सिंधु घाटी लिपि का अर्थ समझना या उसे पढ़ना (DECIPHERING INDUS VALLEY SCRIPT) | Current Affairs | Vision IAS
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संक्षिप्त समाचार

Posted 05 Mar 2025

Updated 24 Mar 2025

19 min read

सिंधु घाटी लिपि का अर्थ समझना या उसे पढ़ना (DECIPHERING INDUS VALLEY SCRIPT)

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि को पढ़ने और उसके शब्दों का अर्थ बताने वाले को 1 मिलियन डॉलर का पुरस्कार देने की घोषणा की। 

सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि के बारे में

  • प्रसार: यह लिपि लगभग 60 उत्खनन स्थलों से प्राप्त हुई है। वर्तमान में, इस लिपि के लगभग 3500 नमूने पत्थर पर उकेरी गई मुहरों, ढले हुए टेराकोटा और फेयॉन्स से बने ताबीजों, मृदभांडों के टुकड़ों आदि के रूप में बचे हुए हैं।
  • लेखन शैली: सैंधव लिपि एक अज्ञात लेखन प्रणाली है। इसमें मिले अभिलेख आमतौर पर बहुत छोटे हैं, जिनमें औसतन पांच प्रतीक अक्षर हैं।
    • इसे आमतौर पर दाएं से बाएं लिखा गया है। लंबे लेखों में कभी-कभी बौस्ट्रोफेडॉन शैली का प्रयोग किया गया है।
      • बौस्ट्रोफेडॉन शैली में पहली पंक्ति दाएं से बाएं और अगली पंक्ति बाएं से दाएं लिखी जाती है।
  • लिपि की संरचना: इसमें आंशिक रूप से चित्रात्मक प्रतीक अक्षरों का उपयोग किया जाता था। इसमें मानव और पशु रूपांकन, विशिष्ट 'यूनिकॉर्न' प्रतीक, " नियंत्रित यथार्थवाद" दिखाने वाले कलात्मक डिजाइन आदि शामिल हैं।
  • लेखन माध्यम और विधियां: इसमें मुहरों, पट्टियों और तांबे की पट्टियों का उपयोग किया जाता था। इसके अलावा सामग्रियों में टेराकोटा, चीनी मिट्टी की वस्तुएं, शंख, हड्डी, हाथी दांत, पत्थर, धातु व कपड़े और लकड़ी जैसी समय के साथ क्षय होने वाली सामग्री शामिल थीं।
    • लिपि को नक्काशी, उत्कीर्णन, छिलाई, जड़ाई, चित्रकारी, ढलाई और उभार के माध्यम से लिखा जाता था।

सैंधव लिपि को समझने का महत्त्व

  • ऐतिहासिक: इससे सिंधु घाटी सभ्यता और बाद की वैदिक प्रथाओं के बीच संबंध तथा अन्य समकालीन सभ्यताओं के साथ उनके संबंधों को उजागर किया जा सकता है।
  • भाषाई और नृजातीय संबंध: इससे सैंधव भाषाओं और द्रविड़ व इंडो-यूरोपीय परिवारों की समकालीन भाषाओं के बीच संबंध स्थापित करने में मदद मिल सकती है।
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हड़प्पा जल प्रबंधन तकनीक (HARAPPAN WATER MANAGEMENT TECHNIQUES)

हड़प्पाई स्थल राखीगढ़ी में 5,000 साल पुरानी जल प्रबंधन तकनीक का पता चला

  • इस क्षेत्र में जारी उत्खनन के दौरान टीलों के बीच जल भंडारण क्षेत्र की खोज हुई है। इस जल भंडारण क्षेत्र की अनुमानित गहराई 3.5 से 4 फीट है, जो उस समय की उन्नत जल प्रबंधन तकनीकों को दर्शाता है।  
  • साथ ही, चौतांग (या दृशावती) नदी का सूखा हुआ भाग भी खोजा गया है।

हड़प्पा सभ्यता की जल प्रबंधन प्रणालियां

  • विस्तृत जल निकासी प्रणाली: प्रमुख शहरों में परिष्कृत ईंटों से बनी भूमिगत नालियां पाई गई हैं। घरों से जुड़ी ये नालियां सार्वजनिक नालियों तक गंदे पानी के निकास के लिए बनाई गई थीं।
  • छोटे बांध: ये गुजरात के लोथल में सिंचाई और पीने के लिए वर्षा जल को संग्रहित करने हेतु स्थानीय लोगों द्वारा बनाए गए थे।
  • गोदीबाड़ा (Dockyard): साबरमती नदी के पास लोथल में एक पंक्तिबद्ध संरचना मिली हैजिसमें जल के प्रवेश और निकास के लिए नालिकाओं (Channels) के साक्ष्य मिले हैं।
  • नालिकाएं और जलाशय: गुजरात के धोलावीरा में पत्थरों से बने जलाशय मिले हैं। इनमें वर्षा जल या पास की नदियों के पानी को संग्रहित किया जाता था।
    • यह जल संरक्षण, संग्रहण और भंडारण की उन्नत हाइड्रोलिक तकनीक का उदाहरण है।
  • तालाब और कुएं: मोहनजोदड़ो में, तालाबों में एकत्रित वर्षा जल को कुशल जल निकासी प्रणाली के माध्यम से प्रत्येक घर के कुओं तक पहुंचाया जाता था।
    • महास्नानागार "ईंट के फर्श से बना एक बड़ा हौज (Tank) था, जो संभवतः धार्मिक कार्यों के दौरान सामूहिक स्नान के लिए बनाया गया था। यह प्राचीन जल के विशाल हौज का एक उल्लेखनीय उदाहरण है।

राखीगढ़ी के बारे में

  • अवस्थिति: यह हरियाणा के हिसार जिले में घग्गर-हकरा नदी के मैदान में स्थित हड़प्पा सभ्यता के सबसे पुराने और सबसे बड़े शहरों में से एक है। 
  • मुख्य खोजें: पुरातात्विक टीले, कंकाल अवशेष, जिनसे हड़प्पा युग के एकमात्र DNA साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
    • साथ ही शिल्प कार्य क्षेत्रों, आवासीय संरचनाओं, सड़कों, जल निकासी प्रणालियों, शवाधान स्थलों आदि के साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं।
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  • हड़प्पा जल प्रबंधन तकनीक
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