सुर्ख़ियों में क्यों?
प्रधान मंत्री ने नई दिल्ली में एम.एस. स्वामीनाथन शताब्दी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित किया।
अन्य संबंधित तथ्य
- सम्मेलन की थीम थी– "एवरग्रीन रिवॉल्यूशन: द पाथवे टू बायोहैप्पीनेस"। यह सभी के लिए भोजन सुनिश्चित करने के प्रति प्रो. स्वामीनाथन के आजीवन समर्पण को दर्शाता है।
- उनके सम्मान में "एम. एस. स्वामीनाथन अवॉर्ड फॉर फूड एंड पीस" शुरू किया गया।
- यह एक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार है, जो विकासशील देशों के उन लोगों को दिए जाने का निर्णय लिया गया है, जिन्होंने खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है।
- ऐसा, पहला पुरस्कार नाइजीरियाई वैज्ञानिक प्रोफेसर अडेमोला ए. एडेन्ले को दिया गया।
एम.एस. स्वामीनाथन का प्रमुख योगदान
- हरित क्रांति के वास्तुकार (1960–70 के दशक): उन्होंने उन्नत बीज प्रजनन तकनीकों और आधुनिक तरीकों से खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया।
- नॉर्मन बोरलॉग के साथ मिलकर उन्होंने ब्रीडिंग प्रोग्राम शुरू किया जिसके तहत गेहूं की ऐसी किस्में विकसित कीं जिनमें बौनेपन के जीन शामिल थे। इससे पौधे छोटे एवं मजबूत बने तथा इनकी उत्पादन क्षमता भी ज्यादा थी।
- सेमी-ड्वार्फ मैक्सिकन गेहूं (Sonora, Lerma Rojo 64) और उच्च उत्पादकता वाली इंडिका धान किस्में भारत में प्रस्तुत की गईं।
- 1989 में पूसा बासमती के विकास में अहम भूमिका निभाई, जो दुनिया की पहली सेमी-ड्वार्फ और उच्च उत्पादकता वाली बासमती किस्म थी।
- सदाबहार क्रांति का समर्थन: स्वामीनाथन ने हरित क्रांति का समर्थन किया लेकिन इसके नकारात्मक प्रभावों—जैसे रसायनों का अधिक प्रयोग, एक ही फसल की खेती (monoculture), और मृदा को होने वाले नुकसान—को लेकर चेतावनी भी दी। उन्होंने "सदाबहार क्रांति" का विचार दिया, जिसमें पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना खेती से लगातार अधिक उत्पादन प्राप्त हो सके।
- यह वस्तु-केंद्रित दृष्टिकोण से "प्रणालीगत दृष्टिकोण" की ओर आदर्श बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है।
सदाबहार क्रांति
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- पारिस्थितिक आधार और पद्धतियां
- स्वामीनाथन ने एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) और एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन (INM) का समर्थन किया, ताकि रसायनों पर निर्भरता कम हो और मृदा की उर्वरता बनी रहे।
- उन्होंने खेती में वर्षा जल संरक्षण (जैसे ड्रिप सिंचाई) और नवीकरणीय ऊर्जा (जैसे बायोगैस, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा) के उपयोग पर ज़ोर दिया।
- उन्होंने जलवायु-अनुकूल फसलों (सूखा/ लवण-सहिष्णु किस्में) के विकास पर ध्यान दिया और मिलेट्स (श्री अन्न) को बढ़ावा दिया, जिससे जलवायु अनुकूलन के प्रति उनकी दूरदर्शिता का पता चलता है।
- जैव विविधता के संरक्षण पर जोर: उन्होंने पौध किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम 2001 और जैव विविधता अधिनियम - 2002 जैसे कानूनों के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- 'बायोहैप्पीनेस' की अवधारणा: बायोहैप्पीनेस का मतलब है – ऐसी खुशहाली और संतोष की स्थिति जो तब मिलती है जब जैव विविधता को इस तरह से संरक्षित और उपयोग किया जाता है कि वह इंसानों के स्वास्थ्य और पोषण स्तर को बेहतर कर सके और रोजगार के अवसर बढ़ाए तथा इंसान तथा प्रकृति के बीच संतुलन बनाए।
- कृषि में महिलाएं: 2011 में एम.एस. स्वामीनाथन ने महिला कृषक अधिकार विधेयक (Women Farmers' Entitlements Bill) को गैर-सरकारी विधेयक के रूप में पेश किया।
- इसका उद्देश्य महिला कृषकों की उनकी लैंगिक-विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करना, उनके अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें कृषि भूमि, जल संसाधनों आदि पर अधिकार प्रदान करके सशक्त बनाना था।
- पोषण सुरक्षा पर ध्यान: स्वामीनाथन ने केवल खाद्य सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया, बल्कि पोषण सुरक्षा की अवधारणा को आगे बढ़ाया। उन्होंने प्रोटीन की कमी, कैलोरी की कमी और हिडेन हंगर (माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी) को दूर करने पर ध्यान देने की बात कही।
- इसके लिए उन्होंने बायो-फोर्टिफाइड और पोषण समृद्ध फसलों की खेती को बढ़ावा दिया।
- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कृषि पहलों का नेतृत्व
- उन्होंने 2004 से 2006 तक राष्ट्रीय किसान आयोग (NCF) की अध्यक्षता की और किसानों की समस्याओं पर पाँच रिपोर्ट तैयार कीं। इस रिपोर्ट की एक मुख्य सिफारिश यह थी कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) उत्पादन की भारांश लागत से कम-से-कम 50% ज्यादा होना चाहिए।
- उन्होंने कृषि नीतियों पर निष्पक्ष और वैज्ञानिक सुझाव देने के लिए 1990 में राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी/ नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज़ (NAAS) की स्थापना की।
प्रमुख उपलब्धियां और पुरस्कार
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निष्कर्ष
एम.एस. स्वामीनाथन ने अपने निधन तक आर्थिक विकास रणनीतियों के माध्यम से लघु कृषकों, विशेषकर ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कार्य किया। विज्ञान, समाज और प्रकृति के प्रति उनके समर्पण ने वैश्विक कृषि विकास और मानव कल्याण पर अमिट छाप छोड़ी।