सुर्ख़ियों में क्यों?
यूनिसेफ की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, पहली बार बच्चों और किशोरों में मोटापे की व्यापकता
कम वजन वाले बच्चों के अनुपात से अधिक हो गई है। यह वैश्विक बाल पोषण प्रवृत्तियों में एक बड़े बदलाव को दर्शाता है।
यूनिसेफ रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- 5-19 वर्ष की आयु के बच्चों और किशोरों में मोटापे का अनुपात (9.4%) वास्तव में कम वजन वाले बच्चों के अनुपात (9.2%) से अधिक हो गया है।
- इस आयु वर्ग में मोटापा वर्ष 2000 के 3% के अनुपात से तीन गुना बढ़कर 9.4% हो गया है, जबकि कम वजन वाले बच्चों का अनुपात लगभग 13% से घटकर 9.2% हो गया है।
- वैश्विक स्तर पर, 5 वर्ष से कम आयु के प्रत्येक बीस में से एक शिशु (5%) तथा 5-19 वर्ष आयु वर्ग के प्रत्येक पाँच में से एक बच्चा और किशोर (20%) अधिक वज़न (ओवरवेट) की श्रेणी में है।
- निम्न और मध्यम आय वाले देशों में ओवरवेट की समस्या में तीव्रतम वृद्धि दर्ज की जा रही है।
- उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया को छोड़कर प्रत्येक क्षेत्र में मोटापे की दर, कम वजन की दर से अधिक है।
NFHS-3 (2005-06) से NFHS-5 (2019-21) तक भारत में ओवरवेट और मोटापे की बढ़ती दरें
|
बाल मोटापे में वृद्धि के कारण
- स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले आहार का सेवन: बच्चों के भोजन में अब अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों (UPFs) का समावेश बढ़ गया है। इन फूड्स में चीनी, नमक, अस्वास्थ्यकर वसा और एडिटिव्स प्रचुर मात्रा में प्राप्त होती हैं। इन उत्पादों की अधिक मार्केटिंग बच्चों में भोजन की पसंद को गहराई से प्रभावित कर रही है।
- आर्थिक कारण: अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ प्रायः पोषक एवं ताज़े खाद्य पदार्थों की तुलना में सस्ते होते हैं।
- यह मूल्य असमानता आंशिक रूप से मक्का, सोयाबीन और गेहूं जैसे मुख्य कृषि उत्पादों पर दी जाने वाली सब्सिडी और शेल्फ-लाइफ (भंडारण अवधि) बढ़ाने वाले खाद्य संरक्षक (प्रिजर्वेटिव्स) के उपयोग के कारण है।
- विद्यालयी भोजन कार्यक्रमों में प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का उपयोग: 2024 के 'ग्लोबल सर्वे ऑफ स्कूल मील प्रोग्राम्स' के अनुसार, विश्व भर के प्रत्येक चार में से एक स्कूल मील प्रोग्राम में प्रसंस्कृत मांस परोसा जाता है। अनेक विद्यालय मिष्ठान्न, तले हुए खाद्य पदार्थ तथा शर्करा युक्त पेय भी परोसते हैं।
- शारीरिक निष्क्रियता में वृद्धि: खुले स्थानों की कमी, परिवहन के साधनों में बदलाव और तीव्र शहरीकरण के कारण शारीरिक गतिविधियों में वैश्विक स्तर पर कमी आई है।
- आनुवंशिक कारण और विकार: कुछ मामलों में, मोटापा कई वजहों से होने वाला रोग है, जिस पर आनुवंशिक विविधताओं का भी प्रभाव पड़ता है।
- अप्रभावी नीतियां: केवल 7% देशों में अनिवार्य 'फ्रंट-ऑफ-पैक न्यूट्रिशन लेबलिंग' की व्यवस्था है और केवल 8% देशों में स्वस्थ खाद्य पदार्थों पर सब्सिडी दी जाती है।
बढ़ते बाल मोटापे के दुष्प्रभाव
- कुपोषण का दोहरा बोझ: भारत जैसे देश में ओवरवेट और अल्पपोषण दोनों एक साथ मौजूद हैं, जिससे नीति-निर्माताओं के समक्ष एक दोहरी चुनौती उत्पन्न हो गई है।
- गैर-संचारी रोगों (NCDs) का बढ़ता खतरा: ओवरवेट या मोटापे से ग्रस्त बच्चों और किशोरों में आगे चलकर टाइप-2 मधुमेह, हृदय रोग, मांसपेशी और हड्डी संबंधी विकार जैसे गंभीर गैर-संचारी रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
- देश की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: बाल मोटापे में वृद्धि से स्वास्थ्य देखभाल की लागत बढ़ती है और कार्यबल की उत्पादकता घटती है।
- वैश्विक स्तर पर मोटापे की आर्थिक लागत वर्ष 2035 तक 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो जाने का अनुमान है।
- मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियां: ओवरवेट और मोटापा बच्चों और किशोरों में आत्म-सम्मान में कमी, चिंता और अवसाद जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ा है।
बाल मोटापे और ओवरवेट से निपटने हेतु सरकारी पहलें
वैश्विक स्तर पर नीतिगत उपाय
|
आगे की राह
- पौष्टिक खाद्य पदार्थों के सेवन को बढ़ावा देना: सामाजिक सहायता योजनाओं (जैसे फ़ूड, कैश, वाउचर आदि) के माध्यम से पोषक आहार की उपलब्धता और वहनीयता में सुधार किया जाना चाहिए। स्थानीय खाद्य प्रणालियों को सुदृढ़ कर ताज़े और स्वास्थ्यवर्धक आहार की आपूर्ति में वृद्धि की जानी चाहिए।
- सुरक्षित स्तनपान: 'ब्रेस्ट-मिल्क सब्स्टिट्यूट्स के विपणन पर अंतर्राष्ट्रीय कोड' को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। डिजिटल मार्केटिंग के माध्यम से ब्रेस्ट-मिल्क के विकल्पों के प्रचार-प्रसार पर भी प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
- कानूनी उपाय: अस्वास्थ्यकर या अल्ट्रा प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों की मार्केटिंग, लेबलिंग और कराधान पर कठोर नियम लागू किए जाने चाहिए। उदाहरण के तौर पर, मीठे कार्बोनेटेड ड्रिंक्स पर 40% जीएसटी लगाया गया है।
- शारीरिक व्यायाम को प्रोत्साहन: फिट इंडिया मूवमेंट और खेलो इंडिया जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से बच्चों और किशोरों में सक्रिय जीवनशैली अपनाने को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
- जन-जागरूकता: परिवारों और समुदायों को स्वस्थ भोजन, जंक फूड के खतरों और नियमित शारीरिक गतिविधि के महत्व के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष
बाल मोटापे की समस्या से निपटने के लिए एक ऐसे समग्र एवं बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के अनुरूप हो। इसके लिए कानूनी उपायों, पौष्टिक आहार की आसान उपलब्धता, जन-जागरूकता, और शारीरिक गतिविधि जैसे उपायों के माध्यम से ऐसा अनुकूल परिवेश बनाना होगा, जहां बच्चे अधिक स्वस्थ, सशक्त और सक्षम बन सकें।