कश्मीरी पश्मीना शॉल (KASHMIRI PASHMINA SHAWL)
भारत के प्रधान मंत्री ने अपनी घाना यात्रा के दौरान, देश के शीर्ष नेताओं को कुछ हाथ से बनी कलाकृतियां जैसे- कश्मीरी पश्मीना शॉल भेंट की।
कश्मीरी पश्मीना शॉल
- यह चांगथांगी बकरी के मुलायम ऊन से बुनी जाती है।
- चांगथांगी बकरी, जिसे पश्मीना बकरी भी कहा जाता है, भारत के लद्दाख के ऊंचे इलाकों में पाई जाने वाली नस्ल है।
- यह अपनी कोमलता और गर्माहट के लिए मशहूर है।
अन्य हस्तशिल्प
- बिदरीवेयर फूलदान (बीदर, कर्नाटक): इन फूलदानों का आधार जस्ते-तांबे की मिश्रधातु से बना होता है, जिस पर काले रंग की पॉलिश की जाती है और चाँदी की महीन नक्काशी होती है।
- इन पर फूलों के डिजाइन होते हैं, जो सुंदरता, समृद्धि एवं सद्भाव का प्रतीक हैं।
- चाँदी का तारकशी पर्स (कटक, ओडिशा): यह अपनी तारकशी कलाकृति के लिए विख्यात है।
- इस पर्स पर फूलों और बेलों के डिजाइन होते हैं, जिन्हें आधुनिक शैली के साथ मिश्रित किया जाता है।
- मिनिएचर अंबावारी हाथी (पश्चिम बंगाल): यह पॉलिश किए गए कृत्रिम हाथी-दांत से बना होता है, जो प्राकृतिक हाथी-दांत का नैतिक विकल्प है।
- नोट: मिनिएचर अंबावारी हाथी को छोड़कर, उपर्युक्त सभी हस्तकलाओं को भौगोलिक संकेतक (GI) टैग मिला हुआ है।
- Tags :
- GI Tag
- Changthangi Goat
पिपरहवा अवशेष (PIPRAHWA RELICS)
भगवान बुद्ध के पवित्र पिपरहवा अवशेषों की भारत वापसी हुई।
पिपरहवा अवशेषों के बारे में
- खोज: 1898 में ब्रिटिश सिविल इंजीनियर विलियम क्लैक्सटन पेप्पे द्वारा पिपरहवा, सिद्धार्थनगर (प्राचीन कपिलवस्तु), उत्तर प्रदेश में की गई।
- महत्त्व: ये अवशेष भगवान बुद्ध के पार्थिव शरीर के अवशेषों से जुड़े हैं।
- मुख्य विशेषताएं: इसमें हड्डियों के टुकड़े, सोपस्टोन और क्रिस्टल के ताबूत, बलुआ पत्थर का संदूक और स्वर्ण आभूषण आदि शामिल हैं।
- समयावधि: लगभग ईसा पूर्व 3वीं शताब्दी में इन अवशेषों को मंदिर में रखा गया था।
- एक अस्थि-पेटी पर ब्राह्मी लिपि में एक शिलालेख अंकित है, जो बताता है कि ये अवशेष शाक्य वंश द्वारा रखे गए बुद्ध के अवशेष हैं।
- वर्तमान स्थिति: भारतीय कानून के तहत इन्हें ‘AA’ श्रेणी की प्राचीन वस्तुएं घोषित किया गया है, जिनका निर्यात या बिक्री प्रतिबंधित है।
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- Piprahwa Relics
- Brahmi Inscriptions