सुर्ख़ियों में क्यों?
वित्त अधिनियम, 2016 में प्रस्तावित नए संशोधनों के अनुसार, ऑनलाइन विज्ञापनों पर इक्विलाइजेशन लेवी या डिजिटल कर 1 अप्रैल, 2025 को या उसके बाद लागू नहीं होगा।
इक्विलाइजेशन लेवी के बारे में

- यह वित्त अधिनियम, 2016 द्वारा शुरू किया गया एक प्रत्यक्ष कर है। यह लेवी डिजिटल लेन-देन यानी विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों को भारत से होने वाली आय पर लगाई जाती है।
- इसमें विदेशी कंपनियों को विज्ञापन (सर्च इंजन या अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर विज्ञापन) से होने वाली आय पर टैक्स भी शामिल है। इस टैक्स का उद्देश्य दो व्यवसायों के बीच के लेन-देन (विज्ञापन देने वाला और विज्ञापन दिखाने वाले प्लेटफॉर्म्स) पर टैक्स लगाना है।
- वित्त अधिनियम, 2020 के तहत इस लेवी के दायरे में ई-कॉमर्स आपूर्ति और सेवाओं को भी लाया गया है।
इक्विलाइजेशन लेवी लगाने के कारण
- निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा: इसका उद्देश्य घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना था।
- विदेशी कंपनियों को कर के दायरे में लाना: कई विदेशी कंपनियां डिजिटल माध्यमों से भारत से राजस्व अर्जित करती रही हैं लेकिन वे कर का भुगतान करने से बच जाती थीं क्योंकि भारत में उनका कोई ऑफिस नहीं होता था। ऐसी ही कंपनियों को इक्विलाइजेशन लेवी के दायरे में लाया गया।
- विदेशी डिजिटल कंपनियों पर कर लगाना: यह सुनिश्चित करना कि बड़ी विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियां भारत में अर्जित राजस्व पर कर का भुगतान करें।
- राजस्व के स्रोत बढ़ाने का अवसर: विशेष रूप से कोविड महामारी की वजह से डिजिटल लेन-देन में अधिक वृद्धि दर्ज की गई। सरकार को इस लेनदेन पर कर लगाकर राजस्व अर्जित करने का सुअवसर प्राप्त हुआ।
इक्विलाइजेशन लेवी लगाने से जुड़ी चिंताएं
- अमेरिका के साथ व्यापार विवाद: अमेरिका की "फॉरेन ट्रेड बैरियर्स" रिपोर्ट में भारत की इक्विलाइजेशन लेवी को विदेशी व्यापार के लिए बाधक बताया गया है।
- भारत पर जवाबी कर: भारत की इक्विलाइजेशन लेवी के प्रत्युत्तर में कई अन्य देश भी भारतीयों पर इस तरह की लेवी लगा सकते हैं। इससे विदेशों में संचालित भारतीय कंपनियों का व्यवसाय प्रभावित हो सकता है।
- दोहरा कराधान और अनुपालन संबंधी बोझ: विदेशी कंपनियों को दोहरे कराधान (अपने देश में और भारत में) का भुगतान करना पड़ता है। इससे उनकी व्यवसाय लागत बढ़ रही है।