सुर्ख़ियों में क्यों?
छात्रों द्वारा आत्महत्या करने की बढ़ती घटनाओं पर ध्यान देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने सुकदेब साहा बनाम आंध्र प्रदेश राज्य वाद में कॉलेजों और कोचिंग सेटर्स में छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए दिशा-निर्देश जारी किए।
छात्रों के बीच बढ़ता मानसिक स्वास्थ्य संकट
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने अपनी "भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्याएं" (2022) रिपोर्ट में पाया कि आत्महत्या के कुल मामलों में से 7.6% छात्रों से संबंधित हैं।
- 2012 से 2022 के बीच पुरुष छात्रों के आत्महत्या के मामलों में 99% और छात्राओं के आत्महत्या के मामलों में 92% की वृद्धि हुई है।
छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य संकट में योगदान देने वाले कारक
- शैक्षणिक दबाव: सफलता की संकीर्ण परिभाषा, शैक्षणिक असंतोष, शैक्षणिक तनाव और खासकर प्रतियोगी परीक्षाओं के मामले में असफलता।
- प्रणालीगत मुद्दे: शैक्षिक परिवेश में भेदभाव और उत्पीड़न, जैसे रैगिंग, धमकाना, यौन उत्पीड़न, आदि जो अपनेपन एवं विश्वास की भावना को कमजोर करते हैं।
- मौन की संस्कृति: मानसिक स्वास्थ्य पर खुली चर्चा का अभाव और सामाजिक कलंक मानने के साथ-साथ अपर्याप्त सुरक्षा उपाय एक सामाजिक बाधा के रूप में कार्य करते हैं।
- विधायी और विनियामक शून्यता: छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों से निपटने के लिए एक एकीकृत व लागू करने योग्य फ्रेमवर्क का अभाव है। यह कमी सामाजिक सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति अधिकार-आधारित दृष्टिकोण में बाधा डालती है।
- पारिवारिक मुद्दे: उदाहरण के लिए- पारिवारिक संघर्ष और अस्थिरता (जैसे- तलाक, अलगाव, वित्तीय समस्याएं आदि), माता-पिता द्वारा उपेक्षा, किसी प्रियजन की मृत्यु हो जाना, अवसाद या अन्य मानसिक बीमारियों का इतिहास, बचपन के प्रतिकूल अनुभव, सोशल मीडिया की लत, आदि।
- अन्य: आत्म-सम्मान की भावना में कमी; सामाजिक अलगाव; सामाजिक-आर्थिक भेदभाव (जाति-आधारित व लिंग-आधारित), आदि।
छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए उठाए गए कदम
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आगे की राह: सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी प्रमुख दिशा-निर्देश
- एक समान मानसिक स्वास्थ्य नीति: यह नीति सभी शैक्षणिक संस्थानों द्वारा अपनाई और लागू की जाएगी। इसकी वार्षिक समीक्षा करने के साथ-साथ इसे लगातार अपडेट भी किया जाएगा। साथ ही, इसे सभी के लिए सुलभ बनाया जाएगा।
- योग्य परामर्शदाताओं/ मनोवैज्ञानिकों/ सामाजिक कार्यकर्ताओं की नियुक्ति: 100 या इससे अधिक नामांकित छात्रों वाले सभी शैक्षणिक संस्थानों में कम-से-कम एक परामर्शदाता की नियुक्ति का अनिवार्य प्रावधान किया जाएगा।
- अनिवार्य प्रशिक्षण: सभी शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के लिए साल में कम-से-कम दो बार प्रमाणित मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों द्वारा मनोवैज्ञानिक प्राथमिक चिकित्सा, चेतावनी संकेतों की पहचान आदि पर आधारित प्रशिक्षण आयोजित किया जाएगा।
- शिकायत निवारण तंत्र: सभी शैक्षणिक संस्थानों द्वारा एक मजबूत, गोपनीय और सुलभ शिकायत निवारण तंत्र स्थापित किया जाएगा।
- माता-पिता और अभिभावकों को संवेदनशील बनाना: अनावश्यक शैक्षणिक दबाव डालने से बचने; मनोवैज्ञानिक संकट के संकेतों को पहचानने तथा समानुभूतिपूर्वक और सहायक रूप से प्रतिक्रिया देने के लिए माता-पिता एवं अभिभावकों को संवेदनशील बनाना चाहिए।
- पाठ्येतर गतिविधियां: खेल, कला और व्यक्तित्व विकास पहलों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
- कोचिंग संस्थान और हब: इन्हें उच्च मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षा और निवारक उपायों को लागू करना चाहिए। साथ ही, छात्रों और माता-पिता/ अभिभावकों के लिए नियमित व संरचित करियर परामर्श सेवाएं प्रदान करनी होगी।
- आवासीय शैक्षणिक संस्थान: यह सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय कदम उठाए जाएं कि परिसर उत्पीड़न, दबंगई, नशीली दवाओं और अन्य हानिकारक पदार्थों से मुक्त रहें।
निष्कर्ष
छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। इसमें सहपाठियों की मदद, प्रशिक्षित पेशेवरों के लिए पर्याप्त फंडिंग, ज़िम्मेदार मीडिया प्रथाओं और मजबूत संस्थागत जवाबदेही शामिल होनी चाहिए। शुरुआती पहचान, समय पर हस्तक्षेप और सभी छात्रों के लिए सुलभ देखभाल सुनिश्चित करने हेतु जमीनी स्तर पर निगरानी, कलंक मानने की प्रवृत्ति को कम करना, सुरक्षित डिजिटल जुड़ाव और शैक्षिक संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को समेकित करना आवश्यक है।