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भारत में क्षेत्रीय असंतुलन (REGIONAL IMBALANCES IN INDIA) | Current Affairs | Vision IAS
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भारत में क्षेत्रीय असंतुलन (REGIONAL IMBALANCES IN INDIA)

Posted 04 Sep 2025

Updated 12 Sep 2025

1 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

वित्त संबंधी स्थायी समिति ने केंद्र सरकार से राज्यों के बीच उद्योगों का समान रूप से वितरण सुनिश्चित करके भारत में क्षेत्रीय असंतुलन को कम करने हेतु एक कार्य-योजना तैयार करने की सिफारिश की है।

अन्य संबंधित तथ्य

  • वित्त संबंधी स्थायी समिति ने अपनी 26वीं रिपोर्ट'वैश्विक आर्थिक और भू-राजनीतिक परिस्थितियों के आलोक में भारत की आर्थिक संवृद्धि के लिए रोडमैप' में उल्लेख किया है कि उद्योग राज्य सूची का विषय है।
    • हालांकि, समिति ने इस बात पर जोर दिया कि औद्योगिक विकास के लिए केंद्र सरकार की पहलें महत्वपूर्ण हैं।
  • आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 ने भी राज्यों के बीच औद्योगिक विकास में व्याप्त व्यापक असमानता को रेखांकित किया था। 
  • क्षेत्रीय असंतुलन का तात्पर्य आर्थिक विकास में अंतर तथा अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों में असमान आर्थिक संवृद्धि से है। 

संविधान की संघ सूची में भी निम्नलिखित उद्योग शामिल हैं:

  • वे उद्योग जिन्हें संसद द्वारा कानून बनाकर रक्षा या युद्ध संचालन के लिए आवश्यक घोषित किया गया है।
  • वे उद्योग जिन्हें संसद द्वारा कानून बनाकर लोकहित में आवश्यक मानते हुए उनपर संघीय नियंत्रण स्थापित किया गया है।

 

भारत में क्षेत्रीय असंतुलन के कारण

  • ऐतिहासिक कारक: क्षेत्रीय असंतुलन की शुरुआत ब्रिटिश शासन के दौरान तब शुरू हुई जब आर्थिक विकास पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र जैसे क्षेत्रों में केंद्रित हो गया।
  • भौगोलिक कारक: दुर्गम भू-भाग (जैसे- हिमालयी और पूर्वोत्तर राज्य) प्रशासन और परियोजना लागत को बढ़ा देते हैं।
  • राजनीतिक कारक: उदाहरण के लिए- विरोध प्रदर्शनों की वजह से नैनो कार प्रोजेक्ट को मजबूरी में पश्चिम बंगाल से गुजरात में स्थानांतरित करना पड़ा।
  • नीतिगत असमानताएं: हरित क्रांति का लाभ पंजाब और हरियाणा जैसे कुछ ही राज्यों को मिला, जिससे क्षेत्रीय असंतुलन में और अधिक बढ़ोतरी हुई।
  • सहायक उद्योगों के विकास में कमी: पिछड़े क्षेत्रों (जैसे- राउरकेला, बरौनी, भिलाई) में बड़े सार्वजनिक उपक्रम तो लगे, लेकिन सहायक उद्योग विकसित नहीं हुए।
  • स्थान-विशिष्ट कारक: उदाहरण के लिए- राजधानी दिल्ली के करीब होने के कारण राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (गुरुग्राम, नोएडा) में वाणिज्यिक केंद्रों और आवासीय परिसरों का विकास हुआ।
  • अवसंरचना की कमी: खराब परिवहन व्यवस्था और बैंकिंग सेवाओं की कमी इत्यादि की वजह से विकास सीमित होता है। उदाहरण के लिए- खराब सड़क/ रेल संपर्क, बैंकिंग सेवाओं की कम पहुंच और बिजली की कमी के कारण पूर्वोत्तर राज्यों में सीमित औद्योगिक विकास हुआ है।

भारत में क्षेत्रीय असंतुलन के परिणाम

  • सुरक्षा संबंधी चिंताएं: उदाहरण के लिए- पूर्वोत्तर में उग्रवाद तथा मध्य एवं पूर्वी राज्यों के बड़े हिस्सों में वामपंथी उग्रवाद का प्रसार और प्रभाव है।
  • राजनीतिक विखंडन: उदाहरण के लिए, तेलंगाना राज्य का निर्माण इसी असंतुलन का परिणाम था। महाराष्ट्र में अलग विदर्भ राज्य, असम में बोडोलैंड, आदि की मांग भी क्षेत्रीय असंतुलन का दुष्परिणाम है।
  • आर्थिक:
    • राष्ट्रीय संवृद्धि: क्षेत्रीय असंतुलन संपूर्ण राष्ट्र की अर्थव्यवस्था की संवृद्धि को धीमा कर देता है।
    • आर्थिक अंतराल: प्रति व्यक्ति आय में बड़ा अंतर। उदाहरण के लिए- कर्नाटक में प्रतिव्यक्ति आय 2,04,605 रुपये और मध्य प्रदेश में मात्र 70,434 रुपये है।
    • असंतुलन को बढ़ावा: यह देखा गया है कि समृद्ध क्षेत्र अधिक निवेश आकर्षित करते हैं। उदाहरण के लिए- चेन्नई और बैंगलोर जैसे शहरों ने अन्य शहरों की तुलना में तीव्र विकास किया है।
  • पर्यावरण: केंद्रित औद्योगिक विकास से वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण होता है। उदाहरण के लिए, दिल्ली में प्रदूषण।
  • सामाजिक: क्षेत्रीय असंतुलन से युवाओं में निराशा बढ़ती है, वहीं इससे अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBCs), महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित होते है।
  • मानव विकास में असमानता: UNDP के अनुसार, मानव विकास सूचकांक में भारतीय राज्यों में गोवा शीर्ष स्थान पर है, जबकि बिहार सबसे निचले पायदान पर है।
  • चिकित्सा कर्मियों की कमी: बिहार में 28,391 लोगों पर एक डॉक्टर है, जबकि दिल्ली में 2,203 लोगों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है। दोनों ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के प्रति एक हजार आबादी पर 1 डॉक्टर के मानक को पूरा नहीं करते हैं।
  • अन्य परिणाम: मुंबई, नई दिल्ली, चेन्नई और हैदराबाद जैसे महानगरों में आवास और जलापूर्ति की समस्याएं विद्यमान हैं।

आगे की राह 

  • पिछड़े क्षेत्रों में नए वित्तीय संस्थानों की स्थापना: सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि ये संस्थान पिछड़े क्षेत्रों के सर्वांगीण विकास में योगदान दें।
  • नए क्षेत्रीय बोर्ड: आवश्यक कानूनी शक्तियों और वित्त-पोषण के साथ नए क्षेत्रीय बोर्ड स्थापित किए जाने चाहिए ताकि ये क्षेत्रीय असंतुलन को दूर कर सकें।  
  • ग्रोथ कॉरिडोर: राज्यों के पिछड़े क्षेत्रों के तेजी से विकास के लिए शिक्षा जोन, कृषि जोन और औद्योगिक जोन वाले ग्रोथ कॉरिडोर विकसित करने का प्रयास किया जाना चाहिए।
  • प्रदर्शन के आधार पर वित्तीय आवंटन: राज्यों को, जिनमें विकसित राज्य भी शामिल हैं, अपनी सीमाओं के भीतर असमानताओं को कम करने के लिए पुरस्कृत करने हेतु एक प्रणाली शुरू करनी चाहिए।
  • अवसंरचना विकास के लिए अतिरिक्त धन: अल्प विकसित राज्यों और पिछड़े क्षेत्रों में अंतर-जिला स्तर पर मुख्य अवसंरचना के निर्माण के लिए अतिरिक्त वित्त प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • पिछड़े राज्यों में सुशासन और स्थानीय शासन को मजबूत करना: प्रभावी प्रशासन राज्यों को (खासकर पिछड़े क्षेत्रों में) राजस्व बढ़ाने, निवेश आकर्षित करने और संसाधन उपयोग में सुधार करने में मदद कर सकता है।
  • अन्य उपाय: नियम-कानूनों में छूट, अनुसंधान-विकास (R&D) और नवाचार, तथा कार्यबल के कौशल स्तर में सुधार जैसे उपाय किए जा सकते हैं।

निष्कर्ष

क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने के लिए ऐसे परिवेश का निर्माण करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो नवाचार को बढ़ावा दे, निवेश को आकर्षित करे और संसाधनों का कुशल उपयोग सुनिश्चित करे। गवर्नेंस को मजबूत करना, अवसंरचना में सुधार करना, तथा सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद के माध्यम से राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना संतुलित विकास के लिए आवश्यक है।

  • Tags :
  • Standing Committee on Finance
  • Regional Imbalances in India
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