सुर्ख़ियों में क्यों?
सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS) की सांख्यिकी रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण भारत में कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate:TFR) ने पहली बार 2.1 की प्रतिस्थापन दर को प्राप्त किया है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- कुल प्रजनन दर (TFR): यह किसी महिला द्वारा अपने संपूर्ण प्रजनन काल में उत्पन्न होने वाली संतानों की औसत संख्या को दर्शाती है।
- राष्ट्रीय स्तर: 2023 में भारत में कुल प्रजनन दर 1.9 थी।
- 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में यह 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से कम दर्ज की गई।
- ग्रामीण बनाम शहरी: ग्रामीण क्षेत्रों में कुल प्रजनन दर 2.1 है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 1.5 है।
- यह पहली बार है जब ग्रामीण भारत में कुल प्रजनन दर (TFR) प्रतिस्थापन स्तर तक पहुँच गई है।
- सर्वाधिक कुल प्रजनन दर: बिहार (2.8)
- न्यूनतम कुल प्रजनन दर: दिल्ली (1.2)
- राष्ट्रीय स्तर: 2023 में भारत में कुल प्रजनन दर 1.9 थी।
- शैक्षिक स्तर के आधार पर कुल प्रजनन दर (TFR): माँ के शिक्षा का स्तर और कुल प्रजनन दर के बीच प्रतिकूल (व्युत्क्रम) संबंध होता है।
- निरक्षर महिलाएं: भारत में निरक्षर महिलाओं में कुल प्रजनन दर 3.3 थी।
- साक्षर महिलाएं: साक्षर महिलाओं में कुल प्रजनन दर 1.8 थी।
- सकल प्रजनन दर (Gross Reproduction Rate: GRR): यह एक महिला के जीवनकाल में होने वाली बेटियों की औसत संख्या को संदर्भित करती है।
- राष्ट्रीय स्तर: भारत में सकल प्रजनन दर 0.9 थी।
- ग्रामीण बनाम शहरी: ग्रामीण सकल प्रजनन दर (1.0) शहरी सकल प्रजनन दर (0.7) से थोड़ा अधिक थी, जिससे पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएँ शहरी क्षेत्रों की महिलाओं की तुलना में अधिक बेटियों को जन्म दे रही हैं।
- आयु-विशिष्ट प्रजनन दर (Age-Specific Fertility Rates: ASFR): यह किसी विशिष्ट आयु वर्ग में प्रति 1,000 महिला जनसंख्या पर जीवित जन्मों की संख्या को मापती है।
- युवा महिलाओं (15-29 वर्ष) की ASFR में तीव्र कमी दर्ज की गई है, जबकि वृद्ध महिलाओं (30-49 वर्ष) में वृद्धि दर्ज की गई है।
- सर्वाधिक प्रजनन दर 25-29 आयु वर्ग की महिलाओं में (136.8) दर्ज की गई है, उसके बाद 20-24 आयु वर्ग (107.5) का स्थान है।
- अशोधित जन्म दर (Crude Birth Rate: CBR) से आशय एक वर्ष में प्रति 1,000 जनसंख्या पर जीवित जन्मों की संख्या से है।
- राष्ट्रीय स्तर: भारत में कुल अशोधित जन्म दर 2023 में 18.4 थी, जो 2022 से 0.7 अंकों की गिरावट दर्शाती है।
- पिछले पांच वर्षों में राष्ट्रीय कुल अशोधित जन्म दर में 1.6 अंकों की गिरावट दर्ज की गई है।
- ग्रामीण बनाम शहरी: शहरी क्षेत्रों (14.9) की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों (20.3) में कुल अशोधित जन्म दर अधिक है।
- सबसे अधिक कुल अशोधित जन्म दर वाला राज्य: बिहार (25.8)
- सबसे कम कुल अशोधित जन्म दर वाला राज्य: तमिलनाडु (12.0)
- राष्ट्रीय स्तर: भारत में कुल अशोधित जन्म दर 2023 में 18.4 थी, जो 2022 से 0.7 अंकों की गिरावट दर्शाती है।
प्रजनन दर में गिरावट के कारण
- परिवार नियोजन कार्यक्रमों का प्रभावी तरीके से लागू होना: इन कार्यक्रमों ने "छोटा परिवार" जैसी सोच को सामाजिक रूप से स्वीकार्य बनाया है, जिससे परिवार नियोजन के प्रति अनुकूल माहौल तैयार हुआ है।
- विवाह और मातृत्व के प्रति सामाजिक सोच में बदलाव: महिलाएँ अब विवाह में देरी कर रही हैं या विवाह न करने का निर्णय ले रही हैं और मातृत्व की तुलना में करियर व आर्थिक स्वतंत्रता को प्राथमिकता दे रही हैं।
- पालन-पोषण के उच्च मानक: प्रत्येक संतान के विकास पर अधिक समय, ध्यान और संसाधन खर्च करने की सामाजिक अपेक्षाओं के कारण अधिक बच्चों का पालन-पोषण चुनौतीपूर्ण अथवा अव्यावहारिक होता जा रहा है।
- स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में सुधार और शिशु मृत्यु दर में कमी: बेहतर स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ और कम शिशु मृत्यु दर (IMR) गर्भनिरोधक के अधिक उपयोग और कम प्रजनन दर से जुड़ी हुई हैं।
- पुत्र के जन्म को प्राथमिकता देने की सोच में कमी आना: पहले जहाँ पुत्र के जन्म होने तक संतान उत्पत्ति जारी रहती थी, वहीं अब लैंगिक समानता की सोच और महिलाओं की शिक्षा व सशक्तिकरण के कारण यह सोच कमजोर पड़ी है।
- बढ़ती इनफर्टिलिटी और गर्भपात की दर: पुरुषों और महिलाओं दोनों में इनफर्टिलिटी के मामलों में वृद्धि तथा गर्भपात की बढ़ती दर भी प्रजनन दर में गिरावट के प्रमुख कारणों में शामिल हैं।
जनसंख्या वृद्धि के लिए कुछ सरकारी पहलें
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कुल प्रजनन दर में गिरावट के प्रभाव
सकारात्मक प्रभाव:
- आर्थिक रूप से सक्रिय आबादी में वृद्धि: प्रजनन दर घटने से 15–59 वर्ष आयु वर्ग की "आर्थिक रूप से सक्रिय" आबादी का अनुपात बढ़ा है, जिससे श्रम शक्ति में अधिक भागीदारी हो रही है।
- आर्थिक विकास को प्रोत्साहन: घटती प्रजनन दर से श्रम भागीदारी, बचत दर और मानव एवं भौतिक पूंजी के संचय में वृद्धि होती है, जो आर्थिक संवृद्धि को गति प्रदान करती है।
- सामाजिक असमानताओं में कमी: जनसंख्या वृद्धि की गति कम होने से सरकार के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य-देखभाल और सामाजिक सेवाओं को सबके लिए सुलभ बनाना आसान होता है, जिससे सामाजिक और क्षेत्रीय विषमताओं में कमी आती है।
- पर्यावरणीय संधारणीयता: धीमी जनसंख्या वृद्धि से जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और पर्यावरणीय क्षरण पर दबाव कम होता है, जिससे सतत विकास को बल मिलता है।
नकारात्मक प्रभाव
- आर्थिक और सामाजिक प्रगति में बाधा: निम्न जन्म दर और कम जनसंख्या का अर्थ है — कम श्रमिक, बचतकर्ताओं की कम संख्या और कम उपभोक्ता, जिससे अर्थव्यवस्था में संकुचन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- आबादी में वृद्धजनों का बढ़ता अनुपात (Ageing Population): जिन राज्यों में दीर्घकाल से प्रजनन दर कम रही है, जैसे केरल (TFR 1.5), वहाँ अब वृद्धजनों का अनुपात सर्वाधिक (15.1%) है।
- असमान क्षेत्रीय विकास: प्रजनन दर में क्षेत्रीय असमानताएं, क्षेत्रीय विषमताओं और राजनीतिक प्रतिनिधित्व यानी संसद में प्रतिनिधित्व में असंतुलन को बढ़ा सकती हैं।
- उदाहरण के लिए: बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे उत्तरी राज्यों में जन्म दर अभी भी प्रतिस्थापन स्तर से अधिक हैं।
- प्रजनन दर में गिरावट को रोकने की चुनौती: एक बार प्रजनन दर घटने के बाद इसे वापस बढ़ाना अत्यंत कठिन होता है।
- उदाहरण के लिए: दक्षिण कोरिया द्वारा जनसंख्या संकट को रोकने के कई प्रयास करने के बाद भी वहाँ की प्रजनन दर 2022 के 0.78 से घटकर 2023 में 0.73 रह गई।
आगे की राह
- अलग-अलग नीतियां अपनाना: कम प्रजनन दर वाले राज्यों में जनसंख्या वृद्धि को बढ़ावा देने वाले उपायों की आवश्यकता है, वहीं उच्च प्रजनन दर वाले राज्यों में महिला शिक्षा, स्वास्थ्य-देखभाल सेवाओं तक पहुँच और जन-जागरूकता में निरंतर निवेश आवश्यक है।
- अधिकार-आधारित परिवार नियोजन दृष्टिकोण अपनाना: परिवार नियोजन को स्वैच्छिक एवं अधिकार-आधारित बनाए रखते हुए, गर्भनिरोधक विकल्पों का विस्तार किया जाना चाहिए तथा केवल महिला नसबंदी पर निर्भरता से इतर व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
- आबादी में वृद्धजनों के बढ़ते अनुपात को देखते हुए योजना बनाना: सामाजिक सुरक्षा, पेंशन योजनाओं और स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं को प्रभावी बनाने के लिए वृद्धजन-अनुकूल नीतियाँ बनाना आवश्यक है।
- सुलभ और सब्सिडी युक्त बाल देखभाल: कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बनाए रखने के लिए "पालना योजना" जैसी सार्वभौमिक, उच्च-गुणवत्ता वाली और सब्सिडी युक्त शिशु-देखभाल (क्रेच) सुविधाओं का विस्तार शहरी तथा अर्ध-शहरी क्षेत्रों में किया जाना चाहिए।
- महिला एवं पुरुष, दोनों को पैरेंटल अवकाश की सुविधा देना: माता-पिता, दोनों के लिए सवेतन पैरेंटल अवकाश को लागू और प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि संतान के 'साझा-देखभाल' की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिले। इससे संतान के पालन-पोषण का बोझ अकेले महिलाओं को नहीं उठाना पड़ेगा और उन्हें अपने करियर से समझौता नहीं करना पड़ेगा।