मेक इन इंडिया के 10 वर्ष (10 Years of Make in India) | Current Affairs | Vision IAS
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मेक इन इंडिया के 10 वर्ष (10 Years of Make in India)

Posted 30 Nov 2024

40 min read

सुर्ख़ियों में क्यों? 

हाल ही में, "मेक इन इंडिया" पहल के 10 वर्ष पूरे हुए। मेक इन इंडिया पहल की शुरुआत 25 सितंबर, 2014 को हुई थी। 

"मेक इन इंडिया" के बारे में

  • उद्देश्य: मेक इन इंडिया का मुख्य उद्देश्य भारत को विश्व का प्रमुख डिजाइन और विनिर्माण केंद्र बनाना है। 'वोकल फॉर लोकल' पहल मेक इन इंडिया का ही एक मंत्र है।
  • अन्य उद्देश्य:
    • भारतीय उद्योग की संवृद्धि दर को बढ़ाकर प्रति वर्ष 12-14% तक करना।
    • 2022 तक औद्योगिक क्षेत्रकों में 100 मिलियन रोजगार के अवसर सृजित करना।
    • 2022 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी को बढ़ाकर 25% करना। अब इसे संशोधित करके 2025 तक कर दिया गया है।
  • क्षेत्रक: वर्ष 2021 में शुरू की गई मेक इन इंडिया 2.0 पहल में 27 क्षेत्रकों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इसे विभिन्न मंत्रालयों/ विभागों और राज्य सरकारों के तत्वावधान में लागू किया जा रहा है।          

"मेक इन इंडिया" के स्तंभ:

  • नई प्रक्रियाएं: इसके तहत उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस को सबसे महत्वपूर्ण भाग के रूप में मान्यता दी गई है।
  • नई अवसंरचना: इसमें औद्योगिक गलियारा और स्मार्ट शहरों का विकास तथा विश्वस्तरीय अवसंरचना विकसित करने के लिए अत्याधुनिक तकनीक और उच्च-गति वाली संचार सुविधाओं को एकीकृत करने पर जोर दिया गया है।
  • नए क्षेत्रक: रक्षा उत्पादन, बीमा, चिकित्सा उपकरण, विनिर्माण और रेलवे अवसंरचना में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दी गई है।
  • नई मानसिकता: सरकार की भूमिका विनियामक के बदले सुविधाप्रदाता के रूप में तय की गई है।     

"मेक इन इंडिया" के तहत प्रमुख उपलब्धियां

  • भारत की नई विनिर्माण क्षमता: सभी क्षेत्रकों में भारत की नई विनिर्माण क्षमता स्पष्ट तौर पर देखी जा रही है। जैसे- भारत प्रतिवर्ष 400 मिलियन खिलौने बना रहा है और यह विश्व का चौथा सबसे बड़ा नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादक देश बना गया है।
    • भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल विनिर्माता देश बन गया है और इसने स्मार्टफोन आयात पर अपनी निर्भरता को काफी हद तक कम कर दिया है। अब 99% मोबाइल देश में ही विनिर्मित होते हैं।
  • व्यवसाय सुगमता में सुधार: दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, अप्रत्यक्ष कराधान के लिए GST, जन विश्वास अधिनियम जैसे नीतिगत सुधारों की वजह से व्यवसाय करना आसान हुआ है।
    • विश्व बैंक की डूइंग बिजनेस रिपोर्ट में भारत 2014 में 142वें स्थान पर था। 2019 में भारत 63वें स्थान पर आ गया, जो सुधारों की प्रभावशीलता को दर्शाता है। विश्व बैंक ने अब यह रिपोर्ट जारी करना बंद कर दिया है।
  • भारत की विनिर्माण प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा मिला: वर्तमान में, एशियाई देशों में भारत में कर की दरें सबसे कम हैं। इस वजह से वैश्विक स्तर पर भारत की आर्थिक आकर्षण क्षमता बढ़ गई है। उठाए गए अन्य कदम निम्नलिखित हैं:
    • 40,000 से अधिक नियमों के अनुपालन की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया गया है और 3,800 प्रावधानों को अपराध मुक्त किया गया है।
    • राष्ट्रीय सिंगल विंडो सिस्टम: निवेशकों द्वारा निवेश की प्रक्रियाओं को सरल बनाकर 75,000 से अधिक निवेश प्रस्तावों को अनुमति दी गई है।
  • संसाधन जुटाना: देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में लगातार वृद्धि हुई है। यह 2015 के लगभग 45 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2022 में लगभग 85 बिलियन डॉलर के रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया।
  • पण्य (मर्केंटाइल) निर्यात: 2024 में भारत से लगभग 437 बिलियन डॉलर का निर्यात हुआ, जो वैश्विक व्यापार में देश की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है। भारत से उच्च-गुणवत्ता वाले उत्पादों के निर्यात में वृद्धि हुई है। 
    • उदाहरण के लिए- ड्रग्स और फार्मास्यूटिकल निर्यात में लगभग 27 बिलियन डॉलर की वृद्धि तथा रक्षा निर्यात में 31 गुना की वृद्धि दर्ज की गई है। साथ ही, भारत विश्व की लगभग 60% वैक्सीन की आपूर्ति करता है।
  • रक्षा निर्यात: धनुष आर्टिलरी गन सिस्टम, मुख्य युद्धक टैंक (MBT) अर्जुन, हल्के लड़ाकू विमान (LCA) तेजस, कई पनडुब्बियां जैसे प्रमुख रक्षा प्लेटफॉर्म्स विकसित किए गए हैं और कई देशों को इनका निर्यात किया जा रहा है।
  • उच्च-मूल्य वाले विनिर्माण और अनुसंधान एवं विकास को प्राथमिकता देना: इसके परिणामस्वरूप, 2015 से वैश्विक नवाचार सूचकांक (ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स) में  भारत की रैंकिंग में 42 स्थानों का सुधार हुआ है। वर्तमान में इस सूचकांक में भारत 39वें स्थान पर है। यह सुधार भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धा की क्षमता को दर्शाता है।
  • संधारणीय विकास की ओर उठाया गया कदम: उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन से 6 लाख से अधिक रोजगार के अवसर सृजित होंगे। इसके अलावा, इससे प्राकृतिक गैस और अमोनिया के आयात पर निर्भरता कम होगी। इससे 1 लाख करोड़ रुपये की भी बचत होगी।

"मेक इन इंडिया" से जुड़ी चिंताएं

  • GDP में विनिर्माण क्षेत्रक की 25% हिस्सेदारी का लक्ष्य प्राप्त नहीं हुआ: 'मेक इन इंडिया' योजना के बावजूद, GDP में विनिर्माण क्षेत्रक की हिस्सेदारी 2023 में 17.7% पर स्थिर रही।
    • 2014 से विनिर्माण क्षेत्रक की संवृद्धि दर औसतन लगभग 6% रही है। यह 12-14% की संवृद्धि दर के लक्ष्य से काफी कम है।
  • विनिर्माण क्षेत्रक में रोजगार के अवसरों में कमी: विनिर्माण क्षेत्रक में 100 मिलियन रोजगार के अवसर पैदा करने का लक्ष्य रखा गया था। इसके उलट विनिर्माण क्षेत्रक में श्रमबल 2017 के 51 मिलियन से घटकर 2023 में 35 मिलियन हो गया।
  • वास्तविक सकल मूल्य वर्धित (GVA) में गिरावट: राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी (NAS) के अनुसार, विनिर्माण क्षेत्रक की वास्तविक GVA वृद्धि दर 2012 के लगभग 8% से घटकर 2023 में 5.5% रह गई।
  • निवेश दरों में गिरावट: भारत की उत्पादक निवेश दर (सकल पूंजी निर्माण) में कमी हुई है। यह 2008 के 39.1% से घटकर 2023 में 32.2% रह गई।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) से संचालित विकास रणनीति को सीमित सफलता: भारत में 2015 से 2023 के बीच प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में गिरावट देखी गई है। इस अवधि में FDI का योगदान सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 1.8% रहा। यह पिछले दशकों में देखे गए लगभग 2.1% से कम है।
    • 2017 के बाद से अधिकांश FDI केवल 9 क्षेत्रकों में केंद्रित रहा है। इनमें से विशेषकर सूचना प्रौद्योगिकी सेवाएं अग्रणी हैं, जबकि अन्य 53 क्षेत्रकों (अधिकांशतः विनिर्माण) को कुल FDI का केवल 30% प्राप्त हुआ है। 
  • निर्यात प्रदर्शन में गिरावट: कुल मात्रा के आधार पर अधिक FDI आने के बावजूद भारत के पण्य (मर्केंटाइल) निर्यात में सापेक्ष रूप से गिरावट दर्ज हुई है। यह 2013-14 में GDP का लगभग 10% था, जो 2022-23 में घटकर लगभग 8% रह गया।
  • PLI योजनाओं के उपयोगी होने से जुड़ी चिंताएं: PLI योजनाओं की बढ़ती लागत चिंता का विषय है। जैसे कि गुजरात में माइक्रोन द्वारा स्थापित 2.75 बिलियन डॉलर की माइक्रोप्रोसेसर फैक्ट्री में अधिकांश निवेश का वित्त-पोषण सरकार ने किया है।

आगे की राह

  • क्षमता में सुधार: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग जैसी नई तकनीकों को अपनाकर, श्रम बल को तेजी से कौशल प्रदान करके और शिक्षा प्रणाली को मजबूत करके क्षमताओं में सुधार किया जा सकता है।
  • उद्यमशीलता की भावना को प्रोत्साहित करना: बेहतर शिक्षित श्रमबल को उद्यमी बनाने के लिए अनुकूल परिस्थितियां सृजित करके उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए। उदाहरण के लिए- भारत में वर्तमान में लगभग 2.2 मिलियन STEM स्नातक, स्नातकोत्तर और PhD धारक तैयार होते हैं।
  • नवाचार हेतु अनुकूल माहौल को बढ़ावा देना: ज्ञान को संपदा में बदलने के लिए शैक्षिक जगत, उद्योग जगत और सरकार के बीच सहयोग का एक ट्रिपल हेलिक्स मॉडल आवश्यक है। इस मामले में भारत को शिक्षा जगत से प्रारंभिक स्तर की बौद्धिक संपदा (IP) की पहचान के लिए विशिष्ट संस्थानों की स्थापना करना चाहिए।
    • हाल ही में अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (ANRF) की स्थापना ऐसी ही शीर्ष संस्था के रूप में की गई है। यह देश में वैज्ञानिक अनुसंधान की उच्च-स्तरीय रणनीतिक दिशा प्रदान करने के लिए सही दिशा में उठाया गया कदम है।
  • देश के सबल पक्षों का उपयोग करना: भारत के लिए विनिर्माण क्षेत्रक में विस्तार करने की बजाय सेवाओं और विनिर्माण-संबंधी सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करना आसान है।
  • रचनात्मक एक्सीलेंस को बढ़ावा देना: नए विचारों और नवाचारों को प्रोत्साहित करने के लिए देश के लोकतांत्रिक मूल्य (जो चीन में अनुपस्थित है) का लाभ उठाना चाहिए। उदाहरण के लिए, रूस (अधिनायकवादी व्यवस्था) की चिप प्रौद्योगिकी संयुक्त राज्य अमेरिका (लोकतंत्र) से पीछे थी क्योंकि रूसी इस क्षेत्रक में नवाचार नहीं कर पाए।

निष्कर्ष

आज "मेक इन इंडिया" पहल अपनी 10वीं वर्षगांठ मना रही है। यह भारत के अपने विनिर्माण क्षेत्रक को नई दिशा देने और वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिति को मजबूत करने के दृढ़ संकल्प का प्रमाण है। रणनीतिक सुधारों, निवेश-अनुकूल नीतियों और अवसंरचना के विकास पर विशेष ध्यान देने के साथ ही इस पहल ने भारत की औद्योगिक क्षमताओं को उल्लेखनीय रूप से बढ़ाया है।

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