संयुक्त राज्य अमेरिका के हाउस ऑफ़ रीप्रेज़ेंटेटिव ने विप्रेषण के बहिर्गमन पर 3.5% कर की मंजूरी दी (US House Approves 3.5% Outward Remittance Tax)
संयुक्त राज्य अमेरिका के हाउस ऑफ़ रीप्रेज़ेंटेटिव ने विप्रेषणों के बहिर्गमन पर 3.5% कर के प्रावधान वाले 'वन, बिग, ब्यूटीफुल बिल' को मंजूरी दी।
- ‘विप्रेषणों के अंतरण पर उत्पाद शुल्क' नामक यह नया प्रस्तावित प्रावधान 1 जनवरी, 2026 से लागू होगा।
विप्रेषण (Remittance) के बारे में
- परिभाषा: किसी अन्य देश में काम करने वाले लोगों द्वारा अपने गृह देश में धन के अंतरण को विप्रेषण के रूप में जाना जाता है।
- 2023 में, प्रवासी कामगारों द्वारा अपने गृह देशों को भेजी गई कुल विप्रेषण राशि लगभग 656 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी।
- 2024 में भारत को कुल वैश्विक विप्रेषण का 14.3% हिस्सा प्राप्त हुआ था। यह अब तक भारत द्वारा प्राप्त की गई सबसे अधिक हिस्सेदारी है।
विधेयक के मुख्य प्रावधानों पर एक नजर
- विप्रेषण कर (उत्पाद शुल्क) केवल गैर-अमेरिकी नागरिकों पर लागू होगा, जबकि अमेरिकी नागरिकों को इससे छूट दी गई है।
- इससे प्रभावित समूहों में वीज़ा धारक (H-1B व F-1), ग्रीन कार्ड धारक आदि शामिल हैं।
- इस विधेयक में विप्रेषण के बहिर्गमन पर लगने वाले कर को 5% से घटाकर 3.5% करने का प्रावधान किया गया है।
विप्रेषण के अंतरण पर उत्पाद शुल्क का प्रभाव
- वैश्विक आर्थिक प्रभाव: अल-सल्वाडोर, मैक्सिको, भारत जैसे देश जो अमेरिकी विप्रेषण से सबसे अधिक लाभ प्राप्त करते हैं को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
- यह विधेयक विदेशी कामगारों को अमेरिका में संपत्ति या रोजगार बनाए रखने से भी हतोत्साहित कर सकता है।
- भारत में विप्रेषण के अंतर्वाह में कमी: संयुक्त राज्य अमेरिका भारत के लिए विप्रेषण का सबसे बड़ा स्रोत है। इसने 2023-24 में कुल विप्रेषण प्रवाह में 32.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान किया था।
- विप्रेषण कर लगने से अमेरिका में भारतीयों द्वारा कुछ धन को ग्रे या ब्लैक मार्केट में अंतरित किया जा सकता है, ताकि इस नए प्रावधान से बचा जा सके।
संबंधित सुर्ख़ियां {उदारीकृत विप्रेषण योजना (LRS)}RBI के अनुसार वित्त वर्ष 2025 में उदारीकृत विप्रेषण योजना (LRS) के तहत छात्र विप्रेषण पांच साल के निचले स्तर (2.92 बिलियन अमेरिकी डॉलर) पर आ गया है। यह छात्र बहिर्वाह में कमी का संकेत देता है। उदारीकृत विप्रेषण योजना (LRS) के बारे में
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प्रीडेटरी प्राइसिंग (Predatory Pricing)
हाल ही में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) ने लागत विनियम, 2025 अधिसूचित किए हैं। इनमें प्रीडेटरी प्राइसिंग को रोकने के लिए नई परिभाषाएं दी गई हैं।
प्रीडेटरी प्राइसिंग के बारे में
- परिभाषा: प्रीडेटरी प्राइसिंग वास्तव में प्रतिस्पर्धा को कम करने या प्रतिद्वंद्वियों को समाप्त करने के उद्देश्य से अपनी वस्तुओं या सेवाओं को लागत से कम कीमत पर बेचना है।
- प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 की धारा 4(2) के अनुसार, किसी बड़ी या वर्चस्व वाली कंपनी द्वारा की गई प्रीडेटरी प्राइसिंग, दुरूपयोग वाली गतिविधि है।
- प्रीडेटरी प्राइसिंग के प्रभाव:
- ग्राहकों पर प्रभाव: अल्पकाल के लिए कम कीमतों के कारण लाभकारी होती है, लेकिन लंबे समय में विकल्पों की कमी और कीमतों में वृद्धि के कारण नुकसानदायक सिद्ध होती है।
- कंपनियों पर प्रभाव: यह सभी कंपनियों को अल्पकाल में नुकसान पहुंचाती है, लेकिन जब प्रतिद्वंद्वी बाहर हो जाते हैं, तो एकाधिकार प्राप्त कंपनियां कीमतें बढ़ाकर अपने घाटे की भरपाई करती हैं।
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भुगतान विनियामक बोर्ड (Payments Regulatory Board)
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने भुगतान विनियामक बोर्ड विनियम, 2025 को अधिसूचित किया। इन्हें भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 के तहत अधिसूचित किया गया है।
- ये विनियम भुगतान और निपटान प्रणाली के विनियमन एवं पर्यवेक्षण के लिए बोर्ड विनियम, 2008 की जगह लेंगे।
भुगतान विनियामक बोर्ड के बारे में:
- संरचना:
- अध्यक्ष: भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर
- पदेन सदस्य: भुगतान प्रणाली के प्रभारी RBI डिप्टी गवर्नर और RBI द्वारा नामित एक अधिकारी
- 3 सदस्य: केंद्र सरकार द्वारा नामित
- विशेषज्ञ आमंत्रण: यह बोर्ड भुगतान, सूचना प्रौद्योगिकी, साइबर सुरक्षा, कानून जैसे क्षेत्रकों से विशेषज्ञों को आमंत्रित कर सकता है।
- कार्यकाल: सरकार द्वारा नामित सदस्यों का कार्यकाल 4 वर्षों का होगा। उन्हें फिर से नामित नहीं किया जा सकता।
- बैठकें: प्रत्येक वर्ष कम-से-कम दो बार बैठक करना अनिवार्य है।
- कोरम (गणपूर्ति): न्यूनतम 3 सदस्य आवश्यक हैं, जिनमें अध्यक्ष या डिप्टी गवर्नर में से कोई एक होना जरूरी है।
- निर्णय प्रक्रिया: बहुमत से निर्णय लिए जाएंगे। यदि मत बराबर हों, तो अध्यक्ष को निर्णायक मत देने का अधिकार होगा।
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RBI (डिजिटल ऋण) दिशा-निर्देश, 2025 {RBI (Digital Lending) Directions, 2025}
RBI ने भारतीय रिज़र्व बैंक (डिजिटल ऋण) दिशा-निर्देश, 2025 जारी किए। इन दिशा-निर्देशों का मुख्य उद्देश्य उधारकर्ताओं की सुरक्षा बढ़ाना, डेटा पारदर्शिता सुनिश्चित करना और ज़िम्मेदारपरक डिजिटल ऋण (लेंडिंग) पद्धतियों को बढ़ावा देना है।
मुख्य दिशा-निर्देशों पर एक नजर
- डिजिटल ऋण की परिभाषा: इसे डिजिटल प्रौद्योगिकियों के उपयोग द्वारा दूरस्थ और स्वचालित ऋण प्रक्रिया के जरिये ग्राहकों को जोड़ने, ऋण का आंकलन करने, ऋण अनुमोदन, ऋण प्रदान और वसूली करने आदि के रूप में परिभाषित किया गया है।
- ये दिशा-निर्देश अग्रलिखित पर लागू होते हैं: वाणिज्यिक बैंक, प्राथमिक (शहरी)/ राज्य/ केंद्रीय सहकारी बैंक, NBFC (हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों सहित) और अखिल भारतीय वित्तीय संस्थान।
- डिजिटल लेंडिंग ऐप्स (DLAs) की अनिवार्य रिपोर्टिंग: सभी वैध डिजिटल लेंडिंग ऐप्स का RBI के केंद्रीकृत सूचना प्रबंधन प्रणाली (CIMS) पोर्टल पर अनिवार्य रूप से पंजीकरण होगा, ताकि एक पारदर्शी सार्वजनिक सूची बनाई जा सके।
- समुचित सावधानी बरतना: वित्तीय संस्थाओं द्वारा ऋण सेवा प्रदाताओं (LSPs) की तकनीकी क्षमताओं, डेटा को गोपनीय रखने की उनकी क्षमता, ऋण लेने वाले की गतिविधियों और नियमों के अनुपालन पर निगरानी रखनी चाहिए।
- LSP वस्तुतः वित्तीय संस्था की ओर से डिजिटल लेंडिंग संबंधी कार्य निष्पादन करता है।
- उधारकर्ताओं के लिए प्रकटीकरण: वित्तीय संस्थाओं और LSPs को उधारकर्ताओं को सभी जरूरी जानकारी जैसे नियम व शर्तें, गोपनीयता नीति आदि स्पष्ट रूप से बतानी होगी, ताकि उधारकर्ता सही निर्णय ले सकें।
- शिकायत निवारण अधिकारी: इसे डिजिटल ऋण-संबंधी शिकायतों और मुद्दों का समाधान करने के लिए LSPs द्वारा नियुक्त किया जाएगा।

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ओपिनियन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म (Opinion Trading Platforms)
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI/ सेबी) ने निवेशकों को ओपिनियन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म से लेन-देन करने के प्रति सचेत किया है।
ओपिनियन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म्स के बारे में
- अवधारणा: ये प्लेटफॉर्म्स प्रतिभागियों को किसी भी खेल, राजनीतिक स्थिति, मौसम या क्रिप्टो घटनाओं पर अपने पूर्वानुमानों में निवेश करके पैसा कमाने का विकल्प देते हैं:
- प्रतिभागी अपने पूर्वानुमानों के आधार पर किसी भी घटना पर दांव लगा सकते हैं।
- यदि पूर्वानुमान सही निकलता है, तो प्रतिभागी को धन मिलता है, तथा यदि पूर्वानुमान गलत होता है, तो उसे हार का सामना करना पड़ता है।
- कानूनी स्थिति: यह सेबी द्वारा विनियमित नहीं है, क्योंकि इसके तहत जिन वस्तुओं का कारोबार किया जा रहा है वे भारतीय कानून के तहत प्रतिभूतियों के रूप में वर्गीकृत नहीं हैं।
- अर्थव्यवस्था: इन प्लेटफॉर्म्स ने 5 करोड़ से अधिक लोगों के उपयोगकर्ता आधार के साथ प्रति वर्ष 50,000 करोड़ रुपये से अधिक का लेनदेन दर्ज किया है।
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विश्व बैंक भूमि सम्मेलन (World Bank Land Conference)
भारत ने विश्व बैंक भूमि सम्मेलन 2025 में ‘कंट्री चैंपियन’ की भूमिका धारण की।
- इस सम्मेलन के दौरान समावेशी व प्रौद्योगिकी-संचालित ग्रामीण गवर्नेंस के मॉडल के रूप में भारत की भूमि प्रबंधन संबंधी प्रमुख पहलों की ओर विश्व का ध्यान आकर्षित किया गया। जैसे स्वामित्व योजना और ग्राम मानचित्र प्लेटफॉर्म।
- स्वामित्व योजना ने 68,000 वर्ग कि.मी. का सर्वेक्षण और 1.16 ट्रिलियन रुपये मूल्य की भूमि का मुद्रीकरण किया है। इस उपलब्धि के साथ यह वैश्विक स्तर पर समावेशी आर्थिक रूपांतरण के लिए एक स्केलेबल मॉडल के रूप में सामने आई है।
- स्वामित्व योजना का उद्देश्य ड्रोन प्रौद्योगिकी के उपयोग के जरिये भू-खंडों का मानचित्रण करके ग्रामीण क्षेत्रों में संपत्ति के स्पष्ट स्वामित्व की स्थापना करना है।
- क्लाइमेट रिजिलिएंस, अवसंरचना के नियोजन और योजनाओं के अभिसरण को बढ़ावा देने में ग्राम मानचित्र प्लेटफॉर्म की भूमिका को ग्लोबल साउथ के संदर्भ में काफी लाभकारी और एक उपयोगी मॉडल माना गया।
- ग्राम मानचित्र एक भू-स्थानिक प्लानिंग प्लेटफॉर्म है, जो ग्राम पंचायतों को डेटा-संचालित व स्थानीयकृत विकास योजनाएं तैयार करने में सक्षम बनाता है।
कुशल भूमि प्रबंधन प्रणाली और आर्थिक संवृद्धि
- नौकरियां और विकास: संपत्ति तक सुव्यवस्थित पहुंच से उद्यमशीलता, विस्तार करने, धन के पुनर्निवेश और वैकल्पिक आजीविका की सुविधा मिलती है।
- निजी पूंजी: पंजीकृत संपत्ति संबंधी अधिकार भू-स्वामियों को भूमि को जमानत के रूप में रखने हेतु सक्षम बनाते हैं, जिससे निजी ऋण और निवेश के अवसरों को बढ़ावा मिलता है।
- अवसंरचना वित्त-पोषण: आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं और अवसंरचना के लिए विश्वसनीय सरकारी राजस्व उत्पन्न होता है।
- निम्न आय वाले देशों में भूमि और संपत्ति कर GDP में मात्र 0.6% का योगदान करते हैं, जबकि औद्योगिक देशों में यह आंकड़ा 2.2% है।
- शहरी प्रबंधन: इससे शहरों के विकास की योजना बनाने, सार्वजनिक स्थानों की सुरक्षा करने, विकास के अवसरों की पहचान करने और आपदा जोखिमों का प्रबंधन करने में सहायता मिलती है।
- खाद्य सुरक्षा: इससे भूमि पर महिलाओं के स्वामित्व में सुधार द्वारा कृषि उत्पादन में 4% की वृद्धि हो सकती है।
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