सुर्ख़ियों में क्यों?
वित्त संबंधी संसद की स्थायी समिति ने लोक सभा में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की और भारत में ESG फ्रेमवर्क में सुधार के लिए सिफारिशें की।
ESG फ्रेमवर्क क्या है?
ESG (पर्यावरण, सामाजिक और शासन) तीन प्रमुख क्षेत्रकों में कंपनी की संधारणीयता और नैतिक गतिविधियों का मूल्यांकन करने के लिए एक फ्रेमवर्क है। इसमें तीन मुख्य पहलुओं पर ध्यान दिया जाता है:पर्यावरणीय प्रभाव, सामाजिक जिम्मेदारी और कॉर्पोरेट गवर्नेंस।
ESG फ्रेमवर्क का महत्व:
- वैश्विक व्यवस्थाओं के अनुरूप: यह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संधारणीय विकास लक्ष्यों जैसे SDGs और पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते का समर्थन करता है।
- वित्तपोषण तक पहुँच: यह ESG को समझने वाले निवेशकों, ग्राहकों और कर्मचारियों को आकर्षित करता है, साथ ही ग्रीन फाइनेंसिंग (हरित वित्त) तक पहुँच आसान करता है।
- परिचालन दक्षता में सुधार: नवीकरणीय ऊर्जा जैसी संधारणीय पद्धतियों को अपनाकर लागत कम करता है।
- प्रतिस्पर्धात्मक लाभ: पर्यावरणीय/ सामाजिक नकारात्मक प्रभावों को कम करने वाली सर्वोत्तम कार्यप्रणालियों के माध्यम से नवाचार और चुनौतियों से निपटने की क्षमता को बढ़ावा देता है।
- ब्रांड वैल्यू: यह समुदाय की जरूरतों और हितधारकों की चिंताओं का समाधान करके समाज पर सकारात्मESGक प्रभाव डालता है।
भारत में रिपोर्टिंग से जुड़ी चुनौतियाँ (संसदीय स्थायी समिति द्वारा रेखांकित):
- ग्रीनवाशिंग का लगातार जोखिम: उनके ESG प्रदर्शन के बारे में झूठे या भ्रामक दावों से ब्रांड छवि को नुकसान हो सकता है।
- विभिन्न क्षेत्रों में असंगत कार्यान्वयन: मान्यता प्राप्त नियमों की कमी और रिपोर्टिंग के बिखरे हुए दृष्टिकोण के कारण अलग-अलग क्षेत्रकों में ESG का क्रियान्वयन असमान है।
- ESG पद्धतियों को अपनाने में लघु व्यवसायों के सामने आने वाली कठिनाइयाँ: ESG को अपनाने के लिए डेटा संग्रह, रिपोर्टिंग, प्रमाणन आदि के संदर्भ में शुरुआत में ही अधिक खर्च करना पड़ता है। इससे संसाधनों और विशेषज्ञता की कमी वाले लघु और मध्यम उद्यमों (SMEs) पर भारी बोझ पड़ता है।
अन्य चुनौतियां:
- जागरूकता और शिक्षा का अभाव: कई भारतीय व्यवसायों में ESG के प्रति जागरूकता, विशेषज्ञता और पेशेवरों की कमी है; संधारणीयता और ESG पर शिक्षा सीमित और अविकसित है।
- व्यावसायिक रणनीति के साथ एकीकरण: कंपनियाँ ESG को अपनी मूल व्यवसाय रणनीतियों के साथ जोड़ने में कठिनाई महसूस करती हैं। इसका नतीजा यह होता है कि उन पर खर्च तो बहुत होता है, लेकिन वास्तविक मूल्य या संधारणीयता सृजित नहीं हो पाती।
- डेटा की गुणवत्ता और उपलब्धता: कई भारतीय कंपनियों में उचित प्रणालियों और मानकों का अभाव है, जिससे ESG डेटा अविश्वसनीय लगता है और इसे मापना या लगातार रिपोर्ट करना कठिन है।
- विनियामक कमियां: SEBI ने शीर्ष 1000 सूचीबद्ध फर्मों के लिए ESG डिस्क्लोजर को अनिवार्य किया है।
- भारत में अब भी एक-समान और स्पष्ट नियमों की कमी है; ESG रिपोर्टिंग के लिए स्पष्ट, और सुसंगत फ्रेमवर्क नहीं है।
ESG को प्रभावी बनाने के लिए आगे की राह:
संसदीय स्थायी समिति की सिफारिशें:
- अलग ESG निरीक्षण संस्था की स्थापना: ग्रीनवाशिंग से निपटने के लिए कार्पोरेट कार्य मंत्रालय के अंतर्गत स्थापित की जाए।
- कंपनी अधिनियम, 2013 में संशोधन: निदेशकों की जिम्मेदारियों (fiduciary duties) में ESG उद्देश्यों को शामिल किया जाए।
- स्वतंत्र ESG समितियां: ESG रणनीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन और निगरानी सुनिश्चित करने के लिए।
अन्य अनुशंसाएँ:
- स्पष्ट ESG लक्ष्य तय करना: कंपनियों को अपनी व्यावसायिक रणनीति के अनुरूप स्पष्ट ESG लक्ष्य तय करने चाहिए।
- ये लक्ष्य विशिष्ट, मापनीय, प्राप्त करने योग्य, प्रासंगिक और समयबद्ध होने चाहिए।
- ESG प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण में निवेश: ताकि ESG रणनीतियों का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित हो सके।
- ESG विशेषज्ञों के साथ साझेदारी करना: व्यवसाय ESG को अपनाने में मदद करने के लिए ESG परामर्श फर्मों के साथ साझेदारी कर सकते हैं। ये विशेषज्ञ ESG की सर्वोत्तम कार्यप्रणालियों पर मार्गदर्शन और सहायता प्रदान कर सकते हैं।
भारत में ESG को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई अन्य पहलें:
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