सुर्ख़ियों में क्यों?
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 (PWDV Act, 2005) को लागू हुए 20 वर्ष पूरे हो गए।
PWDVA के बारे में
- इस अधिनियम का उद्देश्य संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के तहत महिलाओं को प्रदान किए गए मूल अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
- भारत, "महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव का उन्मूलन पर अभिसमय (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women: CEDAW) का हस्ताक्षरकर्ता होने के नाते, घरेलू हिंसा को मानवाधिकारों के उल्लंघन के रूप में मान्यता देते हुए इस पर विशेष कानून बनाने के लिए बाध्य था।
अधिनियम के मुख्य प्रावधान
- घरेलू हिंसा (DV) की व्यापक परिभाषा: इस अधिनियम के अंतर्गत "घरेलू हिंसा" की परिभाषा अत्यंत व्यापक है, इसमें वास्तविक हिंसा या हिंसा की धमकी - शारीरिक, यौन, भावनात्मक, मौखिक तथा आर्थिक उत्पीड़न सभी शामिल हैं।
- दहेज की अवैध मांगों के माध्यम से महिला या उसके परिजनों को प्रताड़ित करना भी घरेलू हिंसा की श्रेणी में आता है।
- विस्तार: यह अधिनियम विवाह, लिव-इन रिलेशनशिप, पारिवारिक संबंधों और साझा गृहस्थी में रहने वाली सभी महिलाओं पर लागू होता है।
- महिलाओं के अधिकार:
- साझा गृहस्थी में रहने का अधिकार (भले ही घर का स्वामित्व किसी के पास हो)।
- बच्चे की अस्थायी कस्टडी या अभिरक्षा का अधिकार।
- अन्य राहतें, जैसे —
- संरक्षण आदेश: घरेलू हिंसा की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए;
- मौद्रिक राहत (Monetary Orders): स्वयं और बच्चों के भरण-पोषण के लिए।
- क्षतिपूर्ति आदेश: हिंसा से हुए नुकसान की भरपाई के लिए।
- संस्थागत व्यवस्था:
- संरक्षण अधिकारी: इनकी नियुक्ति पीड़िता की सहायता करने, कानूनी मदद दिलाने, राहत आदेशों का पालन सुनिश्चित करने और मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट देने के लिए की जाती है।
- उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे शिकायत प्राप्त होने पर घरेलू हिंसा के मामलों की रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को दें और मजिस्ट्रेट को अपने कार्यों के निर्वहन में सहायता करें।
- सेवा प्रदाता: एनजीओ और सरकारी एजेंसियां जो पीड़ित महिलाओं को परामर्श, आश्रय, चिकित्सीय सहायता तथा कानूनी सहायता प्रदान करती हैं।
- सरकार के कर्तव्य: घरेलू हिंसा संबंधी जन जागरूकता बढ़ाना, संबंधित अधिकारियों एवं संगठनों को प्रशिक्षण देना तथा सभी हितधारकों के बीच समन्वय स्थापित करना।
- संरक्षण अधिकारी: इनकी नियुक्ति पीड़िता की सहायता करने, कानूनी मदद दिलाने, राहत आदेशों का पालन सुनिश्चित करने और मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट देने के लिए की जाती है।
- प्रक्रिया और प्रवर्तन:
- समय पर न्याय: पीड़िता 60 दिनों के भीतर त्वरित सिविल न्यायिक राहत प्राप्त कर सकती है।
- साक्ष्य: पीड़िता का स्वयं का बयान साक्ष्य के रूप में पर्याप्त माना जाता है, जिससे उस पर प्रमाण प्रस्तुत करने का बोझ कम होता है।
- दंड: न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन करने पर कारावास या जुर्माना हो सकता है।
क्या यह अधिनियम सफल रहा है?
- न्यायिक निर्णयों के माध्यम से संरक्षण के दायरे का विस्तार: महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णयों ने इस अधिनियम के दायरे का विस्तार किया है।
- उदाहरण के लिए: डी. वेलुसामी बनाम डी. पचैअम्मल, 2010 वाद में लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को भी संरक्षण अधिकार दिए गए। इसी तरह हीरालाल पी. हरसोरा बनाम कुसुम हरसोरा, 2016 वाद में अधिनियम के तहत प्रतिवादी के रूप में केवल पुरुषों के होने की बाध्यता हटाई गई।
- घरेलू हिंसा कानून के तहत दर्ज मामलों में गिरावट: अधिनियम के तहत दर्ज मामलों की संख्या 2021 में 507 थी जो 2022 में घटकर 468 हो गई।
- इसी प्रकार, पति-पत्नी के बीच हिंसा के मामलों में भी कमी आई है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)-4 (2015–16) के अनुसार 31.2% विवाहित महिलाओं ने इस तरह की हिंसा की शिकायत की थी, जो NFHS-5 (2019–20) में कम होकर 29.3% रह गई।
- महिला अधिकारों को मान्यता और सांस्कृतिक परिवर्तन: इस कानून ने घरेलू हिंसा को एक निजी पारिवारिक मामले की बजाय एक गंभीर सामाजिक और कानूनी मुद्दे के रूप में प्रस्तुत किया है, जिससे समाज की सोच में बदलाव आया है।
- त्वरित संरक्षण हेतु नागरिक उपाय: आपराधिक कानून कई बार महिलाओं को शिकायत दर्ज करने से हतोत्साहित करते हैं, वहीं PWDVA महिलाओं को संरक्षण आदेश, आश्रय का अधिकार, और भरण-पोषण के आदेश जैसी सिविल राहत प्रदान करता है, जो सुरक्षा और पुनर्वास पर केंद्रित हैं।
- अन्य प्रमुख उपलब्धियां:
- इसने शारीरिक क्रूरता और दहेज उत्पीड़न के अलावा दुर्व्यवहार के विभिन्न रूपों को कानूनी मान्यता दी है, जो IPC की धारा 498A जैसे पिछले कानूनों के दायरे से बाहर थे।
- सहायता प्राप्त करने के कई अन्य साधन प्रदान किए गए हैं।
क्रियान्वयन में चुनौतियां
- दोषसिद्धि की कम दर: PWDVA के तहत दोषसिद्धि दर लगभग 18% (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो रिपोर्ट 2022) है, जो दर्शाता है कि बहुत कम मामलों में सज़ा हो पाती है।
- न्यायिक और कानूनी सीमाएँ: कुछ न्यायिक व्याख्याओं ने अधिकारों को सीमित किया है जैसे कि एस.आर. बत्रा बनाम तरूणा बत्रा (2007) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने "साझा घर" (Shared Household) की परिभाषा को संकीर्ण करते हुए कई महिलाओं के लिए संरक्षण का दायरा सीमित कर दिया।
- साक्ष्य और प्रमाण जुटाने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पीड़िता के मौखिक बयान को मान्यता दिए जाने के बावजूद ठोस गवाहों और दस्तावेजों की कमी के चलते कानून के तहत सजा दिलाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाएं: समाज में पितृसत्तात्मक मानसिकता गहरी पैठ जमा चुकी है। घरेलू हिंसा को निजी पारिवारिक मामला माना जाता है और विवाह विच्छेद या तलाक से जुड़ा सामाजिक कलंक, वास्तव में महिलाओं को कानूनी सहायता लेने से रोकता है।
- कानूनी सुरक्षा के बावजूद घरेलू हिंसा की अधिक घटनाएं: 2022 में महिलाओं के खिलाफ दर्ज सभी प्रकार के अपराधों में 31.4% मामले पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता (IPC धारा 498A) से संबंधित थे।
- अन्य चुनौतियां:
- संरक्षण अधिकारियों को पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं देना और कर्मचारियों की कम संख्या इस कानून को प्रभावी तरीके से लागू करने में मुख्य बाधा है।
- विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में आश्रय गृहों और सेवा प्रदाताओं की संख्या कम है।
- पुलिस अधिकारी घरेलू हिंसा से जुड़े मामले में असंवेदनशीलता दिखाते हैं।
- घरेलू हिंसा में केवल महिला को ही पीड़ित माना जाता है। पीड़ित पुरुषों के मामलों की उपेक्षा की जाती है।
घरेलू हिंसा से निपटने के लिए भारत सरकार द्वारा किए गए प्रमुख उपाय
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आगे की राह
- पीड़ितों को उत्कृष्ट सहायता प्रदान करने तथा अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने हेतु संरक्षण अधिकारियों के लिए निर्धारित मानकों एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों में सुधार की जरूरत है।
- घरेलू हिंसा की घटनाओं की रिपोर्टिंग को सुगम बनाने एवं पुलिस के प्रति जन विश्वास को सुदृढ़ करने के लिए महिला-केंद्रित पुलिस इकाइयों का विस्तार तथा उनका संवेदीकरण अनिवार्य है।
- पीड़िताओं को आजीवन समग्र सहायता उपलब्ध कराने के उद्देश्य से आश्रय गृहों तथा पुनर्वास कार्यक्रमों में वृद्धि की जानी चाहिए।
- पितृसत्तात्मक मानसिकता के उन्मूलन हेतु महिलाओं के शैक्षिक, आर्थिक एवं सामुदायिक सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
- घरेलू हिंसा की महिला अभियुक्तों से निपटने एवं उनकी पुनर्वास व्यवस्था के विस्तार के लिए विधिक ढांचे में आवश्यक संशोधन किए जाने चाहिए।
- घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं की स्वायत्तता सुनिश्चित करने हेतु उन्हें STEP जैसी सरकारी योजनाओं के अंतर्गत लाभान्वित किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष
अपने प्रवर्तन के दो दशकों के पश्चात, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम एक महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में स्थापित होने के साथ-साथ समाज का प्रतिबिंब भी प्रस्तुत करता है। यह अधिनियम भारत में महिला अधिकारों को मान्यता प्रदान करने की दिशा में हुई प्रगति का प्रतीक है। हालांकि, उन सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अवरोधों को समाप्त करने हेतु अभी एक लंबी यात्रा अभी बाकी है, जो महिलाओं को हिंसात्मक घरेलू परिवेश में बने रहने के लिए विवश करती हैं।