सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, एक रिसर्च पेपर में भारतीय विनिर्माण क्षेत्रक में मल्टी-प्लांट की बढ़ती प्रवृत्ति को रेखांकित किया गया है।
मल्टी-प्लांट परिघटना के बारे में
- विनिर्माण कंपनियों द्वारा अपने सभी कार्यबल को एक ही संयंत्र (प्लांट) में रोजगार देकर उस प्लांट का विस्तार करने की बजाय एक ही राज्य में अपने अलग-अलग प्लांट्स में कार्यबल को नियोजित करने की प्रक्रिया को मल्टी-प्लांट परिघटना कहा जाता है।
- रिसर्च पेपर के अनुसार, भारतीय कंपनियां एक ही राज्य में कई प्लांट्स को स्थापित करने को प्राथमिकता दे रही हैं।
- यह प्रवृत्ति समय के साथ-साथ बढ़ रही है। कुल रोजगार में मल्टी-प्लांट्स की हिस्सेदारी 25.16% और बड़े प्लांट्स की हिस्सेदारी 35.48% थी।
- मिसिंग मिडिल फिनोमिना और कंपनियों का आकार छोटा रखने (ड्वार्फिज्म ऑफ फर्म्स) का चलन, भारत में विनिर्माण क्षेत्रक के विकास और रोजगार सृजन में बाधा उत्पन्न करते हैं। ये ट्रेंड्स पहले भी रेखांकित किए जा चुके हैं।
- मल्टी-प्लांट का बढ़ता चलन वास्तव में भारतीय कंपनियों की उन कठिनाइयों को भी रेखांकित करता है जो उन्हें अपने प्लांट का प्रभावी ढंग से विस्तार करते समय सामना करना पड़ता है।
मल्टी-प्लांट परिघटना वास्तव में ड्वार्फ फर्म और मिसिंग मिडिल फिनोमिना से किस तरह अलग है?
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भारतीय फर्मों के समक्ष चुनौतियां
- विनियमन: भारत के श्रम कानूनों में अक्सर लघु कंपनियों को नियमों के पालन की छूट दी जाती है। यह व्यवस्था कंपनियों का आकार छोटा रखने पर आर्थिक प्रोत्साहन और बड़ी कंपनियों के लिए सख्त विनियमन को बढ़ावा देती है। इस वजह से कंपनियां आर्थिक प्रोत्साहनों का लाभ उठाने के लिए अपने फर्म का आकार लघु बनाए रखने को प्राथमिकता देती हैं।
- उदाहरण के लिए- औद्योगिक विवाद अधिनियम (IDA), 1947 के अनुसार, 100 से अधिक कर्मचारियों वाली कंपनियों को छंटनी से पहले सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य है।
- जोखिम प्रबंधन: किसी एक कंपनी को कानूनी, विनियामक और राजनीतिक जोखिमों के सारे बोझ से बचाने के लिए कंपनियां कई लघु प्लांट्स स्थापित करती हैं।
- पूंजी-श्रम संबंधों का प्रबंधन: उदाहरण के लिए- किसी एक प्लांट में श्रम-संबंधी विवाद होने की स्थिति में मल्टी-प्लांट्स विनिर्माण जारी रखने में मदद करते हैं।
- संचालन में लचीलापन: किसी प्लांट में ऑर्डर कम हो जाने पर कंपनी अपने कार्यबल को छंटनी किए बिना उन्हें अपने किसी अन्य प्लांट में नियोजित कर सकती हैं। एकल बड़े प्लांट में इस तरह का विकल्प उपलब्ध नहीं होता है।
- आर्थिक और बाजार संरचना: छोटे-छोटे आकार के बाजार उपलब्ध होने तथा अनौपचारिक क्षेत्रों के वर्चस्व से भी मल्टी-प्लांट और लघु कंपनियों को बढ़ावा मिल रहा है।
- प्रबंधन: एक अध्ययन में रेखांकित किया गया है कि कंपनी मैनेजमेंट में परिवार और रिश्तेदारों को शामिल करने की प्रवृत्ति के कारण पेशेवर प्रबंधन में कमी आती है। इस वजह से भी कई भारतीय व्यवसायी अपने फर्म को लघु बनाए रखते हैं।
- अन्य चुनौतियां:
- बड़े प्लांट के संचालन या उनका विस्तार करने के लिए आस-पास भूमि का अधिग्रहण करने में कठिनाइयां आती हैं।
- लघु प्लांट्स श्रम की उपलब्धता वाले अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों में स्थापित किये जा सकते हैं। इससे विशेष रूप से महिलाओं की श्रम बल में भागीदारी बढ़ाने में मदद मिलती है।
भारतीय फर्मों और प्लांट्स के लघु बने रहने के प्रभाव
- निम्न उत्पादकता: वर्किंग पेपर में रेखांकित किया गया है कि एकल और बड़े संयंत्र, लघु कंपनियों और मल्टी-प्लांट्स की तुलना में अधिक उत्पादक सिद्ध होते हैं। इसकी वजह 'इकॉनमी ऑफ स्केल' है, अर्थात् व्यवसाय के विस्तार के साथ उत्पाद की औसत लागत कम हो जाती है।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, सभी संगठित फर्मों में से आधे से अधिक हिस्सेदारी ड्वार्फ फर्म की है लेकिन संगठित फर्मों की उत्पादकता में इनकी हिस्सेदारी केवल 8% है।
- निर्यात प्रतिस्पर्धा पर प्रभाव: लघु संयंत्रों और फर्मों की कम उत्पादकता प्रतिस्पर्धा एवं निर्यात प्रदर्शन को प्रभावित करती है।
- रोजगार सृजन: आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, कुल रोजगार सृजन में ड्वार्फ फर्म्स की हिस्सेदारी केवल 14% है।
- रोजगार की गुणवत्ता: आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, लघु कंपनियां रोजगार के अवसर को बनाए रखने में चुनौतियों का सामना करती हैं, जबकि बड़ी कंपनियां बड़ी संख्या में स्थायी प्रकृति के रोजगार के अवसर उत्पन्न करती हैं।
आगे की राह
- सनसेट क्लॉज: आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 में सिफारिश की गई है कि कंपनी के आकार के आधार पर दिए जाने वाले प्रोत्साहनों की 10 वर्षों की समय-सीमा तय (सनसेट क्लॉज) की जानी चाहिए। इसके साथ ही "ग्रैंड-फादरिंग" नियम भी लागू किए जाने चाहिए।
- ग्रैंडफादर क्लॉज के तहत पुराने नियम पहले से चली आ रही व्यवस्थाओं पर लागू रहते हैं, जबकि नई व्यवस्थाओं पर नए नियम लागू होते हैं। कंपनियों के मामले में समझा जाए तो नई लघु कंपनियों को पहले से जारी प्रोत्साहन और छूट प्राप्त नहीं होंगे।
- ग्रैंडफादर क्लॉज के अनुसार, "जो पहले से चल रहा है, वो वैसा ही रहेगा, लेकिन नई चीजों पर नए नियम लागू होंगे।"
- ग्रैंडफादर क्लॉज के तहत पुराने नियम पहले से चली आ रही व्यवस्थाओं पर लागू रहते हैं, जबकि नई व्यवस्थाओं पर नए नियम लागू होते हैं। कंपनियों के मामले में समझा जाए तो नई लघु कंपनियों को पहले से जारी प्रोत्साहन और छूट प्राप्त नहीं होंगे।
- प्रबंधन और कौशल विकास: कंपनियों की परिचालन दक्षता को बढ़ावा देने के लिए पेशेवर प्रबंधन को प्रोत्साहन देना चाहिए तथा उद्यमशीलता और प्रबंधन कौशल के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों को चलाने की आवश्यकता है।
- पूंजी प्राप्ति में मदद: PSL दिशा-निर्देशों में संशोधन कर उन क्षेत्रों की नई कंपनियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जिनमें रोजगार सृजन की अधिक संभावना है। इससे रोजगार के अवसरों में तेजी से वृद्धि होगी।
- अधिक औद्योगिक क्लस्टरों को बढ़ावा देना: इंडस्ट्रियल जोन की स्थापना से कंपनियां साझी अवसंरचना, बाजार लिंकेज तथा प्रौद्योगिकी, वित्त और प्रतिभा का बेहतर तरीके से उपयोग कर सकती हैं।