भारत के पारंपरिक नववर्ष
भारत के अलग-अलग भागों में विविध पारंपरिक नववर्ष उत्सव मनाए जा रहे हैं।

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ज्ञानपीठ पुरस्कार
विनोद कुमार शुक्ल को 59वें ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए चुना गया। यह पुरस्कार भारत का सबसे बड़ा साहित्यिक सम्मान माना जाता है।
ज्ञानपीठ पुरस्कार के बारे में
- ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए 1965 से हर साल भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा दिया जाता है।
- भारतीय ज्ञानपीठ की स्थापना 1944 में हुई थी। यह भारत की प्रमुख साहित्यिक संस्थाओं में से एक है।
- यह पुरस्कार भारत के संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त 22 भाषाओं में से किसी भी भाषा में सर्वश्रेष्ठ रचनात्मक साहित्यिक कृति के लेखक को हर साल दिया जाता है।
- 2013 से अंग्रेजी भाषा में लिखित साहित्यिक कृतियों को भी इसमें शामिल किया गया है।
- यह पुरस्कार केवल भारतीय नागरिकों को ही दिया जाता है।
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- विनोद कुमार शुक्ल
गीत गवई
मॉरीशस की राजकीय यात्रा के दौरान भारतीय प्रधान मंत्री का स्वागत पारंपरिक बिहारी सांस्कृतिक प्रस्तुति गीत गावई के साथ किया गया।
गीत गवई के बारे में
- यह विवाह-पूर्व समारोह है। इसमें अनुष्ठान, प्रार्थना, गीत, संगीत और नृत्य शामिल होते हैं।
- इसे यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में भी शामिल किया गया है।
- इसका प्रदर्शन मॉरीशस में भारतीय मूल के भोजपुरी भाषी समुदायों द्वारा किया जाता है।
- प्रतिभागी: परिवार की महिला सदस्य और पड़ोसी।
- मुख्य वाद्य यंत्र: ढोलक।
- इसका प्रदर्शन सार्वजनिक रूप से भी किया जा सकता है और वर्तमान में पुरुष भी इसमें भाग लेते हैं।
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- विवाह-पूर्व समारोह
विक्रमशिला विश्वविद्यालय
बिहार में शिक्षा के एक अन्य प्राचीन केंद्र विक्रमशिला को पुनर्जीवित करने का कार्य चल रहा है। इससे पूर्व सरकार ने एक दशक पहले राजगीर की तलहटी में बसे नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित किया था।
विक्रमशिला विश्वविद्यालय के बारे में
- स्थापना: इसका निर्माण पाल शासक धर्मपाल (8वीं-9वीं शताब्दी ई.) ने कराया था। यह नालंदा के साथ-साथ विकसित हुआ था।
- धर्मपाल ने ही आधुनिक बांग्लादेश में सोमपुर महाविहार की स्थापना की थी।
- विक्रमशिला विश्वविद्यालय में वज्रयान/ तंत्रयान बौद्ध धर्म, गुप्त विद्या (Occult studies) और धर्मशास्त्र आदि विषयों का अध्ययन कराया जाता था।
- तिब्बत से कई विद्वान यहां अध्ययन के लिए आते थे। कई पांडुलिपियों की संस्कृत में रचना की गई थी और उनका तिब्बती भाषा में अनुवाद भी किया गया था।
- पाल साम्राज्य के बौद्ध विद्वान आतिश दीपांकर (980-1054 ई.) विक्रमशिला विश्वविद्यालय के अध्यक्ष थे।
- 12वीं शताब्दी के अंत में कुतुबुद्दीन ऐबक के सैन्य कमांडर बख्तियार खिलजी ने इसे नष्ट कर दिया था।
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