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बढ़ती वैश्विक आर्थिक असमानताओं पर ऑक्सफैम की रिपोर्ट (OXFAM REPORT ON WIDENING GLOBAL ECONOMIC INEQUALITIES)

Posted 05 Mar 2025

Updated 18 Mar 2025

40 min read

सुर्खियों में क्यों?

हाल ही में, ऑक्सफैम ने "टेकर्स नॉट मेकर्स: द अनजस्ट पॉवर्टी एंड अनअर्न्ड वेल्थ ऑफ कोलोनियल इनहेरिटेंस (Takers Not Makers: The Unjust Poverty and Unearned Wealth of Colonial Inheritance)" शीर्षक से रिपोर्ट जारी की।

इस रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र 

  • वैश्विक स्तर पर अत्यधिक असमानता: वर्तमान में, विश्व की 44% आबादी प्रति दिन 6.85 डॉलर (PPP पर आधारित) से कम आय में जीवन यापन कर रही है, जो विश्व बैंक की निर्धनता रेखा के नीचे आता है। वहीं, वैश्विक संपत्ति का 45% हिस्सा विश्व के सबसे अमीर 1% लोगों के पास है।
    • अरबपति उपनिवेशवाद (Billionaire colonialism:) का युग: 2024 में, अरबपतियों की संपत्ति 2023 की तुलना में तीन गुना तेजी से बढ़ी है।
    • अधिकांश अरबपतियों की संपत्ति अनर्जित प्रकृति की हैं: अरबपतियों की 60% संपत्ति विरासत, भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार या एकाधिकार शक्ति से प्राप्त की हुई है।
  • औपनिवेशिक विरासत: अधिक-अमीर लोगों की संपत्ति का बहुत सा हिस्सा अनर्जित प्रकृति का है जो कि संभवतः उपनिवेशवाद का परिणाम है। इस चीज को एक ऐतिहासिक और आधुनिक दोनों प्रकार की परिघटना के रूप में देखा जा सकता है।  
    • ऐतिहासिक उपनिवेशवाद: यह वह काल था जब समृद्ध एवं शक्तिशाली देशों ने औपचारिक रूप से अन्य देशों पर कब्जा कर अपना वर्चस्व स्थापित किया और उन पर शासन किया। यह मुख्य रूप से द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुए राष्ट्रीय स्वतंत्रता संघर्षों के साथ समाप्त हुआ।
    • आधुनिक उपनिवेशवाद (नव-उपनिवेशवाद): मुख्य रूप से ग्लोबल नॉर्थ के समृद्ध देश अब भी ग्लोबल साउथ के देशों पर प्रभुत्व और नियंत्रण बनाए रखते हैं। जैसा कि समकालीन समय में औपनिवेशिक विरासत के रूप में परिलक्षित होता था। 
      • डिजिटल औपनिवेशिकता: डिजिटल इकोसिस्टम पर नियंत्रण रखकर, ग्लोबल नॉर्थ की बिग टेक कंपनियां कंप्यूटर-आधारित माध्यमों को नियंत्रित करती हैं। इससे ग्लोबल नॉर्थ के देश ग्लोबल साउथ के देशों के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में सीधा प्रभाव डालते है।
      • शोषणकारी कॉर्पोरेट संरचनाएं: वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर ग्लोबल नॉर्थ की बहुराष्ट्रीय कंपनियों  (MNCs) का प्रभुत्व है। साथ ही, ये कंपनियां ग्लोबल साउथ के सस्ते श्रम और संसाधनों का निरंतर दोहन करके सीधे लाभ प्राप्त करती हैं।
        • 1995 से 2015 के बीच, 2010 के मूल्यों के अनुसार ग्लोबल नॉर्थ की MNCs द्वारा ग्लोबल साउथ से 242 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का दोहन किया गया।
      • विश्व को संचालित करने वाली संस्थाओं में शक्ति का असमान वितरण: वैश्विक शासन संस्थाओं पर अनौपचारिक रूप से ग्लोबल नॉर्थ का प्रभुत्व बना हुआ है।
        • उदाहरण के लिए- वर्तमान में G7 देशों के पास अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक में कुल मतदान का 41% हिस्सा हैं, जबकि उनकी जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या का 10% से भी कम है।
  • वर्तमान असमानता पर ऐतिहासिक उपनिवेशवाद का प्रभाव:
    • शोषण और अत्यधिक आर्थिक असमानता, मनमाने औपनिवेशिक विभाजन के कारण सीमावर्ती संघर्ष आदि।
      • निम्न-आय वाले देशों को वैश्विक कर धोखाधड़ी के कारण प्रत्येक वर्ष 47 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान होता है, जो उनके सार्वजनिक स्वास्थ्य बजट के आधे यानी लगभग 49% के बराबर है। 
      • निम्न और मध्यम आय वाले देश अपने बजट का 48% ऋण पुनर्भुगतान में खर्च करते हैं, जो ज्यादातर ग्लोबल नॉर्थ धनी ऋणदाताओं को दिया जाता है।
    • सामाजिक विभाजन (जैसे कि नस्लवाद) बढ़ा है; ग्लोबल साउथ के देशों में भूमि पर कुछ प्रभावशाली वर्गों का एकाधिकार स्थापित हुआ है; ग्लोबल साउथ के देशों में स्वास्थ्य-देखभाल और स्वास्थ्य सुविधाएँ बदतर हुई हैं; निम्न-आय वाले देशों में उच्च आय वाले देशों की तुलना में शोध पर कम व्यय किया जाता है; तथा उन्हें तुलनात्मक रूप से वित्तपोषण भी कम प्राप्त होता है।
    • लैंगिक असमानता: उपनिवेशवाद ने पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं को बाधित कर दिया, जिससे महिलाओं की आर्थिक स्वायत्तता में कमी आई। 
      • नकदी फसलों के प्रचलन ने महिलाओं के कृषि योगदान को हाशिये पर ला दिया, जिससे वे अवैतनिक श्रम तक सीमित हो गईं और वैश्विक बाजार में उनकी भूमिका लगभग न के बराबर रह गयी।

भारत में आर्थिक असमानता  

  • संपत्ति में असमानता: ऑक्सफैम रिपोर्ट - सर्वाइवल ऑफ द रिचेस्ट: द इंडिया स्टोरी के अनुसार, भारत के सबसे अमीर 1% लोगों के पास कुल संपत्ति का 40% से अधिक हिस्सा है, जबकि निचले 50% लोगों के पास केवल 3% संपत्ति है।
  • आय में असमानता: 
    • ग्रामीण-शहरी विभाजन: घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, औसत मासिक प्रति व्यक्ति व्यय (Monthly Per Capita Expenditure: MPCE) ग्रामीण क्षेत्रों में 4,122 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 6,996 रुपये है।
    • लैंगिक आधार पर वेतन में अंतराल: वर्ल्ड इनइक्वलिटी रिपोर्ट 2022 के अनुसार, भारत में पुरुष श्रम आधारित कुल आय का 82% कमाते हैं, जबकि महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 18% है।
  • औपनिवेशिक काल में संपत्ति का दोहन: 1765 से 1900 के बीच, ब्रिटेन ने भारत से 64.82 ट्रिलियन डॉलर का दोहन किया, जिसमें से 33.8 ट्रिलियन डॉलर शीर्ष 10% अमीरों के पास गया।

औपनिवेशिक काल के दौरान भारत से धन का निकासी

  • दादाभाई नौरोजी ने पहली बार 1867 में अपने लेख 'इंग्लैंड्स डेब्ट टू इंडिया' में इस बात पर प्रकाश डाला कि ब्रिटेन भारत से एक-चौथाई से अधिक राजस्व का दोहन करके और उसे हड़प कर भारत को आर्थिक तौर पर कमजोर बना रहा है।
    • उन्होंने अपने तर्कों को 1873 में 'पावर्टी ऑफ इंडिया' नामक एक लेख में प्रस्तुत किया और 1901 में उन्होंने 'पावर्टी एंड अन-ब्रिटिश रूल इन इंडिया' नामक पुस्तक लिखी।
  • दादाभाई नौरोजी के "धन की निकासी" सिद्धांत के अनुसार, भारत से धन की निकासी के निम्नलिखित स्रोत थे:
    • उच्च कर: अत्यधिक भू-राजस्व के कारण ब्रिटिश शासन कृषि से बहुत अधिक आय अर्जित कर रहा था। 
    • व्यापारिक शोषण: भारत ने कच्चे माल की आपूर्ति की और ब्रिटिशों से तैयार सामान खरीदा, जिससे स्थानीय उद्योग नष्ट हो गए।
      • वर्ष 1750 में वैश्विक औद्योगिक उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 25% थी, लेकिन 1900 तक यह घटकर मात्र 2% रह गई थी। 
    • अन्य स्रोत: होम चार्ज (भारतीय राजस्व से ब्रिटिश प्रशासन का वित्त-पोषण), भारत से अर्जित लाभ को वापस ब्रिटेन भेजना, मुद्रा हेरफेर आदि।
  • बीसवीं सदी की शुरुआत में आर.सी. दत्त ने अनुमान लगाया कि भारत से लगभग प्रतिवर्ष 20 मिलियन पाउंड ब्रिटेन भेजे जाते थे।

आगे की राह (रिपोर्ट में की गई सिफारिशें)

  • राष्ट्रीय लक्ष्य: सभी देशों को आर्थिक असमानता कम करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर योजनाएं बनानी चाहिए, जिनमें स्पष्ट समय-सीमा निर्धारित हो।
    • पूर्व में औपनिवेशिक रहे देशों को विरासत में मिली उन संस्थाओं को सुधारने या हटाने के लिए काम करना चाहिए जो औपनिवेशिक काल की हैं और असमानता को बढ़ावा देते हैं।
  • वैश्विक शासन में सुधार: विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) जैसी संस्थाओं में मतदान करने की शक्तियों में बदलाव लाना चाहिए, जिससे ग्लोबल साउथ देशों को उन नीतियों का निर्माण करने की शक्ति प्राप्त हो जो सीधे उन्हें प्रभावित करती हों।
    • IMF और विश्व बैंक को ऋण और अनुदान जारी करते समय राजकोषीय समेकन, या विनियमन पर आधारित आर्थिक शर्तों को लागू करने से बचना चाहिए।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की वीटो पावर को समाप्त करना और इसकी सदस्यता का पुनर्गठन करना: ग्लोबल साउथ के देशों को स्थायी सदस्यता देने से समानता को बढ़ावा मिल सकता है।
  • अधिक-अमीर लोगों पर कराधान: सरकारों को अधिक-समृद्ध व्यक्तियों की आय और संपत्ति पर कर लगाने के लिए सुधार लागू करने की आवश्यकता है।
    • कर परिहार और कर अपवंचन को रोकना और टैक्स हेवन्स (Tax Havens) को समाप्त करने की आवश्यकता है जो अभिजात वर्ग एवं बड़ी कंपनियों को कर चोरी की सुविधा प्रदान करते हैं।
  • एकाधिकार को समाप्त करना: निजी एकाधिकार को खत्म करने और कॉरपोरेट कंपनियों पर विनियमन की आवश्यकता है ताकि वे कर्मचारियों को न्यूनतम जीवन निर्वाह योग्य वेतन दें और जलवायु व लैंगिक न्याय के प्रति प्रतिबद्ध हों।
    • व्यापार और पेटेंट नियमों में सुधार करके ज्ञान का लोकतंत्रीकरण (ज्ञान पर एकाधिकार को समाप्त करना) करना चाहिए। इससे बड़ी फार्मा कंपनियों द्वारा किए जाने वाले शोषण को रोका जा सकता है, जिससे असमानता को कम करने में मदद मिलेगी।
  • ग्लोबल साउथ-साउथ सहयोग को बढ़ावा देना: ग्लोबल साउथ के देशों को ज्ञान, प्रौद्योगिकी और संसाधनों को साझा करके सामूहिक विकास को बढ़ावा देना चाहिए।
    • ग्लोबल साउथ संस्थानों को मजबूत करना चाहिए, ताकि ये देश असमानता को कम करने वाली नीतियों को लागू करने में अधिक सक्रिय भूमिका निभा सके।
  • पूर्व औपनिवेशिक शक्तियों द्वारा क्षतिपूर्ति का भुगतान करना चाहिए और असंधारणीय ऋण को माफ़ करने में सहायता करनी चाहिए। साथ ही, वैश्विक अर्थव्यवस्था पर ग्लोबल नॉर्थ के वर्चस्व को समाप्त करने के लिए सक्रिय रूप से कार्य करना चाहिए
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  • ऑक्सफैम
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