सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि पारिवारिक मूल्य क्षीण हो रहे हैं, क्योंकि माता-पिता और बच्चे संपत्ति और भरण-पोषण के मामलों को लेकर एक-दूसरे के खिलाफ मुकदमेबाज़ी कर रहे हैं। इससे देश "एक व्यक्ति, एक परिवार (One Person, One Family)" मॉडल की ओर बढ़ रहा है, जो कि "वसुधैव कुटुंबकम्" की भावना के विपरीत है।
अन्य संबंधित तथ्य
- संतोला देवी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य वाद में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्णय दिया था कि माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007 बुजुर्ग माता-पिता को भरण-पोषण प्रदान करने की गारंटी देता है, लेकिन यह अधिनियम बच्चों को उनके घर से बेदखल करने की स्पष्ट अनुमति नहीं देता।
भारत में बदलती परिवार संस्था
पहलू | पारंपरिक परिवार | नवीन प्रवृत्तियां |
संरचना | संयुक्त परिवार प्रणाली जिसमें दादा-दादी, चाचा-चाची, भतीजे-भतीजियां सहित कई पीढ़ियां एक ही घर में एक साथ रहती हैं। | मुख्यतः एकल परिवार, जिसमें अक्सर केवल माता-पिता और गैर-वयस्क बच्चे ही शामिल होते हैं। |
निर्णय लेना
| पितृसत्तात्मक पदानुक्रम, जिसमें निर्णय सामूहिक रूप से बुजुर्गों द्वारा लिए जाते हैं। | अब अधिक समतामूलक दृष्टिकोण अपनाया जा रहा है, जहां पुरुष और महिलाएं मिलकर निर्णय लेते हैं। |
विवाह प्रथाएं
| बुजुर्गों द्वारा तय की जाने वाली पारंपरिक विवाह प्रणाली; वंश और पारिवारिक एकता पर बल। | प्रेम विवाह, लिव-इन रिलेशनशिप और समलैंगिक संबंधों जैसे गैर-पारंपरिक संबंधों की स्वीकार्यता बढ़ी है। |
जीवन मूल्य | सामूहिकता पर बल: परिवार की वफादारी, एकता, परस्पर निर्भरता। | गोपनीयता, स्वतंत्रता और व्यक्तिगत आकांक्षाओं पर ध्यान; व्यक्तिवादिता में वृद्धि। |
भारतीय परिवार संस्था में बदलाव के कारक
- आर्थिक कारक: शहरीकरण, श्रम बाजार की बढ़ती मांग, शहरी क्षेत्रों में जीवन-यापन की उच्च लागत, दोहरी आय वाले परिवार, आदि।
- लैंगिक भूमिकाओं में परिवर्तन: महिलाओं की शिक्षा और औपचारिक रोजगार तक बेहतर पहुँच ने पारंपरिक पितृसत्तात्मक मान्यताओं को चुनौती दी है।
- पाश्चात्य प्रभाव: व्यक्तिवादी मूल्यों की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण अब लोग छोटे और निजता-प्रधान परिवारों को अधिक महत्त्व देने लगे हैं।
- वैश्वीकरण: मीडिया और वैश्विक संपर्क के माध्यम से विभिन्न संस्कृतियों से जुड़ाव ने पारिवारिक संरचनाओं और मूल्यों के नए विकल्प सामने रखे हैं। उदाहरण के तौर पर, बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNCs) की कार्य संस्कृति छोटे और लचीले पारिवारिक ढांचे को बढ़ावा देती है।
- तकनीक की भूमिका: Skype, WhatsApp जैसे आधुनिक संचार माध्यमों ने दूर रहते हुए भी संपर्क बनाए रखने में मदद की है, लेकिन आमने-सामने बातचीत की कमी ने पारिवारिक संबंधों की गहराई और भावनात्मक निकटता को धीरे-धीरे प्रभावित किया है।
पारिवारिक संस्था में बदलाव के प्रभाव
सकारात्मक प्रभाव | नकारात्मक प्रभाव |
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आगे की राह
- समुदाय-आधारित समर्थन प्रणालियों को मजबूत करना: पड़ोस-आधारित बेहतर बुजुर्ग देखभाल सेवाएं, बाल देखभाल केंद्र (क्रेच) और मानसिक कल्याण केंद्र स्थापित करना।
- स्थानीय सामाजिक पूंजी को बढ़ावा देने के लिए RWA (रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन) और पंचायतों को प्रोत्साहित करना चाहिए। उदाहरण स्वरूप, केरल का कुदुम्बश्री नेटवर्क समुदाय आधारित सेवाओं और देखभाल अर्थव्यवस्था को एकीकृत करता है, विशेष रूप से बुजुर्गों और महिलाओं के लिए।
- शिक्षा और सामाजिक जागरूकता: पारिवारिक सहानुभूति को बढ़ावा देने के लिए स्कूल के पाठ्यक्रम में मूल्य संबंधी शिक्षा और भावनात्मक बुद्धिमत्ता को शामिल किया जाना चाहिए।
- शहरी नियोजन के माध्यम से अंतर-पीढ़ीगत जीवन को बढ़ावा देना: ऐसी आवासीय परियोजनाओं को प्रोत्साहित करना, जो बहु-पीढ़ीगत परिवारों के लिए अनुकूल आवास सुविधाएं प्रदान करती हों।
- परिवार की अवधारणा को पुनः परिभाषित करना: राज्यों की नीतियों और शासन संरचनाओं में पारंपरिक परिवार की परिभाषाओं (संयुक्त/ एकल) से आगे बढ़कर, एकल माता-पिता वाले परिवारों, अकेले रहने वाले बुजुर्गों आदि को भी समाहित और समायोजित करने की आवश्यकता है।
- इससे विभिन्न प्रकार के परिवारों के लिए कल्याणकारी कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करने में मदद मिल सकती है।
- नीतिगत हस्तक्षेप: माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007 का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जाना चाहिए, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि बच्चे यदि अपने माता-पिता का भरण-पोषण नहीं करते हैं, तो उन्हें कानूनी रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
- इसके अतिरिक्त, बुजुर्गों के लिए मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान की जा सकती है, ताकि वे अपने अधिकारों की रक्षा कर सकें और उपेक्षा या दुर्व्यवहार के खिलाफ विरोध कर सकें।