केयर इकोनॉमी एंड डिजिटलाइजेशन | Current Affairs | Vision IAS
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संक्षिप्त समाचार

Posted 01 Jul 2025

Updated 24 Jun 2025

32 min read

केयर इकोनॉमी एंड डिजिटलाइजेशन

कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद से, केयर इकोनॉमी में तेजी से हुए डिजिटलीकरण के कारण एक बड़ा बदलाव आया है। इस बदलाव ने महिलाओं के लिए नए आर्थिक और सामाजिक अवसर पैदा किए हैं।

केयर इकोनॉमी क्या है?

  • यू.एन. वीमेन के अनुसार, केयर इकोनॉमी में ऐसी वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन एवं उपभोग शामिल है, जो उन लोगों के शारीरिक, सामाजिक, मानसिक एवं भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी हैं जिन्हें देखभाल की जरूरत होती है। इन लोगों में बच्चे, बुजुर्ग, बीमार लोग और दिव्यांग व्यक्ति। , इसमें स्वस्थ एवं कामकाजी आयु के वयस्क शामिल हैं।
  • इसमें दो तरह के कार्य शामिल होते हैं:
    • सशुल्क देखभाल कार्य: ऐसा कार्य, जिसके लिए पारिश्रमिक मिलता, जैसे- नर्सों, घरेलू कामगारों और शिक्षकों द्वारा किया गया कार्य। 
    • अवैतनिक देखभाल कार्य: ऐसा कार्य, जिसके लिए पारिश्रमिक नहीं मिलता, जैसे- खाना बनाना, सफाई करना और बच्चों व बुजुर्गों की देखभाल करना। ये कार्य अक्सर घर पर किए जाते हैं। 
  • देखभाल का ज्यादातर कार्य चाहे वह भुगतान वाला हो या न हो महिलाएं ही करती हैं। हालांकि, इस तरह का कार्य आमतौर पर GDP की गणना और आर्थिक नीति निर्माण में शामिल नहीं किया जाता है। इसलिए, इसे नजरअंदाज और कम महत्व का माना जाता है।
    • औसतन महिलाएं पुरुषों से तीन गुना अधिक अवैतनिक देखभाल कार्य करती हैं। भारत में यह अंतर और भी अधिक है। भारत में महिलाएं पुरुषों से लगभग आठ गुना ज्यादा ये काम करती हैं।
  • डिजिटल केयर इकोनॉमी देखभाल के पुराने तरीकों को बदल रही है। इसने ऐप्स, ऑनलाइन मार्केटप्लेस, केयर मैनेजमेंट सॉफ्टवेयर और रिमोट मॉनिटरिंग जैसी तकनीकों को देखभाल में शामिल किया है।

केयर इकोनॉमी का डिजिटलीकरण महिलाओं को कैसे लाभ पहुंचा सकता है?

  • आर्थिक संवृद्धि: संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, देखभाल अवसंरचना और सेवाओं में निवेश से 2035 तक 300 मिलियन नौकरियां सृजित की जा सकती हैं। इनमें से 70-90% नौकरियां महिलाओं को मिल सकती हैं। 

    • उदाहरण के लिए- अर्बन कंपनी, जो घर पर खाना पकाने और सफाई जैसी तत्काल घरेलू सेवाएं प्रदान करती है, भारत में महिला गिग वर्कर्स के सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक है।
  • लैंगिक असमानताओं को कम करना: केयर इकोनॉमी के डिजिटलीकरण से महिलाओं को लचीलापन और स्वायत्तता मिलती है, जैसे ऑन-डिमांड सेवाएं देना। डिजिटल भुगतान के माध्यम से अधिक और स्थिर आय प्राप्त होती है।  साथ ही, घर से काम करने के कारण सुविधा और सीखने के नए अवसर मिलते हैं। इस प्रकार, महिलाओं को नए कौशल और करियर विकास की संभावनाओं से सशक्त बनाया जा सकता है। 
  • पहुंच और दक्षता बढ़ाना: उदाहरण के लिए- भारत में क्ले और ब्रूमीज़ जैसे चाइल्ड केयर प्लेटफॉर्म ऑन-डिमांड बेबीसिटिंग सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। इसके अलावा, ख्याल तथा गुडफेलोज़ जैसे अन्य प्लेटफॉर्म बुजुर्गों की देखभाल के लिए ऑन-डिमांड सहायता प्रदान कर रहे हैं।

निष्कर्ष

केयर इकोनॉमी का डिजिटलीकरण महिलाओं को सशक्त बना सकता है और देखभाल के काम को औपचारिक रूप प्रदान कर सकता है। हालांकि, समावेशी संवृद्धि के लिए डिजिटल अंतराल, सामाजिक सुरक्षा और पक्षपात जैसी चुनौतियों का एक लैंगिक-संवेदनशील और अधिकार-आधारित दृष्टिकोण के माध्यम से समाधान किया जाना चाहिए।

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मातृ मृत्यु अनुपात

केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन रजिस्ट्रार जनरल कार्यालय ने भारत में मातृ मृत्यु अनुपात (MMR) पर 2019–21 के लिए विशेष बुलेटिन जारी किया। 

  • मातृ मृत्यु अनुपात किसी निर्धारित अवधि में प्रति 1,00,000 जीवित जन्मों पर होने वाली मातृ मृत्यु की संख्या है।
    • भारत ने मातृ मृत्यु अनुपात को कम करके वर्ष 2030 तक 70 तक लाने की प्रतिबद्धता जताई है। यह संयुक्त राष्ट्र -सतत विकास लक्ष्य (SDG) के अनुरूप है। 

बुलेटिन के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर

  • भारत का मातृ मृत्यु अनुपात घटकर 93 हो गया है। 2017–19 में यह 103 था।
  • श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्य: केरल (MMR-20), तेलंगाना (45), तमिलनाडु (49), आदि। 
  • कमजोर प्रदर्शन करने वाले एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप (EAG) राज्य: मध्य प्रदेश (175), असम (167), उत्तर प्रदेश (151)। इन राज्यों में अब भी उच्च मातृ मृत्यु अनुपात दर्ज किया गया है।
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गरिमा के साथ आयुर्वृद्धि के लिए पहलें

देश की राष्ट्रपति ने “गरिमा के साथ आयुर्वृद्धि–वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण हेतु पहलें कार्यक्रम  में वरिष्ठ नागरिकों के लिए कई पहलों का शुभारंभ किया।

शुरू की गई पहलें:

  • वरिष्ठ नागरिक कल्याण पोर्टल: यह एक डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म है। यह वरिष्ठ नागरिकों के लिए सरकारी योजनाओं, स्वास्थ्य-देखभाल के लाभों और कल्याणकारी सेवाओं की प्राप्ति को आसान बनाता है। 
  • वरिष्ठ नागरिक आवास: यह केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के कार्यक्रम के तहत समर्थित है। यह पहल ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम’ (MWPSC Act) के अनुरूप है। 
  • ब्रह्मकुमारी संस्था के साथ समझौता ज्ञापन (MoU): इसका उद्देश्य भावनात्मक संतुलन, आत्मचिंतन (mindfulness), और पीढ़ियों के बीच आपसी संबंध को बढ़ावा देना है।
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ग्लोबल नेटवर्क ऑफ एज-फ्रेंडली सिटीज एंड कम्युनिटीज

कोझिकोड शहर को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के ग्लोबल नेटवर्क ऑफ एज-फ्रेंडली सिटीज एंड कम्युनिटीज (GNAFCC) की सदस्यता से सम्मानित किया गया है।

GNAFCC के बारे में:

  • स्थापना: 2010 में
  • सदस्य: 51 देशों के 1300 सदस्य शहर और समुदाय।
  • लक्ष्य: विश्व भर के शहरों, समुदायों और संगठनों को जोड़ना, ताकि वरिष्ठ नागरिकों के लिए रहने योग्य समाज विकसित किया जा सके।
  • मुख्य उद्देश्य:
    • प्रेरणा देना, यह दर्शाकर कि क्या किया जा सकता है और कैसे किया जा सकता है।
    • दुनिया भर के शहरों और समुदायों को जोड़कर जानकारी, अनुभव एवं ज्ञान का आदान-प्रदान करना।
    • नवाचार पर आधारित और प्रमाणित समाधान खोजने में समुदायों की मदद करना।
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आंतरिक विस्थापन पर वैश्विक रिपोर्ट (GRID) 2025

GRID 2025 रिपोर्ट को आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र (IDMC) ने जारी किया।

  • आंतरिक विस्थापन का अर्थ है, जब लोग किसी कारणवश अपने ही देश के भीतर अपना मूल स्थान छोड़ने के लिए मजबूर हो जाते हैं। आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति (IDP) वे लोग होते हैं जो संघर्ष, हिंसा या आपदा के कारण अपने घर से पलायन करने को मजबूर होते हैं, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार नहीं करते हैं।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर: 

  • 2024 के अंत में आंतरिक रूप से विस्थापित लोग (IDP): 83.4 मिलियन। इनमें से 73.5 मिलियन लोग संघर्ष और हिंसा तथा 9.8 मिलियन आपदाओं के कारण विस्थापित हुए।
    • दुनिया भर में आपदा से होने वाले विस्थापन का 25% अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में दर्ज किया गया।
    • भारत: संघर्ष और हिंसा के कारण आंतरिक विस्थापन (1,700) तथा आपदाओं के कारण आंतरिक विस्थापन (5.4 मिलियन)।
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  • आंतरिक विस्थापन पर वैश्विक रिपोर्ट
  • आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र
  • IDP
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