सुर्ख़ियों में क्यों?
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 15वें वित्त आयोग चक्र (2021-22 से 2025-26) की अवधि के लिए राशि आवंटन बढ़ाकर संशोधित राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम (NPDD) को मंजूरी प्रदान की।
संशोधित NPDD के उद्देश्य![]()
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- देशभर में 10,000 नई डेयरी सहकारी समितियों का गठन करना।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र में दूध की खरीद एवं दुग्ध प्रोसेसिंग क्षमताओं को बढ़ाना।
- NPDD की चल रही परियोजनाओं के अतिरिक्त विशेष अनुदान सहायता के साथ दो 'दुग्ध उत्पादक कंपनियों' का गठन करना।
- रोजगार के 3.2 लाख अतिरिक्त प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष अवसर सृजित करना जिसमें महिलाओं को रोजगार दिलाने पर विशेष ध्यान देना। गौरतलब है कि डेयरी क्षेत्रक के कुल कार्यबल में 70% महिलाएं हैं।
राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम (NPDD)
- यह केंद्रीय क्षेत्रक योजना है। इसे 2014 में शुरू किया गया था। वर्ष 2021 में इस योजना को पुनर्गठित किया गया।
- कार्यान्वयन एजेंसी: केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय के तहत पशुपालन और डेयरी विभाग (DAHD)।
- उद्देश्य
- दुग्ध और दुग्ध-उत्पादों के लिए अवसंरचनाओं (कोल्ड चेन अवसंरचना सहित) का विकास और सुधार करना;
- डेयरी कृषकों के प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षण संस्थाओं की स्थापना करना;
- पशु-आहार, पशु आहार में खनिज मिश्रण इत्यादि के बारे में तकनीकी परामर्श सेवाएँ प्रदान करके दुग्ध उत्पादन में वृद्धि करना;
- सक्षम मिल्क फेडरेशन/यूनियन की पुनर्स्थापना में सहायता करना।
- NPDD के निम्नलिखित दो मुख्य घटक हैं:
- घटक A: डेयरी सहकारी समितियों (Dairy Cooperative Societies: DCSs)/दूध उत्पादक कंपनियों (Milk Producers Companies: MPCs) के गठन में सहायता करके विशेष रूप से दूरदराज और पिछड़े क्षेत्रों में डेयरी संबंधी आवश्यक अवसंरचनाओं का विकास करना। इन अवसंरचनाओं में दुग्ध शीतलन प्लाट्स, दुग्ध परीक्षण प्रयोगशालाएं और प्रमाणन प्रणाली शामिल हैं।
- घटक B: सहकारिता के माध्यम से डेयरी: यह जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (JICA)-से सहायता प्राप्त कार्यक्रम है। इसका उद्देश्य 9 राज्यों में दुग्ध उत्पादन, प्रोसेसिंग और मार्केटिंग से संबंधित अवसंरचना में सुधार करके डेयरी सहकारी समितियों का निरंतर विकास करना है।
डेयरी क्षेत्रक में सहकारी समितियों की भूमिका
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डेयरी क्षेत्रक के समक्ष चुनौतियां:
- कम उत्पादकता: भारत में प्रति मवेशी दुग्ध उत्पादन कम है। साथ ही देश में डेयरी क्षेत्रक के हितधारक अलग-अलग स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं।
- कारण- पशु नस्ल ब्रीडिंग कार्यक्रम अधिक सफल नहीं रहा है, विस्तार सेवाएं (एक्सटेंशन सर्विसेज) सही से उपलब्ध नहीं हो पाती हैं, आधुनिक तकनीकों का कम उपयोग किया जाता है, पशुओं को उपयुक्त आहार और चारा नहीं मिल पाता हैं क्योंकि ये आसानी से उपलब्ध नहीं हैं या महंगा होने के कारण किसान इन्हें खरीद नहीं सकते, आदि।
- अनौपचारिक और असंगठित होना: भारत में लोग स्थानीय दुग्ध उत्पादकों से ही रोजाना दूध खरीद लेते हैं। इससे सहकारी समितियों के पैकेज्ड दूध की मांग कम हो जाती है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में।
- दुग्ध की गुणवत्ता को लेकर चिंताएं: दूध और दुग्ध उत्पादों में मिलावट एक बड़ी समस्या रही है। उदाहरण के लिए दूध में पानी मिलाना, यूरिया का उपयोग आदि।
- पशु स्वास्थ्य और प्रजनन सेवाएँ: पशु चिकित्सा केंद्रों की संख्या कम हैं या ये बेहतर स्थिति में नहीं हैं। इसके अलावा, पशुओं को टीका लगाने के बारे में भी किसानों में जागरूकता की कमी है। इस वजह से आये दिन खुरपका और मुंहपका (Foot and Mouth Disease) जैसे पशु रोगों के प्रकोप का मामला सामने आता रहता है।
- प्रशासन: सहकारी समितियों का खुद का प्रशासन सही नहीं है और राज्य सरकारों द्वारा बार-बार हस्तक्षेप करने के कारण इनकी लोकतांत्रिक कार्य प्रणाली भी प्रभावित होती है।
- प्रसंस्करण एवं भंडारण की कम क्षमता: वैल्यू एडिशन (दूध से अलग-अलग उत्पाद बनाना), प्रोसेसिंग, भंडारण और मार्केटिंग जैसी अवसंरचनाओं की कमी के कारण दुग्ध उत्पादकों को अधिक लाभ नहीं मिल पाता है।

आगे की राह
- अवसंरचनाओं का विकास: दुग्ध उत्पादन, प्रोसेसिंग, भंडारण और अनुसंधान से संबंधित बुनियादी ढांचे को गांव और जिला स्तर पर उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।
- उदाहरण के लिए कोल्ड चेन इन्फ्रास्ट्रक्चर, दुग्ध गुणवत्ता परीक्षण प्रयोगशालाएं, पशु चिकित्सा सेवाएं, दूध से अलग-अलग उत्पाद बनाने के लिए मशीनें, आदि।
- तकनीकों को अपनाना: किसानों को वैज्ञानिक तरीके से पशुपालन के लिए सलाह प्रदान करनी चाहिए, उन्हें कम कीमत पर नई प्रौद्योगिकियां उपलब्ध करानी चाहिए, आदि।
- उदाहरण के लिए पशु आनुवंशिकी तथा कृत्रिम गर्भाधान, भ्रूण स्थानांतरण जैसी अलग-अलग तकनीकों के बारे में जानकारी प्रदान करना।
- सहकारिता को बढ़ावा देना: दूरदराज के क्षेत्रों में सामूहिकता की शक्ति का लाभ उठाना चाहिए और डेयरी कृषकों को सहकारिता के लाभों के बारे में बताना चाहिए।
- प्रोसेसिंग और मार्केटिंग: दूध की प्रोसेसिंग को बढ़ावा देने की जरूरत है, ताकि अधिक मांग वाले A2 घी, पनीर जैसे दुग्ध उत्पादों की अधिक मात्रा में उत्पादन किया जा सके। ब्रांड विकसित करने और डेयरी उत्पादों के निर्यात के उद्देश्य से उत्तम गुणवत्ता वाले उत्पादों की मार्केटिंग करने पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है।
अन्य संबंधित सुर्खियां: संशोधित राष्ट्रीय गोकुल मिशन (RGM)
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