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उत्पाद राष्ट्र (PRODUCT NATION) | Current Affairs | Vision IAS
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उत्पाद राष्ट्र (PRODUCT NATION)

Posted 04 Sep 2025

Updated 09 Sep 2025

1 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में, वित्त संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में भारत के लिए बढ़ती वैश्विक व्यापारिक अनिश्चितताओं और बढ़ते संरक्षणवाद से निपटने के तरीके सुझाए।

अन्य संबंधित तथ्य

  • रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिम एशिया संकट जैसे संघर्षों ने ऊर्जा बाजारों और आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित किया है। इससे भारत का व्यापार और अधिक असुरक्षित हो गया है।
  • हाल ही में, संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा भारतीय उत्पादों पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने की कार्रवाई ने भी इसी ओर संकेत किया है।
  • विशेषज्ञों का मानना ​​है कि यह भारत के लिए सेवा-उन्मुख अर्थव्यवस्था से वास्तविक उत्पाद राष्ट्र में विकसित होने का सुअवसर है।
    • यह सरकार द्वारा घोषित हाल के सुधारों; जैसे- GST दरों में परिवर्तन में भी दिखाई देता है।

उत्पाद राष्ट्र क्या है?

  • परिभाषा: एक उत्पाद राष्ट्र वह देश है जो बड़ी मात्रा में उच्च-मूल्य वाली वस्तुओं का उत्पादन और निर्यात करता है। इससे वह निवल आयातक की बजाय निवल उत्पादक राष्ट्र बन जाता है।
  • उद्देश्य: इसका मुख्य उद्देश्य केवल उपभोक्ता या असेंबलर होने की बजाय विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी वस्तुओं का विनिर्माता बनना है। इससे संबंधित देश की आर्थिक ताकत और दुनिया में उसकी रणनीतिक स्थिति, दोनों में सुधार होता है।
  • स्माइल कर्व  इनसाइटस्टैन शिह द्वारा प्रस्तुत स्माइल कर्व सिद्धांत दर्शाता है कि किसी उत्पाद की मूल्य-श्रृंखला में अधिकतम मूल्य आरंभिक चरणों (अनुसंधान एवं विकास, डिज़ाइन) और अंतिम चरणों (विपणन, ब्रांडिंग, बिक्री के पश्चात सेवाएं) में होता है, जबकि मध्यवर्ती चरण (विनिर्माण) में यह सबसे कम होता है। उदाहरण के लिए- एप्पल (3 ट्रिलियन डॉलर बाजार मूल्य) बनाम फॉक्सकॉन (85 बिलियन डॉलर बाजार मूल्य)।
    • यह कर्व इस बात पर ज़ोर देता है कि केवल असेंबल ही नहीं, बल्कि उत्पाद के पूरे जीवनचक्र में निवेश किया जाना चाहिए।
  • पिछले तीन दशकों में, दक्षिण कोरिया, जापान और कई दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र विनिर्माण केंद्रों के रूप में उभरे हैं।

एक उत्पाद राष्ट्र बनने में मौजूदचुनौतियां

  • नवाचार और अनुसंधान एवं विकास (R&D) में कमी: विनिर्माण और उच्च-तकनीक में नवाचार की कमी है। उदाहरण के लिए, भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का केवल 0.65% अनुसंधान एवं विकास पर खर्च करता है।
  • आयात पर निर्भरता: ऊर्जा, उर्वरक, धातु, एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रेडिएंट्स और प्रौद्योगिकी के मामले में भारत आयात पर अत्यधिक निर्भर है। इससे हमेशा इनकी आपूर्ति के बाधित होने का खतरा बना रहता है।
    • भारत अपनी सेमीकंडक्टर जरूरतों का 65-70% आयात करता है।
  • सीमित निजी निवेश: सुधारों के बावजूद निजी क्षेत्रक का पूंजी निर्माण कमजोर बना हुआ है।
  • विनियामक और नीतिगत बाधाएं: नियामकीय मंजूरी में देरी, नियमों का अनुपालन जटिल होना और व्यवसाय करने में सुगमता का अभाव आर्थिक संवृद्धि को प्रभावित करता है।
  • संरचनात्मक बाधाएं: अवसंरचना और कुशल श्रमिकों की कमी भारत में विनिर्माण को तेजी से बढ़ाने की क्षमता को सीमित करती हैं।
    • मेक इन इंडिया के तहत उत्पाद में वास्तविक मूल्य संवर्धन की बजाय केवल असेंबल के कार्य करने तक सीमित होने का खतरा है।
  • रोजगार सृजन: रोजगार के अवसरों का सृजन और बढ़ते युवा कार्यबल (विशेषकर विनिर्माण क्षेत्रक में) के बीच काफी अंतराल है।
  • जलवायु और संधारणीयता से जुड़े जोखिम: जलवायु परिवर्तन के खतरे, स्वच्छ ऊर्जा को अपनाने की चुनौतियां और हरित परियोजनाओं के लिए वित्त-पोषण की कमी कुछ प्रमुख जोखिम हैं।
    • भारत में 70% बिजली कोयले से उत्पादित की जाती है।

आगे की राह

  • विनिर्माण को मजबूत करना: उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना का विस्तार करने तथा इलेक्ट्रॉनिक्स, सेमीकंडक्टर्स और इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) में स्वदेशी नवाचार को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
  • अवसंरचना और कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना: लॉजिस्टिक पार्क्स, मल्टीमॉडल परिवहन और डिजिटल कनेक्टिविटी में निवेश करना चाहिए, तथा क्लस्टर-आधारित विकास के माध्यम से MSMEs को वैश्विक मूल्य श्रृंखला से जोड़ा जाना चाहिए। उदाहरण के लिए- राष्ट्रीय लॉजिस्टिक नीति, 2022. 
  • मानव पूंजी में निवेश: शिक्षा और कौशल विकास में सुधार करना चाहिए ताकि यह उत्पाद-आधारित अर्थव्यवस्था की जरूरतों (AI, रोबोटिक्स, उन्नत विनिर्माण) के अनुरूप हो सके।
    • उदाहरण के लिए- स्किल इंडिया और गति शक्ति जैसी पहलें आधार के रूप में कार्य कर सकती हैं।
  • उत्पाद विकास प्लेटफॉर्म को बढ़ावा देना: ऐसे स्मार्ट प्रोडक्ट प्लेटफ़ॉर्म तैयार किए जाने चाहिए जिन्हें स्टार्ट-अप्स और कंपनियां तेजी से विकास के लिए इस्तेमाल कर सकें, जैसे अटल इन्क्यूबेशन सेंटर।

निष्कर्ष

इंडस्ट्री 5.0 के सिद्धांतों के अनुरूप मानव रचनात्मकता और बुद्धिमत्तापूर्ण तकनीकों को जोड़ने वाले स्वदेशी नवाचार और अत्याधुनिक विनिर्माण को मजबूत करके भारत बाहरी खतरों को कम कर सकता है और मूल्य सृजन को बढ़ावा दे सकता है। वास्तव में इंडस्ट्री 5.0 मानव-केंद्रित, संधारणीय और मजबूत औद्योगिक मॉडल है जहां AI, रोबोटिक्स, IoT जैसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियां मानव की जगह लेने की बजाय उसके साथ कार्य करती हैं। व्यापार युद्धों और भू-राजनीतिक अस्थिरता के इस दौर में, यह कदम भारत की भू-रणनीतिक और आर्थिक स्वायत्तता की रक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है।  

  • Tags :
  • Make in India
  • PRODUCT NATION
  • GST Rationalisation
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