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बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 (THE BANKING LAWS (AMENDMENT) BILL, 2024)

04 Feb 2025
35 min

सुर्ख़ियों में क्यों?  

हाल ही में, लोक सभा में बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 पारित हुआ। इस विधेयक का उद्देश्य भारत की बैंकिंग प्रणाली के गवर्नेंस मानकों में सुधार करना है। 

अन्य संबंधित तथ्य

  • इस विधेयक में भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934; बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949; भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम, 1955; और बैंकिंग कंपनियां (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम {Banking Companies (Acquisition and Transfer of Undertakings) Act}, 1970 और 1980 में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है। 
  • विधेयक के मुख्य प्रावधानों पर एक नज़र
    • नकद आरक्षित के लिए पखवाड़े की परिभाषा (Definition of fortnight for cash reserves): नकद आरक्षित (कैश रिज़र्व) के लिए पखवाड़े को प्रत्येक महीने की 1 से 15 तारीख या 16 तारीख से महीने के अंत की तारीख के रूप में पुनर्परिभाषित किया गया है। यह प्रावधान अनुसूचित और गैर-अनुसूचित बैंकों पर लागू है।
    • कंपनी में पर्याप्त लाभकारी हित (हिस्सेदारी): किसी कंपनी में पर्याप्त लाभकारी हित की सीमा को 5 लाख रुपये (या कंपनी की पेड-अप कैपिटल का 10%, जो भी कम हो) से बढ़ाकर 2 करोड़ रुपये किया गया है। बाद में दूसरी अधिसूचना जारी करके इसमें संशोधन किया जा सकता है। 
    • निवेशक शिक्षा और संरक्षण कोष (Investor Education and Protection Fund: IEPF): दावा न किए गए (अनक्लेम्ड) लाभांश, शेयर, या बॉण्ड को भुनाने से प्राप्त ब्याज को IEPF में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव किया गया है। हालांकि, यह प्रावधान केवल तब लागू होगा जब इन्हें लगातार सात वर्षों तक क्लेम नहीं किया जाता। 
    • लेखा परीक्षकों का पारिश्रमिक: बैंकों को लेखा परीक्षकों के पारिश्रमिक का फैसला करने का अधिकार दिया गया है। पहले बैंकों को RBI-केंद्र सरकार से परामर्श लेना पड़ता था।

भारत में बैंकिंग प्रणाली के संचालन से जुड़ी समस्याएं

  • बैंकिंग लेन-देन धोखाधड़ी में वृद्धि: RBI की "भारत में बैंकिंग के रुझान और प्रगति रिपोर्ट" के अनुसार, 2023-24 में धोखाधड़ी के 18,461 मामले दर्ज किए गए जिनमें 21,367 करोड़ रुपये की राशि शामिल थी।  
    • बैंकिंग धोखाधड़ी से बैंकों की प्रतिष्ठा कम होती है, उनका परिचालन और व्यवसाय प्रभावित होता है, ग्राहकों का विश्वास कम होता है तथा वित्तीय स्थिरता से संबंधित चिंताएं भी पैदा होती हैं। उदाहरण के लिए- PNB घोटाला (2018)।
  • सार्वजनिक क्षेत्रक के बैंकों (PSBs) का संचालन और स्वायत्तता: बैंक बोर्ड की नियुक्तियों और परिचालन मामलों में सरकारी हस्तक्षेप जैसी वजहों से PSB की स्वायत्तता कम होती है और निर्णय लेने में देरी होती है। इन सब वजहों से इन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
    • साथ ही, PSBs पर RBI और केंद्रीय वित्त मंत्रालय के बैंकिंग प्रभाग, दोनों का नियंत्रण है। इससे दोहरे विनियमन की समस्या भी उत्पन्न होती है।
    • इसके अलावा, PSBs में सरकार की बहुसंख्यक हिस्सेदारी के कारण बैंक जोखिम लेने से बचते हैं। साथ ही, 5C (CAG, CBI, CVC, CIC और कोर्ट) के डर के कारण निर्णय लेने में भी देरी होती है।
  • विनियामक से जुड़ी समस्या और अस्पष्टता: RBI, भारतीय प्रतिभूति और विनियम बोर्ड (SEBI), भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI), भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) जैसी कई विनियामक संस्थाओं के विनियमन से अधिकारक्षेत्र के मामले में भ्रम और अस्पष्टता पैदा होती है।
    • इसके अलावा, सहकारी बैंकिंग क्षेत्र पर RBI और राज्य सहकारी समिति रजिस्ट्रार के दोहरे नियंत्रण से भी विनियमन में समस्या उत्पन्न होती है।
      • 2023 में 17 सहकारी बैंकों को बंद करना पड़ा और RBI ने रिकॉर्ड संख्या में सहकारी बैंकों के लाइसेंस रद्द किए।
  • संरचनात्मक परिवर्तन: अब लोग हाउसहोल्ड बचत को बैंकों में जमा करने की बजाय म्यूचुअल फंड, बीमा और पेंशन में निवेश करने लगे हैं। इससे बैंकों की जमा वृद्धि की तुलना में ऋण वितरण में तेज वृद्धि देखी जा रही है। तरलता में यह संरचनात्मक परिवर्तन समस्या उत्पन्न कर रहा है।
    • ऋण वितरण में राजनीतिक हस्तक्षेप, ऋण माफी योजनाएं बैंकों द्वारा ऋण देने की पद्धति और बैलेंस शीट को बिगाड़ रही हैं, आदि।
  • साइबर सुरक्षा और आईटी जोखिम: बैंकों और वित्तीय संस्थानों पर बढ़ते साइबर अटैक ने आईटी प्रशासन में सुधार और चाक-चौबंद व्यवस्था करना अनिवार्य कर दिया है।
    • डिजिटल धोखाधड़ी: सोशल इंजीनियरिंग अटैक में वृद्धि हुई है और म्यूल अकाउंट का दुरुपयोग किया जा रहा है।
      • म्यूल अकाउंट ऐसे बैंक अकाउंट होते हैं जिनका इस्तेमाल जालसाज अपराध से प्राप्त धन को वैध बनाने या छिपाने के लिए करते हैं। मुख्य रूप से म्यूल अकाउंट का उपयोग मनी लॉन्ड्रिंग के लिए किया जाता है। जालसाज इन खातों का उपयोग अपराध से प्राप्त धन को विभिन्न खातों में स्थानांतरित करने के लिए करते हैं, जिससे पैसे के स्रोत का पता लगाना मुश्किल हो जाता है।

भारत में बैंकिंग गवर्नेंस में सुधार के लिए हाल में उठाए गए कदम

केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कदम 

RBI द्वारा उठाए गए कदम

  • PSB में सुधार: 
    • व्यवसाय विस्तार तथा परिचालन दक्षता और जोखिम प्रबंधन में सुधार के लिए सार्वजनिक क्षेत्रक के कई बैंकों का विलय किया गया। 
      • 2019 में 10 PSBs का विलय करके 4 बैंक बनाए गए। 
    • इसके अलावा, बेसल III मानदंडों को पूरा करने के लिए PSBs का पुनर्पूंजीकरण किया गया, आदि।
  • विधायी सुधार: 
    • बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 में संशोधन करके गवर्नेंस में विफलता की स्थिति में RBI को बैंकों के बोर्ड का दायित्व अपने ऊपर लेने का अधिकार दिया गया है। 
    • नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (NPA) की समस्या के समाधान को कारगर बनाने के लिए दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) को लागू किया गया है, आदि। 
  • बैंकों पर तनाव कम करना: 
    • 2021 में राष्ट्रीय परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी लिमिटेड (National Asset Reconstruction Company Ltd.: NARCL) और भारत ऋण समाधान कंपनी लिमिटेड (India Debt Resolution Company Ltd.: IDRCL) का गठन किया गया।
  • जोखिम प्रबंधन पर मजबूत फ्रेमवर्क: जोखिम आधारित पर्यवेक्षण, परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा, त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई फ्रेमवर्क (Prompt Corrective Action Framework)NPAs के समयबद्ध समाधान के लिए "तनावग्रस्त परिसंपत्तियों के समाधान के लिए प्रुडेंशियल फ्रेमवर्क (2019)" जैसे उपाय किए गए हैं। 
  • सहकारी बैंकों के लिए विनियामकीय सुधार: 
    • बैंकिंग विनियमन (संशोधन) अधिनियम, 2020 के तहत सहकारी बैंकों पर RBI का विनियामकीय नियंत्रण बढ़ाया गया है। 
    • शहरी सहकारी समितियों के लिए अम्ब्रेला संगठन हेतु विनियामकीय मंजूरी का प्रावधान किया गया है, आदि।

 

 

आगे की राह

  • PSBs को स्वायत्तता देना: भारत सरकार कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत एक बैंक निवेश कंपनी स्थापित कर सकती है, जो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकारी हिस्सेदारी के प्रबंधन के लिए एक होल्डिंग कंपनी के रूप में कार्य करेगी (पी.जे. नायक समिति)।
  • प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन: बैंक के अधिकारियों के वेतन को बैंक के लाभ से जोड़ना चाहिए; मार्केटिंग, ग्राहक की संख्या बढ़ाने और परिचालन दक्षता पर केंद्रित आउटकम-आधारित अप्रोच को बढ़ावा देना चाहिए (पी.जे. नायक समिति)।  
  • पारदर्शिता और जवाबदेही: RBI और अन्य हितधारकों के पास प्रमुख वित्तीय मीट्रिक की रियल टाइम आधार पर रिपोर्टिंग के माध्यम से निर्णय लेने और वित्तीय डिस्क्लोजर में पारदर्शिता बढ़ानी चाहिए।  
    • एक सशक्त व्हिसलब्लोअर तंत्र स्थापित किया जा सकता है, जिससे कर्मचारियों और हितधारकों को किसी भी संदिग्ध गतिविधि या संभावित मिलीभगत की बिना डरे रिपोर्ट करने की सुविधा मिले (नरसिंहम समिति-II)। 
  • विनियामक संस्थाओं के बीच समन्वय: बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्रक के समग्र और प्रभावी विनियमन के लिए RBI, SEBI, IRDAI आदि के बीच सहयोग को बढ़ावा देकर विनियामकीय समन्वय को सरल एवं सुव्यवस्थित बनाना चाहिए (नरसिंहम समिति-II)। 
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