा हुआ है, जिससे उनकी प्रगति बाधित हो रही है।
    • हालांकि, वे इस बात पर जोर देते हैं कि उनमें परिवर्तन संभव है। सुधारों से लोकतंत्र और कानून का शासन स्थापित किया जा सकता है, जिससे गरीबी कम हो सकती है।

राष्ट्रीय समृद्धि को दिशा देने में आर्थिक और राजनीतिक संस्थाओं की भूमिका

  • संसाधन आवंटन और संपत्ति का अधिकार: आर्थिक संस्थाएं संसाधनों के आवंटन और सुरक्षा का निर्धारण करती हैं।
    • उदाहरण के लिए- भारत के संविधान का अनुच्छेद 300A (संपत्ति का अधिकार) यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति को कानून के प्रावधान के बिना उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा।
    • नीति आयोग: यह भारत सरकार का प्रमुख नीतिगत थिंक टैंक है।
  • निवेश के लिए प्रोत्साहन: समावेशी संस्थाएं प्रतिस्पर्धा और उद्यमशीलता को बढ़ावा देती हैं, जिससे विकास को बढ़ावा मिलता है।
    • उदाहरण के लिए- भारत में राष्ट्रीय नवाचार फाउंडेशन (NIF) जमीनी स्तर पर नवाचार को बढ़ावा देता है।
  • संधारणीयता: प्रभावी संस्थाएं संसाधनों का संधारणीय तरीके से प्रबंधन सुनिश्चित करती हैं। वहीं खराब संस्थाएं अत्यधिक शोषण का कारण बन सकती हैं, जिससे पर्यावरण और भविष्य में विकास को नुकसान पहुँच सकता है।
    • उदाहरण के लिए- भारत के संविधान का अनुच्छेद 48A (राज्य की नीति के निदेशक तत्व) पर्यावरण की सुरक्षा और सुधार तथा वनों और वन्यजीवों के संरक्षण का प्रावधान करता है।
    • उदाहरण के लिए- नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एक विशेष न्यायिक संस्था है जो पर्यावरण से जुड़े मामलों पर निर्णय देता है।
  • विनियमन: बेहतर विनियमन वाली संस्थाएं प्रतिस्पर्धा और नवाचार को बढ़ावा देती हैं।
    • उदाहरण के लिए- भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) उद्योग जगत में निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देता है तथा एकाधिकार और प्रतिस्पर्धा-रोधी गतिविधियों को रोकता है।
  • गवर्नेंस और कानून का शासन: राजनीतिक संस्थाएं स्थिर गवर्नेंस और कानून का शासन सुनिश्चित करती हैं। इससे भ्रष्टाचार में कमी आती है और निवेश के लिए निष्पक्ष व्यवस्था को बढ़ावा मिलता है।
    • उदाहरण के लिए- संविधान का अनुच्छेद 14 'विधि के समक्ष समता का अधिकार' प्रदान करता है।
    • उदाहरण के लिए- देश के लोक प्रशासन में सत्यनिष्ठा, पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) का गठन किया गया है।
  • समावेशी: लोकतांत्रिक संस्थाएं निर्णय लेने की प्रक्रिया में जन-भागीदारी को बढ़ावा देती हैं। इससे ऐसी नीतियां बनती हैं जो देश की आबादी की जरूरतों को पूरा करती हैं।
    • उदाहरण के लिए- राज्यों में अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और उन्नति के लिए जनजातीय सलाहकार परिषद (TAC) का गठन किया गया है।
  • संघर्ष का समाधान: संघर्ष का समाधान प्रदान करने वाली प्रभावी संस्थाएं राजनीतिक स्थिरता को बढ़ावा देती हैं, निवेश को आकर्षित करती हैं और आर्थिक विकास में सहायता करती हैं।
    • उदाहरण के लिए- राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) अन्य विधिक सेवा संस्थानों के साथ मिलकर लोक अदालतों का आयोजन करता है। यह अदालत विवादों को दक्षतापूर्वक सुलझाने और कानूनी अड़चनों को कम करने में मदद करती है।

मजबूत आर्थिक संस्थाओं के निर्माण के लिए भारत में उठाए गए कदम

भारत में मजबूत राजनीतिक संस्थाओं के निर्माण के लिए उठाए गए कदम

  • बैंकों का राष्ट्रीयकरण: 1960 के दशक के उत्तरार्ध में, भारत में प्रमुख बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था। इससे देश में ऋण वितरण तथा कृषि और लघु उद्योगों जैसे प्रमुख क्षेत्रकों को सीधे संसाधन उपलब्ध कराने में मदद मिली। 
  • उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG) संबंधी सुधार: 1991 से, भारत ने नौकरशाही से जुड़ी बाधाओं को दूर कर, प्रशुल्क यानी टैरिफ को कम कर तथा इज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार कर अपनी अर्थव्यवस्था को उदार बनाया है। इससे विदेशी निवेश आकर्षित हुआ है और विकास को बढ़ावा मिला है।
  • प्रवर्तन निदेशालय (ED): यह मनी लॉन्ड्रिंग जैसे आर्थिक अपराधों को रोकता है, जिससे वित्तीय लेन-देन में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा मिलता है।
  • संसदीय समितियां: लोक लेखा समिति और प्राक्कलन समिति जैसी संसदीय समितियां आर्थिक नीतियों की समीक्षा कर जवाबदेही सुनिश्चित करती हैं। साथ ही, संसदीय समितियां विभिन्न सुधारों को राष्ट्रीय हितों के साथ जोड़ने के लिए सार्वजनिक बहस को भी बढ़ावा देती हैं।
  • भारत का लोकतांत्रिक ढांचा: नियमित चुनाव और बहुदलीय प्रणाली भारत में जवाबदेही एवं प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देती है।
  • विकेंद्रीकरण: 73वें और 74वें संविधान संशोधनों ने स्थानीय निकायों को सशक्त बनाया है तथा स्थानीय  शासन को मजबूत कर नागरिकों की भागीदारी में वृद्धि की है।
  • शिकायत निवारण: फास्ट-ट्रैक कोर्ट एवं डिजिटल प्रबंधन जैसी पहलों का उद्देश्य न्यायिक प्रणाली की दक्षता को बढ़ावा देना और न्याय सुनिश्चित करना है।
  • भ्रष्टाचार-रोधी उपाय: लोकपाल एवं भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक जैसी संस्थाएं शासन में जवाबदेही को बढ़ावा देती हैं तथा भ्रष्टाचार को कम करने में मदद करती हैं।
  • नागरिक समाज की भागीदारी: गैर-सरकारी संगठन और नागरिक समाज का सहयोग समावेशिता को बढ़ाता है और आम जनता की ज़रूरतों को पूरा करने में सरकार को जवाबदेह बनाते हैं।

 

 

 

निष्कर्ष

आर्थिक और राजनीतिक संस्थाओं के बीच संबंध राष्ट्रीय समृद्धि की कुंजी है। मजबूत आर्थिक संस्थाएं संपत्ति के अधिकारों की रक्षा करती हैं और निवेश को प्रोत्साहित करती हैं। ये संस्थाएं प्रभावी राजनीतिक संस्थाओं के साथ मिलकर सुशासन और समावेशी विकास सुनिश्चित करती हैं तथा संवृद्धि को बढ़ावा देती हैं।

अर्थशास्त्र का स्वेरिग्स रिक्सबैंक पुरस्कार (अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार) के बारे में

  • स्थापना: इस पुरस्कार की स्थापना 1968 में स्वीडन के केंद्रीय बैंक स्वेरिग्स रिक्सबैंक ने की थी।
    • शुरू में यह 1895 में अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत द्वारा स्थापित पांच नोबेल पुरस्कारों में शामिल नहीं था।
  • पुरस्कार के प्रथम विजेता: राग्नार फ्रिस्क और जान टिनबर्गेन (1969 में)
    • अमर्त्य सेन को कल्याण अर्थशास्त्र और सामाजिक विकल्प सिद्धांत में उनके योगदान के लिए 1998 का अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार दिया गया था। वे अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले भारतीय थे।
  • पुरस्कार: पुरस्कार विजेता को एक पदक, एक व्यक्तिगत डिप्लोमा और नकद राशि मिलती है।

 

 

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