घरेलू प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण बैंक {DOMESTIC SYSTEMICALLY IMPORTANT BANKS (D-SIBS)} | Current Affairs | Vision IAS
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संक्षिप्त समाचार

Posted 26 Dec 2024

33 min read

घरेलू प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण बैंक {DOMESTIC SYSTEMICALLY IMPORTANT BANKS (D-SIBS)}

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने “घरेलू प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण बैंकों (D-SIBs)” की 2024 की सूची जारी की

  • भारतीय स्टेट बैंक (SBI), HDFC बैंक और ICICI बैंक को RBI की 2024 की D-SIBs की सूची में बरकरार रखा गया है।

D-SIBs के बारे में

  • D-SIBs का दर्जा अग्रलिखित आधारों पर दिया जाता है- उनका आकार, उनकी अंतर्संबंधता, उनका विकल्प या वित्तीय संस्थान अवसंरचना आसानी से उपलब्ध न होना और जटिलता।
  • D-SIBs परस्पर संबद्ध संस्थाएं होती हैं। इनकी विफलता पूरी वित्तीय प्रणाली को प्रभावित कर सकती है और अस्थिरता पैदा कर सकती है। इस कारण इन्हें असफल नहीं होने दिया जा सकता।
  • यदि D-SIBs सूची का कोई बैंक विफल होता है तो बैंकिंग प्रणाली और समग्र अर्थव्यवस्था की आवश्यक सेवाओं में बड़ा व्यवधान पैदा हो सकता है।

D-SIBs सूची की घोषणा के प्रावधान

  • यह सूची RBI द्वारा 2014 में जारी D-SIB फ्रेमवर्क पर आधारित है।
    • यह फ्रेमवर्क बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बेसल समिति (BCBS) के फ्रेमवर्क पर आधारित है।
    • D-SIBs के रूप में सूचीबद्ध होने के लिए, किसी बैंक के पास राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद के 2 प्रतिशत से अधिक की परिसंपत्ति होनी चाहिए।
  • बैंकों को उनकी D-SIB की श्रेणी के आधार पर उनकी जोखिम भारित परिसंपत्तियों (RWAs) का कुछ हिस्सा अतिरिक्त कॉमन इक्विटी टियर-1 (CET-1) के रूप में रखना होता है। इस आधार पर उन्हें 5 बकेट्स में वर्गीकृत किया जाता है।
    • बकेट 1 श्रेणी के बैंकों को सबसे कम CET-1 और बकेट 5 श्रेणी के बैंकों को सबसे अधिक CET-1 बनाए रखना होता है।
  • इसी प्रकार, यदि किसी विदेशी बैंक की भारत में शाखा है और यदि वह प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण वैश्विक बैंक (G-SIB) है, तो उसे G-SIB से संबंधित नियमों के अनुरूप भारत में अतिरिक्त CET-1 पूंजी अधिभार को बनाए रखना होगा।
    • G-SIBs की सूची फाइनेंसियल स्टेबिलिटी बोर्ड (FSB) जारी करता है।
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  • घरेलू प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण बैंक

खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने ‘द स्टेट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर, 2024’ रिपोर्ट जारी की (‘THE STATE OF FOOD AND AGRICULTURE 2024’ REPORT RELEASED BY FAO)

यह रिपोर्ट कृषि-खाद्य प्रणालियों के मूल्य-संचालित रूपांतरण पर जोर देती है। साथ ही, यह कृषि-खाद्य प्रणालियों (खेत से खाने की मेज तक) की वैश्विक छिपी लागतों (Hidden costs) पर पिछले संस्करण के अनुमानों पर आधारित है।

  • छिपी हुई लागत बाहरी लागतों (यानी नकारात्मक बाहरी प्रभाव) या अन्य बाजार या नीतिगत विफलताओं से होने वाले आर्थिक नुकसान को व्यक्त करती है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र

  • छिपी हुई लागत: औद्योगिक और विविधीकरण वाली कृषि-खाद्य प्रणालियां वैश्विक मात्राबद्ध छिपी लागतों (लगभग 5.9 ट्रिलियन 2020 PPP डॉलर) में अधिकतम योगदान देती हैं। इन लागतों में गैर-संचारी रोगों से जुड़ी स्वास्थ्य संबंधी छिपी लागतों की अधिकता होती है।
  • अस्वास्थ्यकर आहार पैटर्न (जैसे- साबुत अनाज का कम सेवन, सोडियम का अधिक सेवन, आदि) सभी मात्राबद्ध छिपी लागतों का 70% हिस्सा हैं।
  • योगदान देने वाले अन्य कारकों में शामिल हैं: सामाजिक लागत (अल्पपोषण और गरीबी के कारण) तथा पर्यावरणीय लागत (ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन, आदि)।
  • भारत से संबंधित निष्कर्ष: भारत के संबंध में कुल छिपी हुई लागत सालाना लगभग 1.3 ट्रिलियन डॉलर है। इस मामले में चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद भारत तीसरे स्थान पर है। भारत में छिपी हुई लागत मुख्य रूप से अस्वास्थ्यकर आहार पैटर्न से प्रेरित है।

कृषि-खाद्य मूल्य श्रृंखलाओं को बदलने पर मुख्य सिफारिशें

  • औद्योगिक कृषि-खाद्य प्रणालियों में (उच्च शहरीकरण के साथ लंबी मूल्य-श्रृंखलाएं): खाद्य आधारित आहार विषयक दिशा-निर्देशों को कृषि-खाद्य प्रणाली एप्रोच में अपग्रेड किया जाना चाहिए। साथ ही, पोषक तत्व संबंधी लेबल एवं प्रमाणन को अनिवार्य किया जाना चाहिए और सूचना अभियान संचालित करने चाहिए। 
  • पारंपरिक कृषि खाद्य प्रणालियों में (कम शहरीकरण के साथ छोटी मूल्य-श्रृंखलाएं): पर्यावरणीय फुटप्रिंट में वृद्धि से बचने के लिए पारंपरिक उत्पादकता बढ़ाने वाले हस्तक्षेपों को पर्यावरणीय उपायों और आहार संबंधी संपूरकों के साथ पूरक बनाना चाहिए। 
  • पर्यावरणीय फुटप्रिंट का अर्थ है कि किसी व्यक्ति, कंपनी, या गतिविधि का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है
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  • द स्टेट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर, 2024

विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन {WORLD ORGANISATION FOR ANIMAL HEALTH (WOAH)}

हरियाणा स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (ICAR-NRC इक्वाइन) को WOAH संदर्भ प्रयोगशाला (Reference Laboratory) का दर्जा प्रदान किया गया है।

  • यह मान्यता विशेष रूप से इक्वाइन पिरोप्लाज़मोसिस रोग में इसकी विशेषज्ञता के लिए प्रदान किया गया है।
    • इक्वाइन पिरोप्लाज्मोसिस, टिक-जनित प्रोटोजोआ परजीवियों के कारण होता है। यह बीमारी मुख्यतः घोड़ों, गधों, खच्चरों और जेब्रा को प्रभावित करती है।

WOAH के बारे में

  • यह 1924 में स्थापित यह एक अंतर-सरकारी संगठन है।
  • उद्देश्य: पशु रोगों के बारे में जानकारी का प्रसार करना और वैश्विक स्तर पर पशु स्वास्थ्य में सुधार करना।
  • सदस्य: भारत सहित 183 देश।
  • मुख्यालय: पेरिस (फ्रांस)। 
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  • विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन

विश्व बौद्धिक संपदा संकेतक, 2024 रिपोर्ट (WORLD INTELLECTUAL PROPERTY INDICATORS 2024 REPORT)

विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) द्वारा विश्व बौद्धिक संपदा संकेतक, 2024 रिपोर्ट जारी की गई

  • इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2018 एवं 2023 के बीच पेटेंट फाइलिंग की संख्या में दोगुनी वृद्धि हुई है। इसी के साथ बौद्धिक संपदा की फाइलिंग में काफी बढ़ोतरी हुई है।

इस रिपोर्ट में भारत से संबंधित अन्य मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र:

  • पेटेंट: 64,500 पेटेंट फाइलिंग के साथ भारत विश्व स्तर पर छठे स्थान पर है। साथ ही, भारत का पेटेंट-GDP अनुपात 144 से बढ़कर 381 हो गया है।
  • ट्रेडमार्क: भारत का बौद्धिक संपदा (IP) कार्यालय ट्रेडमार्क के मामले में वैश्विक स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा कार्यालय है और अब ट्रेडमार्क फाइल करने के मामले में भारत दुनिया में चौथे स्थान पर है। 
  • औद्योगिक डिजाइन फाइलिंग: इस संबंध में 2023 में 36% की वृद्धि के साथ विश्व स्तर पर भारत 10वें स्थान पर है, जो रचनात्मक डिजाइन में उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है।

पेटेंट दाखिल करने या फाइलिंग में वृद्धि के प्रेरक कारक:

  • सरकारी पहलें और नीतिगत समर्थन: उदाहरण के लिए पेटेंट (संशोधन) नियम, 2024 के जरिए नवीनीकरण शुल्क और पेटेंट के कामकाज का विवरण दाखिल करने की आवृत्ति को कम किया गया है। साथ ही, पेटेंट प्रक्रिया को सरल बनाया गया है। इसके अलावा, राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति, 2016 भी जारी की गई है।
  • आवेदनों का समय पर निपटान: भारत ने वित्त वर्ष 2023-24 में 1.03 लाख पेटेंट स्वीकृत किए थे। 
  • मजबूत बौद्धिक सम्पदा व्यवस्था: इसमें पेटेंट दाखिल करने की प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण करना, IPR सुविधा केंद्रों की स्थापना आदि शामिल हैं।

भारत में पेटेंट से संबंधित चुनौतियां/ मुद्दे:

  • बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड को समाप्त करना: इससे बौद्धिक संपदा से जुड़े केसों में अपीलों का निवारण करने में बाधा उत्पन्न हो रही है।
  • एवरग्रीनिंग ऑफ पेटेंट: इसमें पेटेंट अवधि को बढ़ाना, दवाओं पर एकाधिकार की गारंटी मिलना आदि शामिल हैं। 
  • अन्य मुद्दे: इसमें अनिवार्य लाइसेंसिंग, प्रक्रिया में प्रत्येक चरण के लिए एक निश्चित समय-सीमा का अभाव आदि शामिल हैं।
  • Tags :
  • विश्व बौद्धिक संपदा संकेतक, 2024 रिपोर्ट
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