सुर्ख़ियों में क्यों?
भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में देश भर में 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस मनाया गया।
अन्य संबंधित तथ्य
- भारत सरकार ने 2021 में आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान प्रत्येक वर्ष 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी।
- यह दिवस, भगवान बिरसा मुंडा की जयंती की स्मृति तथा भारत के स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी समुदायों के योगदान के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए मनाया जाता है।
- समारोह के दौरान प्रमुख घटनाक्रम:
- इस अवसर पर छत्तीसगढ़ में "माई भारत यूथ वॉलंटियर्स" के साथ "माटी के वीर पदयात्रा" नाम से विशेष कार्यक्रम, समारोह आदि का आयोजन किया गया।
- भगवान बिरसा मुंडा के सम्मान में स्मारक सिक्का और डाक टिकट जारी करके उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
- प्रधान मंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महाअभियान (पी.एम.-जनमन), वन धन विकास केंद्र (VDVKs) आदि योजनाओं के तहत आदिवासी समुदायों के जीवन को बेहतर बनाने के उद्देश्य से 6,640 करोड़ रुपये से अधिक की विकास परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया गया।
प्रधान मंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महाअभियान (पी.एम.-जनमन) के बारे में
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बिरसा मुंडा के बारे में

- प्रारंभिक जीवन:
- उनका जन्म 1875 में वर्तमान झारखंड के खूंटी जिले के उलिहातू गांव में हुआ था। उनके बचपन का नाम दाउद मुंडा था।
- वे छोटानागपुर पठार क्षेत्र की मुंडा जनजाति से संबंधित थे। यह क्षेत्र वर्तमान में झारखंड में है।
- उन्होंने अपना कुछ समय प्रमुख वैष्णव उपदेशक आनंद पांड के साथ बिताया।
- उनका योगदान:
- उन्होंने बिरसाइत (Birsait) नामक एक नए धर्म की स्थापना की।
- यह संप्रदाय एक ईश्वर में विश्वास करता था और आदिवासी समाज में सुधार के लिए आचार संहिता का पालन करने पर जोर देता था।
- बिरसा मुंडा ने शराब, तंत्र-मंत्र और जादू-टोने के खिलाफ अभियान चलाया और लोगों को स्वच्छ रहने के बारे जागरूक किया।
- बिरसा ने आदिवासियों को ब्रिटिश शासन और ज़मींदारी व्यवस्था के अत्याचारों के खिलाफ जागरूक किया। उन्होंने आदिवासी लोगों को अपनी सांस्कृतिक धरोहर और सामुदायिक भूमि स्वामित्व से जुड़े अधिकारों से अवगत कराया।
- उन्होंने मुंडा विद्रोह का नेतृत्व किया। इस विद्रोह को "उलगुलान (महान विप्लव)" भी कहा जाता है।
- उन्होंने बिरसाइत (Birsait) नामक एक नए धर्म की स्थापना की।
- मुंडा जनजाति में बिरसा के योगदान के कारण उन्हें भगवान का दर्जा दिया गया है। उन्हें धरती आबा (पृथ्वी का पिता) के रूप में पूजा जाता है।
मुंडा विद्रोह के बारे में
- बिरसा ने 1895 में छोटानागपुर, बंगाल और ओडिशा के आदिवासियों को एकजुट करके इस आंदोलन की शुरुआत की थी। इस आंदोलन का लक्ष्य दिकू लोगों (बाहरी लोगों) और यूरोपीय लोगों (जिन्हें रावण कहा जाता था) को अपने क्षेत्र से निकाल कर स्वतंत्र मुंडा राज्य की स्थापना करना था।

- विद्रोह के प्रमुख कारण:
- जमींदारी व्यवस्था की शुरूआत: औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार ने मुंडा समुदाय की मुंडारी खुंटकट्टी यानी सामुदायिक भू-स्वामित्व जैसी पारंपरिक प्रथाओं को समाप्त कर दिया। जो आदिवासी पहले भूस्वामी थे, वे जमींदारी व्यवस्था के चलते भूमिहीन मजदूर बन गए।
- ब्रिटिश सरकार की नीतियों के चलते आदिवासी समुदायों में वेथ बेगारी (जबरन मजदूरी) और बंधुआ मजदूर (बंधुआ मजदूरी) जैसी कुरीतियां पैदा हो गईं।
- दिकुओं द्वारा शोषण: औपनिवेशिक सरकार की भू-राजस्व प्रणाली ने बाहरी लोगों यानी बिचौलियों (ठेकेदारों) को राजस्व संग्रह प्रणाली में शामिल किया। इसके चलते अधिक कर वसूला जाने लगा, करों को नकदी में भुगतान करना अनिवार्य हो गया, उत्पाद शुल्क जैसे कई अन्य कर लगाए गए। इस तरह आदिवासी समुदायों का कई तरह से शोषण किए जाने लगा।
- मिशनरियों ने आदिवासियों की पारंपरिक संस्कृति, धर्म और रीति-रिवाजों की आलोचना की।
- जमींदारी व्यवस्था की शुरूआत: औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार ने मुंडा समुदाय की मुंडारी खुंटकट्टी यानी सामुदायिक भू-स्वामित्व जैसी पारंपरिक प्रथाओं को समाप्त कर दिया। जो आदिवासी पहले भूस्वामी थे, वे जमींदारी व्यवस्था के चलते भूमिहीन मजदूर बन गए।
- विद्रोह की रणनीति:
- गुरिल्ला युद्ध तकनीक: इस नीति का इस्तेमाल ब्रिटिश सत्ता से जुड़ी संस्थानों, जैसे- पुलिस स्टेशन, सरकारी इमारत तथा दिकू और ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा प्रशासित अन्य संरचनाओं पर हमला करने के लिए किया गया।
- प्रतीकों का उपयोग: आंदोलन के दौरान आदिवासी समुदायों को प्रोत्साहित करने तथा एकजुट करने के लिए पारंपरिक प्रतीकों और देशज भाषा का उपयोग किया गया। इनमें शामिल थे-
- बिरसा मुंडा का नारा: "अबुआ राज सेतेर जना, महारानी राज टुंडू जना" (हमारा राज्य स्थापित हो, महारानी का राज्य समाप्त हो)।
- स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में सफेद झंडे का उपयोग किया गया।
- विद्रोह की प्रमुख घटनाएं:
- 1895: बिरसा मुंडा को दंगा करने के आरोप में गिरफ्तार करके 2 साल के कारावास की सजा सुनाई गई।
- 1897: जेल से रिहा होने के बाद भी बिरसा ने अपनी गतिविधियां जारी रखी। वह गांव-गांव जाकर खुद के नेतृत्व में एक मुंडा राज्य की स्थापना करने के लिए समर्थन जुटाने लगे।
- 1900: उपर्युक्त गतिविधियों के चलते बिरसा मुंडा को चक्रधरपुर के जंगल में एक बार फिर से गिरफ्तार कर लिया। कैद के दौरान ही हैजा बीमारी से उनकी मृत्यु हो गई।
- विद्रोह के परिणाम:
- छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908: इसके तहत आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासियों को हस्तांतरित करने पर रोक लगा दी गई।
- सरकार ने "वेथ बेगारी" नामक जबरन श्रम प्रणाली को समाप्त कर दिया।

