सुर्ख़ियों में क्यों?
भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, अलग-अलग योजनाओं के तहत कई राज्यों में महिलाओं को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) के माध्यम से 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक की राशि उनके खातों में ट्रांसफर की गई है।
अन्य संबंधित तथ्य
- आठ राज्यों में अलग-अलग योजनाओं के तहत लगभग 2.11 लाख करोड़ रुपये की राशि महिलाओं को वितरित की जा रही है। यह राशि संबंधित राज्य की राजस्व प्राप्तियों का लगभग 3 से 11 प्रतिशत है।
- रिपोर्ट में इस तरह की योजनाओं के सकारात्मक पहलू को भी रेखांकित किया गया है, क्योंकि इससे कम आय वाले परिवारों की खपत एवं उपभोग व्यय में वृद्धि हुई है।
- रिपोर्ट में वर्णित कुछ योजनाएं इस प्रकार हैं:
- गृह लक्ष्मी: इस योजना के तहत कर्नाटक सरकार परिवार की महिला मुखिया को प्रति माह 2,000 रुपये देती है।
- मुख्यमंत्री लाडकी बहिण योजना: इस योजना के तहत महाराष्ट्र सरकार 21-60 वर्ष की आयु की पात्र महिलाओं को प्रतिमाह 1,500 रुपये उनके खातों में ट्रांसफर करती है।
- मुख्यमंत्री लाडली बहना योजना: इस योजना के तहत मध्य प्रदेश सरकार पात्र महिलाओं को प्रतिमाह 1,250 रुपये उनके खातों में ट्रांसफर करती है।
- सुभद्रा योजना: ओडिशा सरकार की इस योजना में 21-60 वर्ष की पात्र महिलाओं को पांच वर्ष की अवधि में 50,000 रुपये देने का प्रावधान है।
प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) के बारे में
- शुरुआत: DBT की शुरुआत 1 जनवरी, 2013 को हुई थी।
- उद्देश्य: इसका मुख्य उद्देश्य नकद सब्सिडी और विभिन्न योजनाओं के लाभों को सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में ट्रांसफर करना है। इसका लक्ष्य है भ्रष्टाचार और लीकेज को कम करना, लाभार्थियों को त्वरित और पारदर्शी तरीके से लाभ पहुंचाना तथा वितरण प्रणाली में होने वाली देरी को खत्म करना।
- DBT पहल के तहत सहायता देने का तरीका:
- कैश ट्रांसफर: उदाहरण- प्रधान मंत्री किसान सम्मान निधि (किसान आय सहायता), पेंशन (वृद्धावस्था पेंशन, विधवा पेंशन), छात्रवृत्ति आदि।
- वस्तुओं के रूप में सहायता: उर्वरक सब्सिडी, सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत अनाज वितरण (PDS), मध्याह्न भोजन या मिड डे मील (पी.एम. पोषण), आदि।

- कार्यप्रणाली (इंडिया स्टैक पर आधारित):
- सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली (Public Financial Management System: PFMS): इसे पहले केंद्रीय योजना निगरानी प्रणाली (Central Plan Schemes Monitoring System- CPSMS) के नाम से जाना जाता था। यह वेब आधारित ऑनलाइन सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन है। यह नेशनल पेमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) के आधार पेमेंट ब्रिज (APB) सिस्टम के माध्यम से लाभार्थियों की सूची तैयार करना, डिजिटल सिग्नेचर एवं पेमेंट प्रोसेसिंग जैसे कार्य करती है।
- JAM (जन धन-आधार-मोबाइल) ट्रिनिटी: लाभार्थियों को बिना किसी रुकावट के विभिन्न योजनाओं का लाभ पहुँचाने के लिए, उनके आधार नंबर से लिंक जन धन खाते और मोबाइल नंबर को आपस में जोड़ा गया है।
- बैंकिंग अवसंरचना: DBT पहल के तहत वित्तीय समावेशन और फंड ट्रांसफर के लिए बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट्स, पेमेंट बैंक और आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली (Aadhaar-enabled Payment Systems: AePS) का उपयोग किया जाता है।

- UPI एकीकरण: यह पहल अलग-अलग पेमेंट सिस्टम के बीच समन्वय सुनिश्चित करती है। इससे सब्सिडी एवं लाभ/ सेवाओं के वितरण में सार्वजनिक और निजी, दोनों क्षेत्रकों की भागीदारी संभव हो पाती है।
DBT इकोसिस्टम ने भारत में सामाजिक कल्याण में कैसे बदलाव लाया है?
- योजनाओं का प्रभावी कार्यान्वयन: 2016 से अब तक DBT के माध्यम से 90 करोड़ लोगों को 450 से अधिक योजनाओं का लाभ पहुंचाया गया है और 450 बिलियन डॉलर की राशि सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में ट्रांसफर की गई है।
- यह राशि केंद्र सरकार के कल्याण और सब्सिडी बजट के 60% के बराबर है।
- कोविड-19 के दौरान सहायक: लॉकडाउन के दौरान DBT बहुत प्रभावी सिद्ध हुई थी। मार्च और अप्रैल, 2020 के बीच पी.एम.-किसान और मनरेगा जैसी योजनाओं के तहत 11.42 करोड़ लाभार्थियों को 27,442 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए गए थे।
- राज्यों ने 180 कल्याणकारी योजनाओं के अंतर्गत 4.59 करोड़ लाभार्थियों को 9,217 करोड़ रुपये वितरित किए थे।
- वित्तीय समावेशन: DBT को दक्षतापूर्वक लागू करने के लिए, प्रधान मंत्री जन धन योजना (PMJDY) के तहत 46 करोड़ से अधिक बैंक खाते खोले गए हैं। इनमें 67% बैंक खाते ग्रामीण और अर्ध-शहरी जिलों में खोले गए हैं। PMJDY के तहत 56% बैंक खाते महिलाओं के हैं।
- पारदर्शिता और जवाबदेही: DBT को आधार नंबर से जोड़ने के बाद 9 करोड़ से अधिक फर्जी लाभार्थियों की पहचान की गई है। इससे वास्तविक लाभार्थियों की पहचान हो सकी है और सरकार को 40 बिलियन डॉलर की बचत हुई है। इससे पहले सरकार को प्रतिवर्ष अपनी GDP के 2% के बराबर का नुकसान झेलना पड़ता था।
- सामाजिक-आर्थिक प्रभाव:
- मैनुअल स्कैवेंजर्स के लिए स्व-रोजगार जैसे पुनर्वास कार्यक्रमों के माध्यम से सामाजिक प्रगति सुनिश्चित की गई है।
- किसानों को उर्वरक, बीमा और अन्य कृषि इनपुट सीधे प्रदान करके तथा बीमा योजनाओं के लाभों को उनके खातों में ट्रांसफर करके कृषि अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाया गया है।
- प्रधान मंत्री गरीब कल्याण योजना जैसी योजनाओं के तहत जन धन खातों में कैश ट्रांसफर के माध्यम से महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता में वृद्धि की गई है।
- अंतर्राष्ट्रीय मान्यता: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भारत की DBT पहल की प्रशंसा करते हुए इसे एक "लॉजिस्टिक मार्वेल" करार दिया है, जिससे महिलाओं, बुजुर्गों और किसानों को लाभ पहुँचा है।
- विश्व बैंक के अध्यक्ष ने भी कैश ट्रांसफर के माध्यम से 85% ग्रामीण और 69% शहरी परिवारों तक सीधे लाभ पहुंचाने वाली DBT की सफलता की प्रशंसा की है।
DBT से जुड़ी हुई चिंताएं और आलोचनाएं
- दक्षता पर अधिक निर्भरता:
- DBT जैसे प्रौद्योगिकी-आधारित समाधानों को प्राथमिकता देने से राज्य की अपनी क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता की उपेक्षा हो सकती है।
- यह शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल जैसी सार्वजनिक सेवाओं में व्यवस्थागत खामियों को दूर करने में विफल रही है।
- गरीबों को निजी क्षेत्रक के विकल्पों की ओर धकेलना: कैश ट्रांसफर की वजह से बुनियादी सेवाएं प्राप्त करने का बोझ गरीबों पर डाल दिया जाता है। गरीब लोग अक्सर निजी क्षेत्रक से सेवाएं प्राप्त करने में अक्षम सिद्ध होते हैं।
- अस्थायी समाधान: कैश ट्रांसफर तात्कालिक और अल्पकालिक समाधान है। यह वास्तव में गरीबी और असमानता जैसी जटिल व दीर्घकालिक समस्याओं का समाधान करने में विफल रहा है।
- सीमित पहुंच:
- भौगोलिक बाधाएं: दूर-दराज वाले इलाकों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त बैंकिंग सुविधाओं और डिजिटल अवसंरचनाओं का अभाव है। इससे कई लाभार्थियों को DBT सेवाओं का लाभ प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है।
- वित्तीय साक्षरता की कमी: देश की आबादी के एक बड़े हिस्से, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र के लोगों में वित्तीय साक्षरता की कमी है। उन्हें योजना का लाभ प्राप्त करने की प्रक्रिया की जानकारी नहीं होती है। इससे वे योजना के लाभार्थी के रूप में अपना नाम शामिल नहीं करवा पाते हैं।
- लाभार्थियों की पहचान: कई योजनाओं के लाभार्थियों की सूची में बड़ी संख्या में ऐसे नाम भी हैं जो पात्र नहीं हैं, वहीं कई मामलों में वास्तविक लाभार्थियों के ही नाम शामिल नहीं हैं।
- उदाहरण के लिए- 2022 में, e-KYC मानदंडों को अपडेट करने में विफलता के कारण लगभग 6.65 लाख किसानों को पी.एम. किसान योजना का लाभ नहीं मिला।
- अन्य समस्याएं:
- DBT पहल के क्रियान्वयन में कई चुनौतियां हैं, जैसे कि लेनदेन पूरा न होना, विभिन्न भुगतान प्रणालियों में एकरूपता का अभाव और सबसे महत्वपूर्ण बात, काश्तकार या बंटाईदार किसान जैसे वंचित समूहों तक लाभ नहीं पहुंच पाना।
- बैंकों और सरकारी एजेंसियों के बीच बेहतर संवाद का अभाव है। इसके अलावा लाभार्थियों की शिकायतों और समस्याओं के समाधान के लिए शिकायत निवारण तंत्र की भी कमी है।
आगे की राह
- सुधार लक्ष्य:
- DBT 2.0 के तहत कवरेज का विस्तार करना चाहिए तथा आधार संख्या के माध्यम से ऑनलाइन पात्रता सत्यापन पर ध्यान देना चाहिए। इसके अलावा रियल टाइम आधार पर नागरिकों को आसानी से योजना का लाभ पहुंचाने हेतु तकनीकों के एकीकरण में सुधार करना चाहिए।
- DBT 3.0 के तहत राष्ट्रीय स्तरीय सामाजिक रजिस्ट्री और केंद्रीकृत डेटाबेस बनाना चाहिए। इसमें राज्य सरकारों की सर्वोत्तम कार्य-प्रणालियों से मदद ली जा सकती है। इनमें कर्नाटक की कुटुंब एवं राजस्थान की जन आधार पहलें शामिल हैं।
- लाभार्थियों की पहचान के लिए आउटरीच कार्यक्रम: अनौपचारिक क्षेत्र में कार्य करने वाले अनेक श्रमिकों के पास पहचान-पत्र नहीं होता है। इस वजह से कई योजनाओं की लाभार्थी सूची में उनका नाम शामिल नहीं हो पाता है। ऐसे लोगों का नाम शामिल करने के लिए अभियान चलाया जाना चाहिए।
- पहुँच: स्थानीय गैर-सरकारी संगठनों और सामुदायिक संगठनों के सहयोग से ग्रामीण लोगों की डिजिटल साक्षरता बढ़ानी चाहिए। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छी तरह से प्रशिक्षित कॉमन सर्विस सेंटर्स (CSCs) और बिजनेस कॉरेस्पोंडेंट के नेटवर्क का विस्तार करके DBT सेवाओं को सुलभ बनाया जा सकता है।
- शिकायत निवारण तंत्र: सिंगल विंडो शिकायत निवारण प्रणाली स्थापित की जानी चाहिए, जो स्थानीय ग्राम पंचायत स्तर पर सुलभ हो। इससे लाभार्थी पेमेंट या नाम दर्ज कराने से जुड़ी शिकायतें आसानी से दर्ज करा सकते हैं।
- साथ ही, लाभार्थियों से योजना के उनके अनुभव के बारे में रियल टाइम आधार पर सुझाव लेकर नीति में बदलाव और व्यवस्था में सुधार करना चाहिए।
- वैश्विक प्रभाव: इस योजना के लाभों को ग्लोबल नॉर्थ और ग्लोबल साउथ, दोनों क्षेत्रों के देशों के साथ साझा करके भारत के नेतृत्व को मजबूत किया जा सकता है। इसकी वजहें निम्नलिखित हैं:
- DBT दुनिया भर में गरीबी को दूर करने और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने वाला एक बेहतर मॉडल है।
- यह डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर और नागरिक कल्याण पर वैश्विक चर्चाओं में भारत को प्रमुख स्थान दिला सकता है।