डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स (DIGITAL CONTENT CREATORS: DCC) | Current Affairs | Vision IAS
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डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स (DIGITAL CONTENT CREATORS: DCC)

Posted 04 Feb 2025

Updated 10 Feb 2025

41 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

यूनेस्को के "बिहाइंड द स्क्रीन" सर्वेक्षण ने डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स (DCC) के बढ़ते प्रभाव को रेखांकित किया है। साथ ही, इस सर्वेक्षण में कंटेंट क्रिएटर्स की विश्वसनीयता पर सवाल भी उठाए हैं।

डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स (DCC) के बारे में

  • वे ऐसे व्यक्ति होते हैं जो यूट्यूब, इंस्टाग्राम, TikTok जैसे प्लेटफॉर्म्स पर टेक्स्ट, वीडियो, इमेज, पॉडकास्ट, इंटरैक्टिव मीडिया जैसे डिजिटल कंटेंट का निर्माण और उन्हें साझा करते हैं।
  • डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स व्यापक क्रिएटर इकोनॉमी (या ऑरेंज इकोनॉमी) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिसमें सांस्कृतिक और क्रिएटिव इंडस्ट्री शामिल हैं। ये सांस्कृतिक या कलात्मक जड़ से जुड़े गुड्स, सेवाओं और कंटेंट का निर्माण करते हैं।
    • संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास (UNCTAD) की रिपोर्ट "क्रिएटिव इकोनॉमी आउटलुक 2024" के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर, क्रिएटिव इकॉनमी हर साल 2 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का वार्षिक राजस्व और दुनिया भर में लगभग 50 मिलियन रोजगार के अवसर उत्पन्न करती है।
    • भारत में क्रिएटिव इंडस्ट्री लगभग 30 बिलियन डॉलर मूल्य का है और यह भारत के 8% कार्यबल को रोजगार दिए हुआ है।

डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स द्वारा उत्पन्न जोखिम एवं प्रभाव

  • सामाजिक एवं नैतिक जोखिम:
    • दुष्प्रचार और फेक न्यूज का प्रसार: डिजिटल कंटेंट बनाना आसान है और यह तेजी से दुष्प्रचार का माध्यम भी है। यह लोगों की राय को प्रभावित कर सकता है, उन्हें भड़का सकता है और किसी व्यक्ति या विषय के बारे में लोगों के भरोसे को खत्म कर सकता है। 
      • उदाहरण के लिए, 62% डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स जानकारी साझा करने से पहले तथ्यों का सही से और सावधानीपूर्वक जांच नहीं करते हैं (बिहाइंड द स्क्रीन रिपोर्ट)।
    • निजता का उल्लंघन: कंटेंट क्रिएटर्स अक्सर लोगों की व्यक्तिगत जानकारी को साझा करते हैं। वे या तो अपने कंटेंट से लोगों को जोड़ने के लिए जानबूझकर ऐसा करते हैं या जागरूकता की कमी के कारण ऐसा करते हैं। इससे निजता का उल्लंघन हो सकता है।
      • उदाहरण के लिए, कैम्ब्रिज एनालिटिका स्कैंडल (2018) मामले से पता चलता है, कि फेसबुक ने लाखों यूजर्स के डेटा को एकत्रित किया था, जिसमें कंटेंट क्रिएटर्स का डेटा भी शामिल था। इस डेटा का उपयोग राजनीतिक विज्ञापनों को लक्षित करने और चुनावों को प्रभावित करने के लिए किया गया।
    • एल्गोरिद्मिक एम्पलीफिकेशन: सोशल मीडिया एल्गोरिदम अक्सर सटीक जानकारी देने की बजाय अधिक लोगों से जुड़ने को प्राथमिकता देते हैं, जिससे एक इको चैंबर का निर्माण होता है। इसमें दुष्प्रचार को बढ़ावा दिया जाता है और भ्रामक धारणाओं को बल प्रदान किया जाता है।
      • जब क्रिएटर्स लोकप्रियता को प्राथमिकता देते हैं तो इससे कंटेंट क्रिएटर्स को सत्यापित जानकारी की बजाय सनसनीखेज कंटेंट बनाने के लिए प्रोत्साहन मिलता है।
        • 41.6% क्रिएटर्स वास्तव में अपने पोस्ट पर लाइक्स और व्यूज को कंटेंट की विश्वसनीयता का मापदंड मानते हैं। 
    • प्रशिक्षण और साक्षरता की कमी: डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स को अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों के बारे में पूरी जानकारी नहीं होती है। साथ ही, वे अपने कंटेंट से संबंधित कानूनी प्रावधान (जैसे कि पेटेंट, कॉपीराइट कानून आदि) से भी अनभिज्ञ होते हैं।
    • अन्य मुद्दे: अवास्तविक मानकों को बढ़ावा देना; स्पॉन्सर्ड कंटेंट में पारदर्शिता की कमी; ऑनलाइन उत्पीड़न; आदि।
  • विनियामकीय चुनौतियां:
    • एकीकृत विनियामक व्यवस्था का अभाव: हालांकि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 डिजिटल कंटेंट को नियंत्रित करने वाले कानून हैं, फिर भी इनके लिए ऐसा कोई एकीकृत फ्रेमवर्क मौजूद नहीं है जो विशेष रूप से क्रिएटर इकोनॉमी की चुनौतियों का समाधान कर सके।
    • विनियामक संस्थाओं के बीच अधिकार क्षेत्र को लेकर विवाद: इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, उपभोक्ता मामले विभाग और भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (TRAI) जैसी अलग-अलग एजेंसियां डिजिटल कंटेंट को विनियमित करती हैं।
  • आर्थिक जोखिम:
    • पारंपरिक मीडिया को घाटा: न्यूज़ देखने/ पढ़ने वाले वर्ग अब पारंपरिक मीडिया (प्रिंट, टीवी) की बजाय डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर अधिक समय व्यतीत कर रहे हैं। इससे पारंपरिक मीडिया को वित्तीय नुकसान पहुंचा है।
      • ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पत्रकारिता पर उचित प्रशिक्षण, संपादकीय जाँच-पड़ताल या समाचार सत्यापन जैसे मानकों में निवेश किए बिना पारंपरिक मीडिया कंटेंट का लाभ उठाते हैं। इससे पारंपरिक मीडिया को नुकसान उठाना पड़ता है।

डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स से उत्पन्न जोखिमों को कम करने के तरीके

  • दुष्प्रचार से निपटने के लिए मीडिया साक्षरता कार्यक्रमों और फैक्ट-चेक जैसी पहलों को बढ़ावा देना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए, गूगल न्यूज़ इनिशिएटिव (GNI): गूगल ने दुनिया भर के फैक्ट-चेकिंग संगठनों के साथ साझेदारी करके पत्रकारों और कंटेंट क्रिएटर्स को जानकारी एवं तथ्यों को सत्यापित करने के लिए प्रशिक्षण और टूल प्रदान प्रदान किया है।
  • डेटा संरक्षण कानून को लागू करना चाहिए और निजता का सम्मान करने के लिए कंटेंट क्रिएटर्स को प्रशिक्षित करना चाहिए।
    • उदाहरण, जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (GDPR): यूरोपीय संघ में GDPR के जरिए सख्त डेटा संरक्षण नियम लागू किया गया है, जिसके तहत डिजिटल प्लेटफॉर्म और क्रिएटर्स को यूजर्स डेटा को जिम्मेदारीपूर्वक संभालने की आवश्यकता होती है।
    • उदाहरण; भारत का डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023: इसका उद्देश्य यूजर्स की निजता की सुरक्षा करना और डेटा उल्लंघन के लिए प्लेटफ़ॉर्म को जवाबदेह ठहराना है।
  • उचित राजस्व-साझाकरण मॉडल स्थापित करना और पारंपरिक मीडिया को समर्थन प्रदान करना चाहिए।
    • उदाहरण; ऑस्ट्रेलिया का न्यूज़ मीडिया बार्गेनिंग कोड: यह  गूगल, फेसबुक जैसी बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों के लिए अनिवार्य करता है कि वह पारंपरिक मीडिया के कंटेंट के उपयोग के लिए समाचार प्रकाशकों को भुगतान करे।
  • डिजिटल कंटेंट क्रिएटर के 'वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार' तथा 'प्रतिबंधों के माध्यम से कंटेंट को विनियमित करने के राज्य के अधिकार' के बीच विधायी संतुलन सुनिश्चित करना चाहिए।
    • उदाहरण; प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक, 2024 को पर्याप्त समर्थन नहीं मिलने के कारण वापस ले लिया गया, और सुझावों के बाद फिर से तैयार किया गया।
  • विज्ञापन विनियमों को लागू करना चाहिए और स्पष्ट तरीके से डिस्क्लोजर जारी करने को बढ़ावा देना चाहिए।
    • उदाहरण; भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (Advertising Standards Council of India: ASCI) ने प्रमोशनल पोस्ट में साफ शब्दों में #ad या #sponsored जैसे डिस्क्लेमर का उपयोग नहीं करने के लिए सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स से जवाब-तलब किया।
  • जनता का विश्वास फिर से बहाल करने के लिए एथिकल कंटेंट क्रिएशन और पारदर्शिता को बढ़ावा देना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए, यूनेस्को का मीडिया और सूचना साक्षरता (Media and Information Literacy: MIL) कार्यक्रम: यूनेस्को ने कंटेंट क्रिएटर्स और जनता को मीडिया साक्षरता और आलोचनात्मक सोच पर शिक्षित करने के लिए कई पहलों की शुरुआत की है।
    • उदाहरण: भारत का सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थानों के लिये दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 (बॉक्स देखें)।

सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्‍थानों के लिए दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021

  • यह डिजिटल मध्यवर्तियों, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, ऑनलाइन गेमिंग मध्यवर्तियों और डिजिटल मीडिया प्रकाशकों के गवर्नेंस के लिए विनियमों का एक व्यापक सेट है।
  • इन्हें डिजिटल मीडिया में पारदर्शिता, जवाबदेही और यूजर्स के अधिकारों के बारे में चिंताओं को दूर करने के लिए लागू किया गया है।
  • नियमों के मुख्य पहलू:
    • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को अपने यूजर्स को यह सूचित करना होगा कि वे गैर-कानूनी कंटेंट को होस्ट या साझा न करें, जिनमें अपमानजनक, अश्लील या बच्चों के लिए हानिकारक कंटेंट शामिल हों।
    • उन्हें यूजर्स की शिकायतों के समाधान करने के लिए एक शिकायत निवारण अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी तथा शिकायत दर्ज होने के 15 दिनों के भीतर (कुछ शिकायतों के मामले में 72 घंटे) समाधान करना होगा।
    • समाचार एवं करेंट अफेयर्स:
      • प्रकाशकों को केबल टेलीविजन नेटवर्क विनियमन अधिनियम, 1995 के अंतर्गत पत्रकारिता आचरण के मानदंडों और कार्यक्रम संहिता का पालन करना होगा।
      • इसके अलावा, कानून द्वारा प्रतिबंधित कंटेंट प्रकाशित नहीं की जानी चाहिए।
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  • डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स
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