इस विधेयक में आपदाओं से निपटने में प्रतिक्रियात्मक पद्धति की जगह अग्र-सक्रिय (Proactive) के साथ-साथ नवाचारी और भागीदारी आधारित तरीका अपनाने पर बल दिया गया है।
विधेयक के मुख्य प्रावधानों पर एक नजर
- आपदा प्रबंधन योजनाएं बनाना: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (SDMAs) के पास आपदा-प्रबंधन योजनाएं बनाने की जिम्मेदारी होगी।
- NDMA और SDMAs के कार्य: इन्हें कई नई जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- आपदा जोखिमों (जैसे-चरम जलवायु घटनाओं) की समय-समय पर समीक्षा करना,
- न्यूनतम राहत मानकों के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित करना,
- राष्ट्रीय और राज्य आपदा डेटाबेस बनाना आदि।
- NDMA में नियुक्तियां: NDMA को अपने स्तर पर अधिकारियों और कर्मचारियों की संख्या एवं श्रेणी निर्धारित करने का अधिकार दिया गया है। हालांकि, इसके लिए केंद्र सरकार की मंजूरी लेना आवश्यक है
- शहरी आपदा प्रबंधन प्राधिकरण: यह विधेयक राज्य सरकारों को राज्य की राजधानियों और नगर निगम वाले शहरों के लिए एक अलग आपदा प्रबंधन प्राधिकरण गठित करने का अधिकार प्रदान करता है।
- राज्य आपदा मोचन बल (SDRF): यह विधेयक राज्य सरकारों को SDRF स्थापित करने, इसके कार्यों को निर्धारित करने और इसके सदस्यों के लिए सेवा शर्तें तय करने का अधिकार देता है।
- मौजूदा आपदा-प्रबंधन समितियों को वैधानिक दर्जा: विधेयक में राष्ट्रीय संकट-प्रबंधन समिति (NCMC) और उच्च स्तरीय समिति (HLC) जैसी मौजूदा संस्थाओं को वैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है।
- NCMC: यह राष्ट्रीय स्तर पर गंभीर प्रकृति की विपदाओं से निपटने के लिए नोडल संस्था के रूप में कार्य करेगी।
- HLC: यह आपदाओं के दौरान राज्य सरकारों को वित्तीय सहायता प्रदान करेगी।
आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के बारे में
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