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केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने भारतीय कंपनियों द्वारा विदेशों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में वृद्धि पर चिंता जताई

Posted 29 May 2025

17 min read

हाल ही में, केंद्रीय वित्त मंत्रालय के आर्थिक कार्य विभाग ने अप्रैल 2025 की मासिक आर्थिक समीक्षा जारी की है। इस समीक्षा के अनुसार वित्त वर्ष 2025 के दौरान भारतीय कंपनियों द्वारा विदेशों में पूंजी निवेश, विशेष रूप से FDI में लगभग 12.5 बिलियन डॉलर की वृद्धि दर्ज की गई है। 

  • विदेशों में पूंजी निवेश में FDI + निवल विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) शामिल हैं।  

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) क्या है?

  • भारतीय नजरिये से: भारत के बाहर के निवासियों द्वारा भारत में निम्नलिखित में किया गया निवेश FDI माना जाता है:
    • किसी असूचीबद्ध भारतीय कंपनी में इक्विटी के माध्यम से निवेश, या
    • किसी सूचीबद्ध भारतीय कंपनी के शेयरों के जारी होने के बाद फुली डाइल्यूटेड आधार पर पेड अप कैपिटल के 10% या उससे अधिक का निवेश।
      • फुली डाइल्यूटेड शेयर किसी कंपनी के कुल सामान्य शेयरों की संख्या को दर्शाते हैं। इनमें शामिल होते हैं: वर्तमान में शेयरधारकों के पास मौजूद आउटस्टैंडिंग शेयर्स, और वे संभावित शेयर्स, जिन्हें प्रेफरेंस शेयर्स, स्टॉक ऑप्शंस आदि के रूपांतरण से प्राप्त किया जा सकता है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश तब होता है, जब कोई कंपनी किसी दूसरे देश की व्यावसायिक कंपनी में नियंत्रक स्वामित्व प्राप्त कर लेती है।
    • दूसरी ओर, विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) विदेशी परिसंपत्तियों में हिस्सेदारी को दर्शाता है लेकिन इसमें कंपनी के प्रबंधन या स्वामित्व का नियंत्रण शामिल नहीं होता।
  • FDI के माध्यम से विदेशी कंपनियां केवल पूंजी ही नहीं लाती हैं, बल्कि अपने साथ ज्ञान, कौशल और तकनीकें भी लाती हैं।

भारतीय कंपनियों द्वारा विदेशों में पूंजी निवेश में वृद्धि के कारण:

  • वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता: संयुक्त राज्य अमेरिका में व्यापार प्रतिबंधों और टैरिफ में वृद्धि के चलते भारतीय कंपनियां देश में निवेश को लेकर "सतर्क" हो गई हैं।
  • शासन-प्रशासन में खामियां: भारत और निवेश प्राप्त करने वाले देशों में नियम-कानून में कमियों के कारण भारतीय कंपनियां सिंगापुर, मॉरीशस और नीदरलैंड जैसे टैक्स हैवन्स देशों में विदेशी निवेश कर रही हैं।
  • इक्विटी और गारंटी में तेज वृद्धि: RBI के विदेशी मुद्रा विभाग के अनुसार, भारतीय कंपनियों द्वारा अपनी विदेशी सहायक कंपनियों को जारी गारंटियां विदेशों में उनके व्यवसाय के प्रसार का एक तरीका बनता जा रहा है। 
    • दरअसल भारतीय कंपनियों द्वारा समर्थित गारंटी (विशेष रूप से बैंक गारंटी) की वजह से सहायक कंपनियों के लिए विदेशी संस्थाओं से कर्ज लेना या फंड जुटाना आसान बन जाता है। 
  • अन्य कारण: मूल्य श्रृंखलाओं में अपनी स्थिति को मजबूत बनाने, अफ्रीका जैसे नए बाजारों में अपनी पकड़ बनाने आदि के लिए भी विदेशों में पूंजी निवेश किया जा रहा है।

भारत से पूंजी बाहर जाने के प्रभाव:

  • नकारात्मक प्रभाव
    • भारत में निवेश में कमी आना: सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अनुसार भारतीय कंपनियों द्वारा वर्ष 2024-25 में 6.6 लाख करोड़ रुपये का अनुमानित निवेश किया गया; हालांकि 2025-26 में यह घटकर 4.9 लाख करोड़ रुपये रह गया।  
    • अन्य प्रभाव: शेयर बाजार में अधिक उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है, विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आई है, भारतीय मुद्रा का अवमूल्यन हुआ है, आदि।
  • सकारात्मक
    • सॉफ्ट पावर बढ़ाने में सहायक: अफ्रीकी देशों में निवेश से वहां के लोगों में भारत के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण बना है।
    • अन्य प्रभाव: भारतीय निवेशकों के पोर्टफोलियो में विविधता आई है, भारतीय व्यवसायों का विश्व में विस्तार हुआ है, देश में सुधार करने के लिए प्रोत्साहन मिला है, आदि।
  • Tags :
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश
  • FPI
  • वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता
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