सुर्ख़ियों में क्यों?
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) की शुरुआत के 5 वर्ष पूरे हो गए हैं।
PMMSY के बारे में
- उत्पत्ति: इसकी शुरुआत 2010 में केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अधीन मत्स्य विभाग द्वारा की गई थी।
- उद्देश्य: मत्स्य उत्पादन और उत्पादकता, गुणवत्ता, प्रौद्योगिकी, हार्वेस्ट उपरांत की अवसंरचना और विपणन में विद्यमान महत्वपूर्ण खामियों को दूर करना।
- अवधि: इसे वित्तीय वर्ष 2020-21 से वित्तीय वर्ष 2024-25 तक पांच वर्ष की अवधि के लिए सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में लागू किया गया था। हालांकि, इसकी अवधि को वित्तीय वर्ष 2025-26 तक बढ़ा दी गई है।
- नोडल एजेंसी: प्रशिक्षण, जागरूकता और क्षमता विकास कार्यक्रमों को लागू करने के लिए राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (National Fisheries Development Board: NFDB)।
- संरचना और घटक: यह दो अलग-अलग घटकों वाली एक छत्र योजना है जो इस प्रकार है:
- केंद्रीय क्षेत्रक योजना (Central Sector Scheme: CS): केंद्र सरकार द्वारा पूर्ण रूप से वित्त पोषित और कार्यान्वित होने वाली योजना।
- केंद्र प्रायोजित योजना (Centrally Sponsored Scheme: CSS): केंद्र सरकार द्वारा आंशिक रूप से समर्थित और राज्यों द्वारा कार्यान्वित होने वाली योजना।
- उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि।
- बुनियादी ढांचा और हार्वेस्ट उपरांत प्रबंधन।
- मत्स्य प्रबंधन और नियामक ढांचा।
लक्ष्य और उपलब्धियां:
क्षेत्र | लक्ष्य | उपलब्धियां |
मत्स्य उत्पादन और उत्पादकता | देश की औसत जलीय कृषि उत्पादकता को 3 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़ाकर 5 टन प्रति हेक्टेयर तक करना।
प्रति व्यक्ति मत्स्य उपभोग को वर्तमान 5–6 किलोग्राम से बढ़ाकर 12 किलोग्राम तक करना।
| फरवरी 2025 तक जलीय कृषि उत्पादकता बढ़कर 4.7 टन प्रति हेक्टेयर हो गई।
फरवरी 2025 तक प्रति व्यक्ति मत्स्य उपभोग 5–6 किलोग्राम से बढ़कर 12–13 किलोग्राम तक पहुंच गया।
भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मत्स्य उत्पादक देश बनकर उभरा, जो वैश्विक मत्स्य उत्पादन में लगभग 8% योगदान देता है। |
आर्थिक मूल्य वर्धन | हार्वेस्ट उपरांत होने वाले नुकसान को 20–25% से घटाकर लगभग 10% तक लाना। | दिसंबर 2024 तक हार्वेस्ट उपरांत नुकसान घटकर 10–15% रह गए। |
आय और रोजगार सृजन में वृद्धि | 55 लाख प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर सृजित करने का लक्ष्य है। | दिसंबर 2024 तक मत्स्य पालन और जलीय कृषि से संबंधित गतिविधियों में 58 लाख रोजगार के अवसर सृजित किए गए। |
PMMSY के तहत प्रारंभ की गई प्रमुख पहलें

- मत्स्य पालन में महिलाओं का सशक्तिकरण: लाभार्थी-केंद्रित गतिविधियों और उद्यमी मॉडल के तहत वित्तीय सहायता के रूप में कुल परियोजना लागत का 60% तक (₹1.5 करोड़/परियोजना तक) प्रदान किया जाता है।
- जलवायु लचीलेपन का विकास: मत्स्य विभाग ने 100 तटीय मछुआरा गांवों को जलवायु अनुकूल तटीय मछुआरा गांव (Climate Resilient Coastal Fishermen Villages: CRCFV) के रूप में चिन्हित किया है।
- बायोफ्लॉक तकनीक के माध्यम से उत्पादकता बढ़ाना: यह एक संधारणीय जलीय कृषि पद्धति है जो लाभकारी सूक्ष्मजीवों का उपयोग करके जल में पोषक तत्वों को पुनर्चक्रित करती है।
- हार्वेस्ट उपरांत की अवसंरचना और विपणन पारितंत्र को मजबूत करना: 2,195 मत्स्य पालन सहकारी समितियों को मत्स्य किसान उत्पादक संगठनों (Fish Farmers Producer Organizations: FFPOs) के रूप में ₹544.85 करोड़ की परियोजना राशि के साथ समर्थन दिया गया है।
- मूल्य श्रृंखलाओं और लचीलेपन को मजबूत करना: प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सह-योजना (PMMKSSY), जो PMMSY के तहत एक केंद्रीय क्षेत्र की उप-योजना है, को 2024 में चार वर्षों के लिए शुरू किया गया था।
मत्स्य पालन क्षेत्रक में विद्यमान चुनौतियां
- शासन संबंधी मुद्दे: समुद्री मत्स्यिकी (प्रादेशिक जल के परे मत्स्यिकी) के विपरीत, प्रादेशिक मत्स्यिकी राज्य का विषय है, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न राज्यों में कानूनों और नीतियों में भिन्नता पाई जाती है। आजीविका और पोषण सुरक्षा में इसके महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद यह क्षेत्र उपेक्षित रहता है।
- वैश्विक चुनौतियां: वैश्विक संघर्षों के कारण परिवहन व्यवधान और नौपरिवहन मार्गों में अस्थिरता ने भारतीय समुद्री खाद्य निर्यातकों पर दबाव बढ़ा दिया है कि वे चीन, वियतनाम, इंडोनेशिया और इक्वाडोर के मुकाबले अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता बनाए रखें।
- रोग प्रबंधन: उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश में झींगा पालन उद्योग एंटरोसाइटोजून हेपेटोपेनाई (Enterocytozoon hepatopenaei: EHP) नामक एक सूक्ष्मजीव परजीवी से गंभीर खतरे का सामना कर रहा है।
- वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान, हिमीकृत झींगा प्रमुख निर्यात वस्तु बना रहा, जिसकी कुल समुद्री खाद्य निर्यात में मात्रा के दृष्टि से हिस्सेदारी 40.19% और मूल्य के हिसाब से 66.12% हिस्सेदारी रही।
- आपदाओं/दुर्घटनाओं से पर्यावरणीय क्षति: उदाहरण के लिए, कोच्चि तट के पास एमएससी एल्सा (MSC Elsa)-3 जहाज़ के डूबने से जल और तलछट दूषित हो गए, जिससे प्लवक, बेंथोस, मछली के अंडे एवं लार्वा, और उच्च पोषण स्तर के समुद्री जीवन प्रभावित हुए।
आगे की राह
- अनुसंधान-किसान साझेदारी को बढ़ावा देना: उदाहरण के लिए, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-केंद्रीय खारा जलजीवन पालन अनुसंधान संस्थान (ICAR-CIBA) ने झींगा की बीमारियों जैसे हेपेटोपैंक्रिएटिक माइक्रोस्पोरिडियोसिस (Hepatopancreatic Microsporidiosis: HPM) के प्रभावी प्रबंधन पर एक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया था।
- वैश्विक बाजार में संधारणीयता को बढ़ावा देना: केंद्र सरकार ने पारंपरिक मात्स्यिकी की विधियों का उपयोग करने वाले लक्षद्वीप टूना मात्स्यिकी के लिए वैश्विक इको-लेबलिंग टैग प्राप्त करने के कदम उठाए हैं। इससे लक्षद्वीप टूना के लिए उच्च कीमत मिल सकेगी, जिससे पारंपरिक मछुआरों को लाभ होगा।
- कृषि पर संसदीय स्थायी समिति ने निम्नलिखित हेतु सिफारिश की है:
- भारतीय मत्स्य पालन और जलीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council for Fishery and Aquaculture Research: ICFAR) की स्थापना की जानी चाहिए ताकि न केवल केंद्रित और गहन शोध को सुगम बनाया जा सके, बल्कि मत्स्य पालन क्षेत्रक की चुनौतियों का भी समाधान किया जा सके।
- न्यूनतम विधिक जाल आकार (MLS) के नियमों को एक समान रूप से लागू किया जाना चाहिए और विनाशकारी मात्स्यिकी की विधियों पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
निष्कर्ष
आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय प्राथमिकताओं के संतुलन के साथ-साथ मत्स्य संसाधनों के सतत उपयोग तथा संरक्षण को सुनिश्चित करने हेतु क्षमता विकास पर ध्यान केंद्रित करने की सिफारिश की जाती है। साथ ही, अंतर-विषयक एवं अंतर-संस्थागत सहयोग से समर्थित एक सहभागी प्रबंधन दृष्टिकोण भी अपनाना चाहिए।