राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन-तिलहन (NMEO-तिलहन) {National Mission on Edible Oils–Oilseeds (NMEO-Oilseeds)} | Current Affairs | Vision IAS
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राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन-तिलहन (NMEO-तिलहन) {National Mission on Edible Oils–Oilseeds (NMEO-Oilseeds)}

Posted 30 Nov 2024

31 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2024-25 से 2030-31 तक सात साल की अवधि के लिए राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन-तिलहन (NMEO-तिलहन) को मंजूरी दी।

राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन-तिलहन के बारे में

  • 2030-31 के लिए लक्ष्य:
    • प्राथमिक तिलहन उत्पादन को 2022-23 के 39 मिलियन टन से बढ़ाकर 69.7 मिलियन टन करना।
    • घरेलू खाद्य तेल उत्पादन को बढाकर 25.45 मिलियन टन करना और NMEO-OP (आयल पाम) को शामिल करते हुए अनुमानित घरेलू मांग का लगभग 72% पूरा करना।
    • चावल और आलू की खेती वाली भूमि तथा परती भूमि का उपयोग करके इंटरक्रॉपिंग और फसल विविधीकरण को बढ़ावा देकर तिलहन की खेती के तहत अतिरिक्त 40 लाख हेक्टेयर भूमि को लाना।
  • फोकस क्षेत्र:
    • रेपसीड-सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी और तिल जैसी प्रमुख प्राथमिक तिलहन फसलों का उत्पादन बढ़ाना;
    • कपास के बीज, चावल की भूसी (राइस ब्रान) और वनस्पतियों से प्राप्त तेलों जैसे द्वितीयक स्रोतों से तेल प्राप्ति की दक्षता को बढ़ाना।
  • योजना की मुख्य विशेषताएं:
    • 'सीड ऑथेंटिसिटी, ट्रेसेबिलिटी एंड होलिस्टिक इन्वेंटरी' (साथी/SATHI) पोर्टल: यह समय पर बीजों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए ऑनलाइन 5-वर्षीय रोलिंग सीड प्लान है।
      • यह राज्यों को सहकारी समितियों, किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) और सरकारी या निजी बीज निगमों सहित बीज उत्पादक एजेंसियों के साथ अग्रिम सहयोग स्थापित करने में मदद करेगा।
    • 347 चुने हुए जिलों में 600 मूल्य श्रृंखला क्लस्टरों का विकास किया जाएगा। इसमें प्रतिवर्ष 10 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र को कवर किया जाएगा।
      • इन क्लस्टरों में किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले बीज, अच्छी कृषि पद्धतियों (GAP) का प्रशिक्षण तथा मौसम और कीट हमले के संबंध में सलाहकारी सेवाएं प्राप्त होंगी।
    • अन्य विशेषताएं:
      • उच्च उपज देने वाली और उच्च तेल स्रोतों वाली बीज की किस्मों की खेती को बढ़ावा दिया जाएगा।
      • उच्च गुणवत्ता वाले बीजों के विकास के लिए जीनोम एडिटिंग जैसी नई तकनीकों का उपयोग किया जाएगा।
      • सार्वजनिक क्षेत्र में 65 नए बीज हब और 50 बीज भंडारण यूनिट्स की स्थापना की जाएगी।
      • खाद्य तेलों के लिए अनुशंसित आहार दिशा-निर्देशों के बारे में जागरूकता के लिए सूचना, शिक्षा और संचार (IEC) अभियान चलाए जाएंगे।
      • फसल कटाई के बाद प्रबंधन यूनिट्स स्थापित करने या इनमें सुधार करने के लिए FPOs, सहकारी समितियों और उद्योगों के भागीदारों को सहायता प्रदान की जाएगी।

खाद्य तेल के मामले में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने की आवश्यकता क्यों है?

  • महत्त्व: क्षेत्रफल और उत्पादन की दृष्टि से भारत में खाद्यान्न के बाद तिलहन दूसरी सबसे बड़ी फसल श्रेणी है। विविध कृषि-पारिस्थितिक स्थितियों में तिलहन की 9 वार्षिक फसलें उगाई जाती हैं।  
  • मांग में वृद्धि: भारत में बढ़ता शहरीकरण और औसत मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय (MPCI) में वृद्धि की वजह से खाद्य तेल की उच्च मात्रा वाले प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की खपत में वृद्धि होने का अनुमान है।
  • आयात पर बढ़ती निर्भरता: भारत खाद्य तेलों के मामले में आयात पर बहुत अधिक निर्भर है। भारत खाद्य तेलों की घरेलू मांग का 57% आयात करता है।

भारत में खाद्य तेल के मामले में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में चुनौतियां

  • प्रति हेक्टेयर कम उपज: उपज में अंतर का मुख्य कारण अन्य देशों में आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) शाकनाशी-सहिष्णु फसल किस्मों का उपयोग किया जाना है। भारत में इसकी अनुमति नहीं है। 
  • खेती से जुड़ी चुनौतियां: तिलहनी फसलों की 76% खेती वर्षा पर निर्भर है। इसकी वजह से फसलों पर जैविक और अजैविक संकटों का खतरा बना रहता है।
  • तिलहनी फसलों का कुछ ही राज्यों में केंद्रित होना: कुछ प्रमुख तिलहनी फसलों का उत्पादन कुछ राज्यों में ही केंद्रित है। अधिक संतुलित और अनुकूल खेती को प्रोत्साहित करने के लिए बेहतर नीतियों को लागू करने की आवश्यकता है।
    • उदाहरण के लिए- गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक सामूहिक रूप से देश के कुल मूंगफली उत्पादन में 83.4% का योगदान करते हैं।
  • मांग और आपूर्ति में अंतर: भारत में वनस्पति तेलों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए आयात में उच्च वृद्धि बने रहने का अनुमान है।
  • पाम आयल और सूरजमुखी के तेल के वैश्विक उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी बहुत कम है।

खाद्य तेल में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए उठाए गए अन्य कदम

  • प्रमुख कार्यक्रम:
    • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन - तिलहन और आयल पाम (NFSM-OS & OP): इसे 2018-19 में शुरू किया गया था। यह बीज घटकों (ब्रीडिंग, उत्पादन, वितरण), उत्पादन इनपुट (मशीनरी, रसायन, उर्वरक) और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (परीक्षण, प्रशिक्षण) पर केंद्रित है।
    • राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन - आयल पाम (NMEO OP): इसे 2021-22 में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य 2025-26 तक आयल पाम कृषि क्षेत्र को 3.70 लाख हेक्टेयर से बढ़ाकर 10.00 लाख हेक्टेयर तक करना तथा पूर्वोत्तर राज्यों और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में खाद्य तेल की खेती को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना है।
    • प्रधान मंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (PM-AASHA) यह सुनिश्चित करता है कि तिलहन की खेती करने वाले किसानों को मूल्य समर्थन योजना और भावांतर (फसल के भाव में अंतर) भुगतान योजना के माध्यम से MSP प्रदान की जाए।
    • राष्ट्रीय कृषि विकास योजना - रफ़्तार (RKVY RAFTAAR): इसमें तिलहन से जुड़े फसल उत्पादन से संबंधित गतिविधियों के लिए प्रावधान शामिल हैं। 
  • अन्य उपाय:
    • सात प्रमुख तिलहन फसलों; मूंगफली, सूरजमुखी, सोयाबीन, तिल, नाइजरसीड, रेपसीड और सरसों, तथा कुसुम के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की जाती है।
    • तिलहन के घरेलू उत्पादकों को सस्ते आयात से बचाने और स्थानीय स्तर पर उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए खाद्य तेलों पर 20% आयात शुल्क लगाया गया है।
  • 2024 के बजट में की गई घोषणाएं:
    • तिलहन (सरसों, मूंगफली, तिल, सोयाबीन, सूरजमुखी) में आत्मनिर्भरता के लिए रणनीति।
    • अनुसंधान, आधुनिक कृषि तकनीक, बाजार संपर्क और फसल बीमा पर ध्यान केंद्रित करना।
  • पीली क्रांति: यह 1986-1987 में भारत में खाद्य तेलों, विशेषकर सरसों और तिल के उत्पादन को बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू किया गया एक कृषि विकास कार्यक्रम था। 

 

 

निष्कर्ष

NMEO-तिलहन में कई उपायों के जरिए घरेलू तिलहन उत्पादन को बढ़ाने तथा मेहनती किसानों की सहायता करने पर जोर दिया गया है। इनमें मूल्य श्रृंखला समूहों का विकास; उच्च उपज और उच्च तेल प्रदान करने वाली बीज की किस्मों को बढ़ावा; सीड हब, बीज भंडारण यूनिट्स और फसल कटाई के बाद की सुविधाओं जैसी समग्र अवसंरचनाओं में सुधार जैसे उपाय शामिल हैं। साथ ही, परती भूमि पर तिलहन की खेती को बढ़ावा देने से अधिक संधारणीय कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहन मिलेगा। उपर्युक्त उपायों के अलावा, तिलहन क्षेत्रक में बदलाव लाने के लिए अनुसंधान और डेटा-आधारित निर्णय लेने और सार्वजनिक-निजी भागीदारी में निवेश की संभावना तलाशने की भी आवश्यकता है।

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