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प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FOREIGN DIRECT INVESTMENT: FDI)

04 Feb 2025
48 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade: DPIIT) के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल, 2000 से सितंबर, 2024 की अवधि में भारत में कुल FDI 1 ट्रिलियन डॉलर को पार कर गया (1,033.40 बिलियन डॉलर)।

अन्य संबंधित तथ्य

  • केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अनुसार, 2014-24 के दशक में उसके पहले के दशक (2004-14) की तुलना में भारत में FDI में 119% की वृद्धि दर्ज की गई।
  • 2000-01 से 2023-24 तक भारत में FDI में लगभग 20 गुना वृद्धि दर्ज की गई है।
  • 2000-2024 के दौरान, भारत के सेवा क्षेत्रक ने सबसे अधिक FDI (115.18 बिलियन डॉलर) आकर्षित किया। 

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) क्या है?

  • FDI एक प्रकार का निवेश है जो भारत के बाहर के निवासियों द्वारा किया जाता है। यह दो तरीकों से किया जा सकता है:
    • किसी गैर-सूचीबद्ध भारतीय कंपनी में पूंजीगत साधनों के माध्यम से निवेश; या
  • IPO जारी होने के बाद किसी सूचीबद्ध भारतीय कंपनी की पूर्णतया डाइल्यूटेड पेड-अप इक्विटी कैपिटल के 10% या उससे अधिक में निवेश। 
    • जब कोई कंपनी अतिरिक्त शेयर जारी करके अपनी हिस्सेदारी को कम करती है, तो उस स्थिति में शेयर बेचकर जुटाई गई पूंजी को पोस्ट-डाइल्यूटेड पेड-अप कैपिटल कहा जाता है।
  • FDI आमतौर पर दीर्घकालिक निवेश होता है और इसे निवेश ऋण नहीं माना जाता है।
  • भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के तरीके: 
    • स्वचालित मार्ग (Automatic Route): स्वचालित मार्ग के तहत, किसी विदेशी निवेशक को अपने निवेश के बाद केवल भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को सूचित करना होता है।
    • सरकारी अनुमोदन मार्ग (Government Approval Route): सरकारी अनुमोदन मार्ग के तहत, किसी विदेशी निवेशक को संबंधित मंत्रालय या विभाग से पूर्व अनुमति लेनी होती है।
  • विनियमन: 
    • वर्तमान में, भारत में FDI को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति, 2020 और विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (गैर-ऋण साधन) नियम, 2019 द्वारा प्रशासित किया जाता है।
    • उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग, भारत में FDI की प्राथमिक विनियामक संस्था है।
    • भारतीय रिजर्व बैंक भी FDI के मामले में एक अन्य प्रमुख विनियामक संस्था है। इसके पास FDI नियमों को लागू करने का अधिकार है।

FDI बनाम FPI

मानदंड

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment: FDI)

विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (Foreign Portfolio Investment: FPI)

निवेश का स्वरूप

यह किसी विदेशी इकाई द्वारा किसी अन्य देश के व्यावसायिक उद्यम में दीर्घकालिक निवेश है। 

यह किसी अन्य देश की वित्तीय परिसंपत्तियों (जैसे- शेयर, बॉण्ड) में अल्पकालिक लाभ के उद्देश्य से किया गया निवेश है। 

निवेश का प्रकार

इसमें वित्तीय और गैर-वित्तीय परिसंपत्तियों में निवेश शामिल है, जैसे- संसाधन, प्रौद्योगिकी और प्रतिभूति में निवेश।

इसमें शेयर/ स्टॉक, बॉण्ड जैसी वित्तीय परिसंपत्तियों में निवेश को प्राथमिकता दी जाती है। 

स्थिरता/ अस्थिरता

लंबी अवधि के उद्देश्य से निवेश करने की वजह से स्थिरता बनी रहती है और निवेश में उतार-चढ़ाव कम देखा जाता है। 

 

यह निवेश अत्यधिक अस्थिर होता है क्योंकि निवेशक किसी तात्कालिक घटना से प्रभावित होकर अपना निवेश निकालकर वापस चले जाते हैं।

निवेशक का नियंत्रण

अधिक नियंत्रण, क्योंकि वे कंपनी के निर्णयों को प्रभावित कर सकते हैं। 

कंपनियों में इनका कम नियंत्रण होता है। ये पैसिव निवेशक माने जाते हैं, क्योंकि इनका उद्देश्य कम अवधि में लाभ कमाना होता है। 

तरलता (लिक्विडिटी)

यह कम तरलता वाला होता है, क्योंकि लंबी अवधि के लिए निवेश किया जाता है। निवेशक आसानी से परिसंपत्तियों की खरीद-बिक्री नहीं कर पाते हैं। 

अत्यधिक तरल, क्योंकि निवेशक आसानी से परिसंपत्तियां खरीद या बेच सकते हैं।

 

भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) से संबंधित चुनौतियां

  • जटिल विनियमन और नीतिगत अनिश्चितता: कर कानूनों, ट्रांसफर प्राइसिंग जैसे जटिल नियमों के कारण विदेशी निवेशकों को इनके पालन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इससे कानूनी विवाद, वित्तीय नुकसान और कंपनियों द्वारा खामियों का लाभ उठाने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
    • उदाहरण के लिए- वोडाफोन पर प्रत्यक्ष कर को पूर्वव्यापी प्रभाव (Retrospective) से लागू करने के कारण कानूनी विवाद उत्पन्न हुआ था।
  • संस्थागत कमियां: भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (Competition Commission of India: CCI) प्रतिस्पर्धा-रोधी गतिविधियों को पूर्णतः रोकने और प्रभुत्वशाली कंपनियों द्वारा किए जाने वाले दुरुपयोग को प्रभावी रूप से नियंत्रित करने में असफल रहा है। इससे भारत के आर्थिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
    • उदाहरण के लिए- फ्लिपकार्ट विवाद के कारण भारत को अमेरिका के जेनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रिफ्रेंसेज (GSP) के तहत मिलने वाले वरीयता लाभ से वंचित होना पड़ा।
  • कुछ राज्यों और क्षेत्रकों को अधिक FDI प्राप्त होना: भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मुख्य रूप से कुछ ही क्षेत्रकों (जैसे- सेवा) और कुछ चुनिंदा राज्यों (जैसे- महाराष्ट्र, कर्नाटक) के शहरी क्षेत्रों तक सीमित रहा है। इससे विकास की संभावनाओं में असमानता पैदा हो रही है।
  • विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे की कमी विदेशी निवेश को आकर्षित करने में बाधा बनती है।
  • स्थानीय व्यवसायों पर प्रभाव: विदेशी कंपनियों के व्यापक व्यवसाय और उनकी भारी क्रय शक्ति के कारण स्थानीय व्यवसायों को प्रतिस्पर्धा में कठिनाई होती है।
    • उदाहरण- भारत में वॉलमार्ट के प्रवेश का विरोध इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि इससे स्थानीय व्यवसायों को प्रतिस्पर्धा में बने रहना मुश्किल हो सकता है।
  • श्रम बाजार पर प्रभाव: विदेशी निवेश और कंपनियों की मौजूदगी से श्रम बाजार में नौकरी की सुरक्षा, कार्य दशा और स्थानीय श्रमिकों के विस्थापन जैसे मुद्दों को लेकर चिंताएं पैदा होती हैं।
    • उदाहरण- भारत में अमेजन और उबर को बदतर कार्य-दशा के कारण कानूनी कार्यवाही एवं आलोचना का सामना करना पड़ा है। 

FDI के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष उत्पन्न चुनौतियां

  • विदेशी पूंजी पर निर्भरता बढ़ना: विदेशी निवेश पर अधिक निर्भर रहने से अर्थव्यवस्था में अस्थिरता और अनिश्चितता पैदा हो सकती है, जिससे आर्थिक विस्तार की योजनाएं भी प्रभावित हो सकती हैं।
    • उदाहरण के लिए- वैश्विक मंदी की आशंकाएं, कुछ क्षेत्रकों में संरक्षणवादी उपाय करना और रूस-यूक्रेन युद्ध से जुड़ी आर्थिक मंदी 2023 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में गिरावट के कुछ कारण थे।
    • आर्थिक मंदी निवेशकों के विश्वास को कम करती है और पूंजी के बाहर जाने का कारण बनती है। इससे देशों को मुद्रा अस्थिरता और भुगतान संतुलन पर दबाव का सामना करना पड़ता है।
  • विकास बनाम पर्यावरण: किसी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रस्ताव का प्रबंधन सही तरीके से नहीं होने से यह पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। इससे आस-पास के पारिस्थितिकी तंत्र और समुदायों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
    • उदाहरण के लिए- नियमगिरि पहाड़ियों में यूनाइटेड किंगडम की वेदांता रिसोर्सेज की खनन गतिविधियों को पारिस्थितिकी कार्यकर्ताओं के विरोध का सामना करना पड़ा।
  • बौद्धिक संपदा से संबंधित चिंताएं: प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और बौद्धिक संपदा हस्तांतरण में कोई भी समस्या वास्तव में अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों द्वारा लाई गई विशेषज्ञता का उचित उपयोग करने से रोक सकती है।
    • उदाहरण के लिए- फार्मास्युटिकल क्षेत्रक में बायो पाइरेसी।

 

 

भारत में FDI को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए कदम

  • योजनाएं: मेक इन इंडिया (MII), स्टार्ट-अप इंडिया, पी.एम. गति शक्ति, राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा कार्यक्रम, उत्पादन-से-संबद्ध प्रोत्साहन (Production Linked Incentive: PLI) योजना जैसी योजनाओं ने आत्मनिर्भर भारत के अनुरूप भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया है।
  • व्यवसाय में सुगमता (Ease of Doing Business: EoDB) को बढ़ावा देना: नियमों के पालन बोझ को कम करना, भारत औद्योगिक भूमि बैंक की स्थापना, परियोजना निगरानी समूह का गठन, FDI नीति का उदारीकरण ऐसी पहलें हैं जो गवर्नमेंट टू बिजनेस (G2B) और नागरिक इंटरफेस को सरल, तर्कसंगत, डिजिटल एवं गैर-आपराधिक बनाती हैं।
    • उदाहरण के लिए- जन ​​विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) अधिनियम, 2023 लागू करके लगभग 42,000 से अधिक नियम-कानून के पालन को कम किया गया और इनके 3,800 से अधिक प्रावधानों को गैर-आपराधिक प्रकृति का बना दिया गया।
  • परियोजना विकास प्रकोष्ठ (Project Development Cells: PDCs): इसे निवेश को तेजी से बढ़ाने के लिए सभी संबंधित मंत्रालयों/ विभागों में एक संस्थागत तंत्र के रूप में स्थापित किया गया है। 
  • तकनीकी उपाय: FDI प्रस्तावों की मंजूरी प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए नेशनल सिंगल विंडो सिस्टम (NSWS) और FDI को सुविधाजनक बनाने के लिए ऑनलाइन सिंगल पॉइंट इंटरफेस के रूप में विदेशी निवेश सुविधा पोर्टल (Foreign Investment Facilitation Portal: FIFP) लॉन्च किया गया है। 
  • राज्य निवेश शिखर सम्मेलन: गुजरात, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने वैश्विक निवेश शिखर सम्मेलन आयोजित कर अपनी आर्थिक क्षमता का प्रदर्शन कर FDI आकर्षित किया है।
    • उदाहरण के लिए- वाइब्रेंट गुजरात वैश्विक शिखर सम्मेलन से गुजरात को 55 बिलियन अमेरिकी डॉलर (2002-22) की FDI आकर्षित करने में मदद मिली है।

आगे की राह

  • बुनियादी ढांचा और कौशल बढ़ाना: मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी, मजबूत बुनियादी ढांचे (जैसे, हाई-स्पीड रेल, एक्सप्रेसवे) और नवीकरणीय ऊर्जा, सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रिक व्हीकल जैसे उभरते क्षेत्रकों में कार्यबल को कौशल प्रदान करके प्रतिस्पर्धा को मजबूत करना चाहिए ताकि FDI को आकर्षित किया जा सके।
  • संतुलित FDI अंतर्वाह के लिए नीतिगत सुधार: बाबा कल्याणी समिति की सिफारिशों के अनुसार विनिर्माण और सेवा क्षेत्रक के विशेष आर्थिक क्षेत्रों (Special Economic Zones: SEZs) के लिए अलग-अलग नियम और प्रक्रियाएं बनानी चाहिए, ताकि विनिर्माण क्षेत्रक में भी FDI को आकर्षित करने पर पर्याप्त जोर दिया जा सके। 
  • विवाद समाधान और अनुबंध को लागू करना: पर्याप्त संख्या में मध्यस्थता और वाणिज्यिक अदालतों की स्थापना करके विवाद समाधान को बढ़ावा देना चाहिए।
    • अनुबंधों को प्रभावी तरीके से लागू करने से विदेशी निवेशक, कानून या नियमों के बारे में आश्वस्त रहेंगे।
  • टियर-II और टियर-III शहरों को बढ़ावा देना: छोटे शहरों में FDI को प्रोत्साहित करना चाहिए और क्षेत्रक-विशेष में निवेश आकर्षित करने के लिए क्लस्टर-आधारित विकास (बल्क ड्रग पार्क, मेगा फूड पार्क, आदि) को अपनाना चाहिए।
  • द्विपक्षीय निवेश संधियां (Bilateral Investment Treaties: BITs): द्विपक्षीय निवेश संधियों को मजबूत और अपडेट करने से विदेशी निवेश के लिए नियम और शर्तें स्थापित हो सकती हैं तथा निवेशकों का विश्वास बढ़ सकता है।
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